Home देश दोहरी नीतिः इधर बराह टीले का कायाकल्प, उधर गुमनामी में तुलसी टीला

दोहरी नीतिः इधर बराह टीले का कायाकल्प, उधर गुमनामी में तुलसी टीला

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नालंदा में सरकार की दोहरी नीति सामने आई है। सीएम नीतीश कुमार के पैतृक गांव-जेवार से सटे बराह टीले के कायाकल्प के लिए रोडमैप बन चुका है। वहीं ऐतिहासिक संपदा को संयोए तुलसीगढ़ का टीला गुमनामी में है। यहां तक कि डेढ़ दशक पूर्व पुरातत्व विभाग सर्वेक्षण के बाद भी टीले की सुध नहीं ले सका है…….”

एक्सपर्ट मीडिया न्यूज/बिहार ब्यूरो। वही सीएम नीतीश कुमार के गृह प्रखंड हरनौत के बराह गाँव के प्राचीन टीले का कायाकल्प किए जाने की योजना तैयार कर ली गई है। लगभग 26 लाख की लागत से इस क्षेत्र को नगरीय स्वरूप प्रदान किया जाएगा। टीला पर चाहरदीवारी ओपन जिम के साथ चारों ओर से दरवाजे भी बनाए जाएंगे। शहरी विकास अभिकरण ने इस टीले के विकास के लिए मास्टरप्लान तैयार किया है। जिसे सरकार के पास स्वीकृति के लिए सरकार के पास भेजा गया है।

कुछ साल पूर्व नालंदा डीएम त्यागराजन ने इस टीले के विकास के बारे में सोचा था। शहरी विकास अभिकरण ने 26 लाख 39 हजार रूपये की योजना बराह टीले पर खर्च करेगी। जिसमें टीले पर चढ़ने के लिए चार दरवाजे, ग्रामीणों के लिए ओपन जिम, लोगों के बैठने के लिए बेंच तथा पार्क की व्यवस्था की जाएगी।

बताया जाता है कि हरनौत के बराह टीला का प्राचीन महत्व रहा है। कुछ साल पूर्व के पी जायसवाल शोध संस्थान ने टीले की खुदाई में कई अवशेष प्राप्त किए थे, जिनमें द्धापरकालीन अवशेष भी बताए जाते है। यहां तक बौद्ध कालीन अवशेष भी मिले थे। टीला का विकास सल्तनत काल में बताया जाता है।

मुगलकाल तथा अंग्रेजी शासन काल में राजे-रजवाडे के लोग रहते आ रहे थे।आजादी के बाद यहां नवाब साहेब रहते थे, जो टैक्स संग्रह का काम करते थे। उनकी नवाबी हरनौत बाजार से पश्चिमी तेलमर तक चलता था।

बाद में रजवाडे-जमींदारी समाप्त होने के बाद टीले की गरिमा धीरे धीरे समाप्त होने लगी।टीले पर निर्मित आलीशान भवन ध्वस्त हो गया। बाद में टीले पर रहने वाले नवाब के आगे की पीढ़ी पटना पलायन कर गए।

बराह टीले की कायाकल्प की खबर को लेकर ग्रामीणों में काफी उत्साह है। उनके टीले का विकास और सौंदर्यीकरण हो रहा है। लेकिन दूसरी तरफ यहाँ से दस किलोमीटर दूर चंडी प्रखंड के तुलसीगढ का पालकालीन सभ्यता का टीला आज भी गुमनामी में जी रहा है। यह टीला आज भी उपेक्षित है। जबकि डेढ़ दशक पूर्व पुरातत्व विभाग की टीम सर्वेक्षण कर चुकी है।TULSI TEELA 1

तुलसीगढ में एक विशालकाय स्तूप संरचना मौजूद है। जिसको लेकर ग्रामीणों में आज भी कौतूहल बना हुआ है कि इस टीले के अंदर आखिर दफन क्या है? इस टीले की ऊँचाई 30 फीट और व्यास 60 मीटर है।इसके गर्भ में पीढ़ियों का इतिहास छिपा है। लेकिन यह गढ़ उपेक्षा की वजह से सैकड़ों सालों से गुमनाम पड़ा है।

चंडी प्रखंड के तुलसीगढ का सिर्फ पुरातत्विक  ही नहीं राजनीतिक महता रहा है।आजाद भारत की संसद में कदम रखते ही जिन्होंने नारी का सशक्त परिचय दिया। देश की प्रथम महिला केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री तथा ‘संसद सुंदरी’ के नाम से लोकप्रिय रही तारकेश्वरी सिन्हा इसी गाँव की थी।

तुलसीगढ टीले के बारे में कहा जाता है कि यहाँ पालकालीन सभ्यता से पूर्व  लोगों का ठिकाना था ।इसके चारों ओर खाई थी,जिसका पानी लोग पेयजल के लिए इस्तेमाल करते थे। कालांतर में आबादी बढ़ने के साथ लोग टीले से नीचे उतरने लगे। 

ऊँचे नुमा स्थल के बारे में यह धारणा रही है कि वहाँ कई तरह के अवशेष जैसे पत्थर, हड्डी, औजार, मिट्टी के बर्तन, घर-मकान के अवशेष रह जाते है। धीरे-धीरे इन वस्तुओं के उपर मिट्टी की कई परते चढ़ जाती है। इस प्रकार के टीले की खुदाई से प्राप्त अवशेष को पहचान कर आसानी से ज्ञात किया जा सकता है कि टीला कितना पुराना है।

तुलसीगढ टीले पर ढाई सौ साल पुराना कूल देवी का मंदिर है।जो गांव वालों के लिए धार्मिक आस्था का केंद्र है।संरक्षण के अभाव में इस पुरातात्विक टीले का ह्रास हो रहा है। अतिक्रमण कर यहां घर मकान बनाए जा रहे है। स्वयं यहां के लोग अपने पुर्वजों की धरोहर को क्षति पहुँचा रहे हैं ।पुरातत्व विभाग  तथा राज्य सरकार की उपेक्षा से एक इतिहास गर्भ में दफन है।

आखिर इस टीले का उत्खनन कब होगा। आखिर कबतक इसके गर्भ में अतीत का इतिहास दफन रहेगा। आखिर इस टीले के दिन कब फिरेगे। आखिर कब बराह टीले की तरह सरकार की भी नजरें इनायत इस टीले पर होगी? यह सवाल वर्षों से लोगों के जेहन में है।

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