Home देश भवसागर पार कराने वाली वैतरणी की खुद राह मुश्किल

भवसागर पार कराने वाली वैतरणी की खुद राह मुश्किल

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पौराणिक मान्यता के अनुरूप भवसागर पार कराने वाली वैतरणी इस कलियुग में सिर्फ भ्रष्ट विभागीय अफसरों-ठेकेदारों-दलालों की नैया को ही पार करवा रही है………”

एक्सपर्ट मीडिया न्यूज। प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण राजगीर की वादियों में लंबे इंतजार के बाद रविवार को इंद्र भगवान प्रसन्न हुए और जमकर बारिश हुई तो जंगलों से निकली बारिश का पानी सरस्वती नदी (अब लुप्त प्राय) को चीरते हुए वैतरणी नदी तक पहुँची।

A CRUPTION BAITARNI RIVER IN RAJGIR NALANDA 2लेकिन वैतरणी नदी के बीचोबीच बने पुल की दीवार इस नदी को रोक दी और जंगल के पानी के साथ प्लास्टिक बोतल, थर्मोकोल पत्तल, ग्लास आदि से वैतरणी नदी कचड़े का ढेर बन गया।

वैतरणी नदी का अस्तित्व अब केवल भगवान भरोसे है। क्योंकि विभिन्न विभागों ने इस नदी को समय समय पर बर्बाद करने में कोई कसर नही छोड़ी।

जल संसाधन विभाग द्वारा वैतरणी नदी के दोनों किनारे में पत्थर लगा दिए गए जिससे नदी किनारे के प्राकृतिक जलस्रोत मृत हो गए। परिणाम स्वरूप यह नदी अब सिर्फ बारिश के पानी पर आश्रित हो गया।

एनआरईपी द्वारा वैतरणी का सौंदर्यीकरण हुआ, जिसमें नदी किनारे टाइल्स मार्बल भी लगाए गए। इससे भी कम बेड़ा गर्क नहीं हुआ इस नदी के जल स्रोतों का।

नगर पंचायत राजगीर ने तो नदी के बीचोबीच कम ऊंचाई का पुल ही बना दिया, जोकि नदी के प्रवाह को रोक दिया और अपने साथ कचड़े को भी इस जलजमाव में रुकने को मजबूर कर दिया।

बची खुची कसर समय समय पर सिंचाई और जल संसाधन विभाग करती है। जो कि कागजों पर इसकी उड़ाही हर साल कर देती है।

पौराणिक मान्यता के अनुरूप भवसागर पार कराने वाली वैतरणी इस कलियुग में सिर्फ विभाग के अधिकारियों और ठीकेदारों की नैया को ही पार करवा रही है ।

राजनेताओं द्वारा निर्देश मिलते गए ,योजनाएं बनती गयी। लूट होती गयी। लेकिन हालत यह है कि शहर से लेकर दर्जनों गांव तक सिचाई का यह प्रमुख नदी सिमटती गयी और अब शहरी आबादी क्षेत्र में नाला बनकर रह गया है। राजगीर शहर के लेदुआ पुल से लेकर पंचवटी,स्टेशन एरिया में यह नदी अतिक्रमण से नाले में तब्दील हो चुकी है।

जल संचय और जल शक्ति अभियान के नाम पर जिला प्रशासन सिर्फ लोगों को जल जीवन हरियाली का संकल्प ही दिला पा रही है। लेकिन पौराणिक नदियों जल स्रोतों को मुक्त करने की दिशा में सबके हाँथ बंधे नज़र आ रहे हैं।

वक्त रहते अगर इन पौराणिक नदियों के संरक्षण की विशेष नीति नहीं बनाई गई तो यकीनन बूँद बूंद को तरसती आबादी सिर्फ एक दूसरे को कोसते ही नज़र आएंगे।

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