
आंदोलन दर आंदोलन, जेल भरो अभियान, सदन का घेराव, दिल्ली में संसद भवन के सामने नंग धड़ंग प्रदर्शन, हजारों शिक्षकों ने पुलिस की लाठियां खाई, सिर फूटे, हाथ टूटे, लेकिन कोई भी धरना प्रदर्शन घेराव काम नहीं आया…
पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज़)। बिहार में पिछले 40 साल से जारी वित्तरहित शिक्षा नीति का कलंक जारी है। यह एक ऐसी नीति है जिसमें बिहार के लगभग 50 हजार शिक्षक एवं शिक्षकेतर कर्मचारी तिल-तिल कर मरने को मजबूर रहें हैं, सैकड़ों तो वेतन के अभाव में कब को काल के गाल में समा चुके हैं। जो बचे हुए हैं अपने सम्मान के लिए संघर्ष कर रहें हैं।
संसद में कभी वित्तरहित शिक्षकों के वेतन एवं पेंशन के लिए दहाड़ने वाले नीतीश कुमार पिछले बीस साल से मुख्यमंत्री हैं, लेकिन इन्होंने वेतन देने की भी सुध नहीं ली। परीक्षाफल पर आधारित अनुदान की व्यवस्था 2008 में लागू की वह भी शिक्षा विभाग, विश्वविद्यालय और प्रबंधन के कुपेंच में फंसाकर वित्तरहित कर्मियों को भूखे मरने पर मजबूर कर दिया गया है।
सरकार की ओर से शिक्षकों को अनुदान की बकाया राशि अभी तक शिक्षकों के खाते में नहीं पहुंच सका है। इस दशहरे में भी वित्तरहित शिक्षकों के घर फाका ही रहने वाला है। उनके परिवार के लोग एक-एक पैसे के लिए मुहताज है। उनके बच्चे इस बार दशहरा का मेला नहीं घूम पाएंगे।
उच्च न्यायालय ने भी चार महीने पूर्व एक आदेश में वित्तरहित शिक्षकों को वेतन एवं पेंशन देने का आदेश जारी किया था। बिहार सरकार उच्च न्यायालय के आदेश का भी उल्लंघन कर रही है। पिछले एक महीने से वित्तरहित शिक्षक पटना के गांधी मैदान में अनशन पर डटे हुए थे। लेकिन विधान पार्षद नवल किशोर यादव के आश्वासन पर शिक्षकों ने फिलहाल अपना अनशन, धरना प्रदर्शन स्थगित कर दिया है। लेकिन एक कैबिनेट की बैठक में अभी तक सरकार की ओर से कोई घोषणा नहीं होने पर शिक्षक इस वादाखिलाफी से फिर से आक्रोशित हैं।
बिहार के वित्तरहित इंटर एवं डिग्री कॉलेज के हजारों शिक्षक पिछले चालीस साल से जिसमें हजारों कब के बिना वेतन के सेवानिवृत्त हो गए। बंधुआ मजदूर से भी बदतर हालत में जी रहें हैं। कइयों ने अपने पत्नी के जेवर बेचकर अपने नाम के आगे बड़ी शान से ‘प्रोफेसर’ शब्द लगाया, कहने को वे व्याख्याता कहलाते हैं, लेकिन यह हकीकत रही कि वे बिना एक चवन्नी लिए कॉलेजों से विदा हो गए। वित्तरहित शिक्षा नीति इन शिक्षकों के अरमानों का कब्रगाह साबित हुआ है।
इन शिक्षकों के उद्धार के लिए 1988 में वित्तरहित संयुक्त संघर्ष मोर्चा अस्तित्व में आया। लेकिन इस मोर्चे ने शिक्षकों की हित की लड़ाई से ज्यादा अपना हित साधा। इस मोर्चे ने अपने अस्तित्व को चंद पैसे की खातिर समाप्त कर वित्तरहित शिक्षकों एवं कर्मचारियों के दिल पर छुरियां चला दी।
राजनीतिक दलों ने हमेशा अपना उल्लू साधा है इन शिक्षकों के साथः चुनाव के समय बड़ी-बड़ी बातें इनके हित में कहीं जाती है, लेकिन चुनाव समाप्त के साथ ही सब भूल जाते हैं। यहां तक कि प्रत्येक विधानसभा सत्र के समय वित्तरहित शिक्षा नीति की आवाज़ काफी जोर-शोर से उठती है। वित्तरहित शिक्षा नीति के कारण शिक्षक समाज, परिवार में उपेक्षित हैं। उनके बाल बच्चे जवान हो चुकें हैं उनके सामने उनके बच्चों की शादी की एक भयावह समस्या खड़ी है। पैसे के अभाव में इनके बाल बच्चे अच्छी शिक्षा एवं नौकरी से वंचित हैं।
आंदोलन दर आंदोलन, जेल भरो अभियान, सदन का घेराव, दिल्ली में संसद भवन के सामने नंग धड़ंग प्रदर्शन, हजारों शिक्षकों ने पुलिस की लाठियां खाई,सिर फूटे,हाथ टूटे लेकिन कोई भी धरना प्रदर्शन घेराव काम नहीं आया।
वित रहित शिक्षकों पर सबसे ज्यादा तुषारापात लालू राबड़ी की सरकार ने किया। लालू प्रसाद यादव ने कभी चंडी मगध महाविद्यालय में कहा था कि इस दीपावली वित्तरहित शिक्षकों के घर घी के दीये जलेंगे। उनके 15 साल के शासनकाल में घी के दीये की जगह सरसों तेल के भी दीये नहीं जल सका।
दक्षिण अफ्रीका में भी वित्तरहित शिक्षा नीति की चर्चा: इसी साल अप्रैल में दक्षिण अफ्रीका के मोरक्को की राजधानी रायात में 5 एवं 6 अप्रैल को संपन्न हुए इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ टीचर्स यूनियन्स (IFTU) की 20वीं अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस में भारत की शिक्षा व्यवस्था और विशेषकर बिहार की वित्तरहित शिक्षा पर गहरी चिंता और चर्चा हुई थी।
अखिल भारतीय विश्वविद्यालय और महाविद्यालय शिक्षक महासंघ (AIUCTO) के राष्ट्रीय महासचिव प्रो अरुण कुमार ने बिहार की शिक्षा नीति की आलोचना करते हुए कहा कि बिहार देश का एक ऐसा राज्य है, जहां वित्तरहित शिक्षा नीति वर्षों से जारी है।
उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंच पर इस नीति की आलोचना करते हुए कहा कि बिहार में वित्तरहित शिक्षा नीति एक एक बड़ी चुनौती है। सभी ने एक स्वर में इस नीति को शिक्षा के लिए अभिशाप बताते हुए इसकी समाप्ति के लिए आवाज उठाने का आह्वान किया गया था।
आजाद देश के गुलाम वित्तरहित शिक्षक अब गुलामी से चाहते हैं मुक्तिः वर्षों से जारी गुलामी से मुक्ति पाने के लिए वित्तरहित शिक्षक इस कलंकित शिक्षा व्यवस्था को खत्म करने के लिए पिछले एक महीने से गांधी मैदान में धरना प्रदर्शन पर बैठे हुए थे। एक सप्ताह पूर्व शिक्षकों के हित की लड़ाई लड़नें वाले नवल किशोर यादव के आश्वासन पर शिक्षकों ने फिलहाल अपना प्रदर्शन खत्म कर दिया है।
वे भी न्याय के साथ विकास की यात्रा में शामिल में शामिल होना चाहते हैं। विकास की बहती गंगा में बूंद बूंद को तरस रहें शिक्षक अब अनुदान नहीं वेतनमान एवं पेंशन चाहते हैं। उच्च न्यायालय ने भी शिक्षकों को वेतन एवं अनुदान देने का आदेश सरकार को तीन महीने में दी थी। उच्च न्यायालय की डेटलाइन खत्म हो चुकी है। लेकिन सरकार जिसने पिछले एक महीने में हर वर्ग के लिए अपना खजाना खोल दिया है, लेकिन वित्तरहित शिक्षकों के लिए अभी तक चवन्नी भी नसीब नहीं हो पा रही है।
बहरहाल, वित्तरहित शिक्षा नीति महाविद्यालय के शिक्षक एवं कर्मचारियों के लिए खौफनाक हक़ीक़त बयां करती है। आखिर बिहार के माथे पर लगा वित्तरहित का कलंक कब धोया जाएगा? यह आशा करना अब व्यर्थ है।