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चमत्कार या भ्रष्टाचार? महज 24 घंटों में फूट पड़ी राजगीर कुंड की सुखी धाराएं !

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एक्सपर्ट मीडया न्यूज। मीडया के खेल बड़े निराले रे भईया। यह खेल आम हो गई है। इस खेल में बिचौलिये, ठेकेदार और धंधेबाजों की बड़ी भूमिका होती है। बात जब धर्म और आस्था की हो तो सारा खेल काफी दिलचस्प हो जाता है। जी हां। मीडिया और धंधेबाजों का एक दिलचस्प खेल नालंदा जिले के अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन व आस्था नगरी राजगीर में उजागर हुआ है।

rajgir kund scandle 3बीते कल पटना से प्रकाशित एक हिन्दी दैनिक में प्रमुखता से यह समाचार प्रकाशित की गई कि गर्मी की शुरूआत के साथ हीं राजगीर के गर्म कुंड व झरने मंद पड़ने लगे हैं। सूर्य कुंड की धारा बंद होने के बाद भी स्थानीय प्रशासन द्वारा इसकी खोज खबर नहीं ली गयी। पर्यटकों को निराश होकर लौटना पड़ रहा है। बंद पड़े कुंडों में तो सन्नाटे की स्थिति है। स्थानीय लोगों के बीच यह चर्चा का विषय बना है।

इस तरह की सूचनाएं कई माइक्रो मीडिया (सोशल साइट) ग्रुपों पर भी खूब वायरल हुये।  यहां लिखा गया कि

राजगीर के सुप्रसिद्ध गर्म जल के कुंडो और  झरनो का अस्तित्व संकट में है। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है वैसे – वैसे झरने और कुंड सूखने लगे हैं । ब्रह्मकुंड क्षेत्र के सरस्वती कुंड,  अनंत कुंड, गंगा – यमुना कुंड पूरी तरह सूख गए हैं। इनकी धाराएं बंद हो चुकी है।

मारकंडे कुंड की धारा इतनी कमजोर है कि वह किसी भी  दिन या समय बंद हो सकती है। रविवार की सुबह सूर्य कुंड की दोनों धाराएं अचानक बंद हो गई। पंडा कमेटी, संस्कृति प्रेमियों और श्रद्धालुओं में इस घटना से अफरा तफरी मच गई।

सुबह से ही सूरजकुंड की धाराओं को चालू करने के लिए लेबर लगाए गए हैं। किसी तरह इस कुंड की एक धारा को चालू किया गया है। लेकिन अभी भी दूसरा धारा बंद है। दक्षिण वाली धारा मृत हो गया है। उत्तर के झरने की धारा चालू तो हो गयी है लेकिन जल की धारा पतली है।

गौरीकुंड, अहिल्या कुंड, भरत कूप कुंड, शालिग्राम कुंड  और राम – लक्ष्मण कुंड की धाराएं भी मृत्यु हो गई है। राजगीर के दो कुंड ब्रह्मकुन्ड  और सप्तधारा प्रमुख हैं। इनमें  सप्तधारा कुंड की हालत भी अच्छी नहीं है। सप्तधारा कुण्ड  के झरना  संख्या दो और पांच  की हालत बहुत दयनीय है। 

इन झरनों की धाराएं बहुत पतली हो गई है। यह किसी भी दिन बंद हो सकते हैं। ऐसा यहां के पंडा लोगों का अनुमान  है। झरना संख्या एक,  तीन  और चार  इस  सप्तधारा कुंड के प्रतिष्ठा को  बचाए हुए है। राजगीर के सुप्रसिद्ध गर्म जल के झरनो की धाराए जिस गति से सूख रही है। यह बेचैनी को दिन पर दिन बढ़ा रहा है।

यही हाल रहा तो जेष्ठ महीने में लगने वाले मलमास मेला में तीर्थयात्री कैसे स्नान करेंगे। यह चिंता सबों को अभी से सताने लगी है। मार्च के महीने में आधे दर्जन से अधिक झरनों की धाराएं बंद हो गई है तो अप्रैल- मई-जून अभी बाकी ही है। और कितने कुंडो के झरने अभी और सूखेगे, यह कहना कठिन है।

लेकिन जिस हिसाब से झरना का पानी सूख रहा है। वह राजगीर की संस्कृति के लिए बहुत ही भयावह है। यहां 22 कुंड और 52 धाराएं होने के प्रमाण हैं। इसकी चर्चा धर्म ग्रंथों में भी की गई है।

वर्तमान समय में  गोदावरी कुंड और दुख हरनी कुंड अस्तित्व में नहीं है। यह दोनों कुंड जमीनदोज  हो गए हैं। बावजूद जिला प्रशासन पुनः  इन कुंडो को पुनर्जीवित करने के प्रति संवेदनशील नहीं लग रही है।

मालूम हो कि मई महीने में मगध का सुप्रसिद्ध मलमास मेला राजगीर में लगने  वाला है एक महीने तक चलने वाले इस मेले में देश-दुनिया के लाखों श्रद्धालु आते  और गर्म जल के कुंडो में आस्था की डूबकी लगाकर तन-मन को पवित्र करते हैं । इस बार  यह मेला जेष्ठ महीने की तपती गर्मी में लगेगी।

इस समय आहर-नहर, ताल-तलैया सब सूख जाते हैं। कुएँ  भी जल विहीन हो जाते हैं। बोरिंग और हैंडपंप के जलस्तर भी बहुत तेजी से नीचे चले जाते हैं। तब चारों तरफ जल संकट व्याप्त रहता है। यदि यही संकट राजगीर के गर्म जल के झरनो और कुडों पर  दिखाया तब क्या होगा।

ऐसे हालात में केवल ब्रह्मकुंड ही आस्था की डुबकी लगाने का एकमात्र सहारा होगा । मलमास मेला के दौरान प्रथम स्नान सरस्वती नदी कुंड में श्रद्धालु करते हैं। यह नदी कुंड  महीनों से सूखी पड़ी है। गाद से भरे इस नदी में हरे-हरे घास उगे हैं।

सप्तधारा कुंड के दो झरने पहले से बंद है। शेष बचे पांच झरनो  में से दो झरने दो और पांच  की जलधारा बहुत पतली व कमजोर हो गई है। यह धारा कभी भी सूख या बंद हो सकती है ।

अखबार में प्रमुखता से प्रकाशित खबर और सोशल मीडिया पर वायरल उपरोक्त तरह की सूचनाओं की पड़ताल के बाद एक्सपर्ट मीडिया न्यूज टीम के सामने जिस तरह की सूचनाएं आई है, वह लूट-खसोट की जमीन पर एक गहरी शाजिस को उजागर करती है। जिसमें मीडया और कुंडों की जम्मेवारी संभाल रहे पंडों की भूमिका काफी संदिग्ध है।

आज पटना से प्रकाशित एक अन्य हिन्दी दैनिक में “सूर्यकुण्ड की धार पहले की तरह बरकरार” शीर्षक से खबर है कि पंडा कमेटी के संयुक्त सचिव सह अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा के राष्ट्रीय मंत्री डॉ. धीरेन्द्र उपाध्याय ने कहा कि सूर्यकुण्ड व सूर्यकुण्ड परिसर में अन्य कुण्ड की धार पहले की तरह ही है। इसका पानी का श्रोत ठीक है।

उन्होंने कहा कि कुछ असमाजिक तत्वों ने कुण्ड में आने वाली मुख्य स्थल पर बोरा व ईंट लगा दिया था। इस कारण सूर्यकुण्ड से लेकर सीता कुण्ड तक की धार बंद हो गयी थी। कमेटी द्वारा कुण्ड की धार को फिर से चालू करवा दिया गया है और असमाजिक तत्वों द्वारा लगाये गए बोरा व ईंट को वहां से निकाल दिया।

इसके एक दिन पूर्व एक दैनिक की खबर में जिक्र था कि अखिल भारतीय पुरोहित महासभा के स्कॉलर डॉ. धीरेंद्र उपाध्याय ने कहा कि कुछ दिनों से लगातार कुंड की धाराएं बंद हो रही है। ब्रह्म कुंड के पानी का लेवल भी तेजी से कम हो रहा है। मई में मलमास मेला लगने वाला है। जिस पर इसका असर पड़ेगा।

अब सबाल उठता है कि कुंड कमेटि व महासभा आदि से जुड़े डॉ. उपाध्याय जैसे एक ही व्यक्ति के एक दिन पहले कुछ और एक दिन बाद कुछ और बताने पिछे क्या रहस्य छुपा है। महज 24 घंटे के भीतर राजगीर कुंड प्रक्षेत्र में इतनी आंधी-पानी तो आई नहीं होगी कि जल स्तर अचानक बढ़ गया।

दरअसल, सूर्य कुंड से लेकर ब्रह्मकुंड तक जल स्तर कम होने और बंद होने की सूचना अचानक आग की तरह फैली। सोशल साइट ग्रुपों पर तरह-तरह की टिप्पणियां शुरु हो गई। अनेक लोगों ने पंडा कमिटियों द्वारा लूट-खसोट किये जाने की शाजिश करार दिया।

राजगीर के बीचली कुआं निवासी आरटीआई एक्टीविस्ट पुरुषोतम प्रसाद ने राजगीर नजर पंचायत नामक व्हाट्सएप ग्रुप पर साफ तौर पर लिख डाला कि षडयंत्र व आपसी गुटबाजी की बजह से विभिन्न कुंडो की धारा कम और बंद किया जा रहा है।

हालांकि गर्मी के दिनों में प्राकृतिक तौर पर जल स्तर का खिसकना लाजमि है। लेकिन उतना नहीं कि कुंड की धाराएं बिल्कुल सुख जाएं। आज तक ऐसा कभी नही हुआ। अगर कभी ऐसा हुआ है तो इसके पिछे पंडो के बीच फैले असमाजिक तत्वों की कारस्तानी रही है। मलमास मेला के पहले ऐसी हरकतें बढ़ जाती है और ऐन मलमास मेला के वक्त सब कुछ ठीक हो जाता है।

कहा जाता है कि मलमास मेला या अन्य जय मौको पर कुंडो का टेंडर होता है। इस होड़ में उसकी निविदा बोली कम करने के लिये कुंडों के स्रोत को कृत्रिम तरीके अवरुद्ध कर मीडया व अन्य स्रोतों से हौवा खड़ा कर दिया जाता है। फिर इसके नाम पर सरकारी राशि का बंदरबांट शुरु हो जाता है।

इस पूरे मामले की यदि गंभीरता से उच्चस्तरीय प्रशासनिक जांच की जाए तो  आस्था, धर्म व उसके संरक्षण के नाम पर एक बड़े-बड़े घपले-घोटाले तो सामने आयेगें ही, उसके तारणहार बने पंडा कमिटियों का भी शर्मनाक खेला उजागर हो जायेगा।  

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