Home देश मलमास मेलाः कौए नहीं आते, लेकिन हर कोई बन जाता है पंडा!

मलमास मेलाः कौए नहीं आते, लेकिन हर कोई बन जाता है पंडा!

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इस बार ऐतिहासिक नालंदा की पावन भूमि पर धार्मिक-अध्यात्मिक-पर्यटन नगरी राजगीर का मलमास मेला कई मायनो में अभूतपूर्व रहा। लेकिन ‘राम भरोसे बेड़ा पार’ वाली कहावत अधिक उजागर रही।”

नालंदा (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)।  राजगीर मलमास मेला प्रशासन की ओर से अति संवेदनशील स्थानों पर सेवा-दर्शन के लिये परिचय पत्र निर्गत किये गये। ब्रह्मकुंड परिसर में इसका खास ध्यान रखने की बात कही गई। लेकिन इसके बाबजूद मेला के दौरान जिस तरह के अनेको मामले सामने आ रहे हैं, उससे साफ स्पष्ट होता है कि इस दौरान प्रशासनिक लापरवाहियां चरम पर रही और शुक्र है कि एक कमजोर सुक्षा व्यवस्था के बाबजूद कोई अनहोनी की घटना नहीं घटी।RAGIR 111

विश्वस्त सूत्रों के अनुसार इस बार 15 लाख रुपये में पंडा समिति के लोगों ने कुंड आदि क्षेत्रों को एक तरह से बेच दिया और फर्जी परिचय पत्र के जरिये चढ़ावा चढ़वाने के लिये भाड़े पर अन्य समुदाय के बच्चों को रखा गया। सरस्वती का ठेका माली समुदाय के लोग और ब्रह्मकुंड क्षेत्र का ठेका रजवार समुदाय के लोगों ने लिया। सप्तधारा या मार्ककुणडे कुंड का ठेका जोगी समुदाय के हाथ लगे।

ठेका की यह राशि किसी सरकारी कोष में नहीं जाता, बल्कि पंडा समिति अपने पास रखती है, जिसका कोई स्पष्ट लेखा-जोखा उपलब्ध नहीं होता है।

एक तरफ पंडा समिति के लोग मलमास मेला में चढ़ावा से आये राशि को कुंड के विकास व देखभाल करने में खर्च करने की बात करते हैं, वहीं इस बार कुंड परिसर के रंग-रोगन, रख-रखाब नगर पंचायत की ओर से किये जाने की बात उभर कर सामने आई है।

मेला के दौरान कुछ मीडियाकर्मी एवं समाजसेवियों ने सर्वेक्षण के दौरान फर्जी परिचय पत्र के जरिये गैर पंडो को चढ़ावा चढ़वाते रंगे हाथ पकड़ा। उसकी उपलब्ध वीडियो क्लिप के अनुसार मीडिया की कैमरों में धराये युवक न तो पंडा समुदाय के थे और न ही उसके पास वैध परिचय पत्र थे। पूछताछ करने पर उसकी सारी कलई खुल गई।

इस बात की तत्काल जानकारी राजगीर डीएसपी, राजगीर एसडीओ समेत जिला मुख्यालय के वरीय अफसरों को तत्काल दी गई, लेकिन किसी ने इस गंभीर मामले में कोई रुचि नहीं दिखाई।

सबाल उठता है कि राजगीर मलमास मेला के पुलिस-प्रशासन सुरक्षा और फर्जी मामलों की संज्ञान लेने के प्रति उदासीन क्यों बने रहे। आखिर आम दिनों में अछूत माने जाने वाले माली, रजवार, योगी या अन्य समाज के लोग मलमास मेला के दौरान पंडा-पुजारी (उपाध्याय) कैसे बन जाते हैं?

 वहीं दूसरी ओर उपाध्याय समाज दो भाग में बटा है । एक कुल करिया और दुसरा अकुल करिया समुदाय उपाध्याय रहते हैं ।
एक चढ़ावा चढ़ाने का कार्य कुलकरीया उपाध्याय कर सकता है, दूसरा अकुलकरीया हैं चढ़ावा चढ़ावाने का कार्य नहीं कर सकते हैं।
 इस घटना से अकुलकरिया पंडा (उपाध्याय) में काफी रोष व असंतोष देखा जा रहा है कि हम लोगों को क्यों नहीं उतनी हीं राशी लेकर हमें चढ़ावा चढ़वाने का अवसर दिया गया गोपनीय क्यों रखा गया।

वह भी अति संवेदनशील ब्रह्मकुंड से ऊपर व्यास कुंड से दक्षिण और ब्रह्मकुण्ड टीओपी के नाक के ठीक सामने पश्चिम मार्कण्डे कुण्ड के लिए चढ़ाबा चढ़वाने का कार्य करते पाया गया। उसके परिचय पत्र पर न तो राजगीर एसडीओ का हस्ताक्षर था और न ही उस पर कोई पोटो ही चिपका था।

लेकिन जहां तक जानकारी मिली है कि राजगीर एसडीओ ने चढ़ावा चढ़वाने के लिये सिर्फ पंडा समिति के उपाध्याय लोगों के नाम ही अधिकृत परिचय पत्र जारी किये थे। लेकिन उन लोगों ने बड़े पैमाने पर अपने तरीके से पैसे की लालच मे अपना दायित्व के विपरित जाकर दूसरे समुदाय के नाम फर्जी तरीके से परिचय पत्र जारी कर अपने मकसद में कामयाब रहे। ऐसे में पुलिस-प्रशासन के दावों का औचित्य क्या रह जाता है?

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