एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क डेस्क/मुकेश भारतीय। बचपन में प्रायः चौक-चौराहों पर एक राजनीतिक नुक्कड़ नाटक देखने को मिलता था-क्या जनता पागल हो गई है। वामपंथ द्वारा यह नुक्कड़ नाटक तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आपातकाल को रेखाकिंत करती थी। लेकिन आज यदि हम बिहार की बात करें, खासकर सीएम नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा की बात करें तो महज एक ही थीम उभरती है- क्या पुलिस पागल हो गई है।
जी हां, क्या पुलिस पागल हो गई है। अपनी सात नस्लों के भविष्य सुरक्षित की दिशा में काली कमाई करने में मशगुल पुलिस के अजीबोगरीब कारनामे सामने आ रहे हैं। कई थानेदारों ने तो हद कर रखी है। उन्हें सिर्फ पैसा चाहिए। थानों को दलालों का अड्डा बना कर रख छोड़ा है। पहले स्थितियां इतनी विकट नहीं थी।
बीते परसों देर शाम राजगीर थानाध्यक्ष ने एक विक्षिप्त युवक से जबरन एक फर्जी शिकायत लिखवा कर हमारे एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क से जुड़े रिपोर्टर नीरज कुमार को अस्पताल से उठाकर हाजत में बंद कर दिया और अगले दिन गंभीर धाराएं लगा कर जेल भेज दिया। थानाध्यक्ष की इस कारस्तानी में वहां के डीएसपी और सर्किल इंसपेक्टर की भी भूमिका काफी संदिग्ध है।
नीरज को पिछले माह भी एक प्रशासनिक शाजिस के तहत जेल भेज दिया गया था। वह बीते परसों शाम ही उस मामले में रिहा होकर घर लौटा था और उसकी भीषण गर्मी में तबियत खराब होने के कारण उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इसकी जानकारी पुलिस को जैसे ही मिली, उसने कुछ युवकों को भेज नीरज से उलझवा दिया और बाद में उसी में एक विक्षिप्त टाइप के युवक से फर्जी शिकायत लिखवा लिया।
धनंजय नामक उस युवक के पिता विनोद प्रसाद गुप्ता साफ कहते हैं कि राजगीर थानाध्यक्ष उनके अर्धविक्षिप्त पुत्र का व्यक्तिगत खुन्नस में इस्तेमाल कर रहा है। किसी तरह की कोई घटना उनके या उनके परिवार के किसी सदस्य के साथ नहीं हुआ है। लूट, रंगदारी, छिनतई, मारपीट की घटना सब कोर कल्पित है।
थानाध्यक्ष संतोष कुमार ने उनके पुत्र का कुछ थाना के दलालों से प्रभावित होकर यह सब करवाया है। नीरज एक अच्छा युवक है। उसके साथ बहुत गलत हुआ है।
श्री गुप्ता ने कहा कि उन्हें आज ही पता चला है कि राजगीर थानाध्यक्ष संतोष कुमार ने इसके पूर्व भी उनके पुत्र को बहका कर नीरज के खिलाफ वैसा ही एक मुकदमा पहले भी करवा चुका है।
उधर, बीते परसों देर शाम नीरज की गिरफ्तारी के समय पुलिस ने जिस युवक को गवाह बनाया है, उसका भी साफ कहना है कि वह इस मामले में कुछ नहीं जानता। उसके सामने कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। राजगीर थानाध्यक्ष ने उसका नाम खुद से डाल दिया है। जबकि उसने ऐसा गलत करने से रोका था। फिर थानाध्यक्ष संतोष कुमार ने यह कहकर उनका नाम डाल दिया कि कुछ नहीं होगा। ऐसे ही लिख रहे हैं।
कल देर शाम नीरज की न्यायिक पेशी के दौरान श्री गुप्ता और जबरन गवाह बनाए गए युवक यानि दोनों ने एक साथ सत्र न्यायाधीश के सामने वही बात दोहराई, जैसा कि दोनों ने मीडिया को बताई।
बहरहाल, राजगीर पुलिस बिल्कुल नकरा और निकम्मा है। अपनी खामियों का आयना देखना उसे पसंद नहीं आता। कुछ सड़क छाप दलालों और नेताओं के ईशारे पर नंगा नाच करता है। अवैध शराब, बालू की आमदनी के साथ फर्जी मुकदमों के चढ़ावे से वह मदमस्त हो गई है। नालंदा पुलिस कप्तान को भी दिखता है, जैसा कि उनके निकम्मे अधिनस्थ लोग दिखाते हैं।
इधर एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क की ओर से सप्रमाण जानकारी बिहार डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय को दे दी गई है। उन्होंने नालंदा एसपी को सारे मामले की उचित जांच कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। अब देखना है कि इस मामले में कहां तक न्यायोचित जांच-कार्रवाई होती है।