एक्सपर्ट मीडिया न्यूज़। बिहार के नालंदा जिले के प्रसिद्ध पर्यटन व धर्मस्थल राजगीर में सरकारी भूमि खास कर जंगल की जमीन की व्यापक पैमाने पर लूट हुई है और आज भी बेरोकटोक जारी है। पुलिस-प्रशासन और विभागीय लोग भी इसमें गोरखधंधे में संलिप्त हैं।
कल जंगल भूमि पर हरे-भरे पेड़ काटने के बाद अचानक सुर्खियों में आये समाजिक संस्था वीरायतन को लेकर एक सनसनीखेज मामला प्रकाश में आया है, जो यह प्रमाणित करता है कि उसके कर्ताओं ने जंगल की जमीन पर अवैध कब्जा कर रखा है और आगे भी करने की जुगत भिड़ाये है।
वीरायतन के राजगीर प्रबंधक अंजनी कुमार ने राजगीर थाना में भादवि की धारा 147, 148, 149, 323, 341, 324, 307, 379, 387, 504, 506, 120 (बी) के तहत कांड संख्या- 28/17 दर्ज करा रखा है।
इस एफआईआर में मार्कवादी नगर निवासी अखिलेश राजवंशी, सुरजु राजवंशी, साधु राजवंशी, उदय राजवंशी, नन्दु राजवंशी, लालो राजवंशी, रितलाल राजवंशी, बाल्मिकी राजवंशी, लौलेन्द्र राजवंशी, लक्ष्मण राजवंशी, महेन्द्र राजवंशी आदि को नामजद अभियुक्त बनाया गया है।
इस एफआईआर में स्पष्ट लिखा है कि खाता नंबर-482 की खसरा नंबर- 1602 वीरायतन की खरीदगी जमीन है और उसकी मालगुजारी रसीद वर्तमान वर्ष तक कटी हुई है। उस जमीन पर काम कराने के दौरान आरोपियों ने हरवे-हथियार से लैस होकर 10 लाख की रंगदारी मांगी और नहीं देने पर जान से मारने की धमकी दी। आरोपियों ने उक्त जमीन पर काम कर रहे मजदूरों पर भी हमला किया और एक मजदूर को गले में गमछी लगा कर मारने का प्रयास भी किया। मजदूरों का पैसा भी छीन लिया गया।
वहरहाल, इस मामले में पुलिस ने आगे अब तक कोई कार्रवाई नहीं है। न तो किसी आरोपी की गिरफ्तारी हुई है और न ही किसी आरोपी ने किसी न्यायालय से जमानत ही ली है।
यहां पर बता दें कि दलित वर्ग के सभी आरोपी भी उसी जंगल की भूमि पर अपना झुग्गी-झोपड़ी बना कर वर्षों से रह रहे हैं, जिस पर वीरायतन खुद की खरीदगी जमीन होने का दावा कर रही है।
लोग बताते हैं कि वीरायतन द्वारा मार्क्सवादी नगर के गरीबों पर वेबुनियाद नामजद एफआईआर करने के पीछे उजाड़ने-दबाने की मंशा साफ झलकती है। इसमें स्थानीय थाना प्रभारी की संलिप्ता भी उजागर होती है।
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज के पास खाता नंबर- 482 एवं खसरा नंबर- 1602 की खतियान कॉपी उपलब्ध है, उस आलोक यह जमीन गांव-महाल-परगना- राजगीर और थाना- बिहार के अन्तर्गत गैरमजरुआ ठीकेदार, भूमि का मालिक- जंगल, कुल रकबा-42.80 एकड़ दर्ज है।
बिहार सरकार के राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग की अधिकृत वेबसाइट पर दर्ज विवरण के अनुसार खाता नंबर-482 में कुल 32 लोग हैं, उसमें किसी भी खसरा में वीरायतन या उससे जुड़े नाम का कोई रेकर्ड उपलब्ध नहीं है। खाता नंबर-482 में खसरा नंबर-1602 हैं ही नहीं।
जाहिर है कि खाता नंबर-482 का खसरा नंबर- 1602, चूकि जंगल यानि वन विभाग की भूमि है, इसलिये उसे राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने किसी नाम से दर्ज नहीं की है।
अब सबाल उठता है कि जंगल की जमीन को अपनी जमीन बताने वाली वीरायतन के सामने पूरा पुलिस-प्रशासन पंगु क्यों है। वन विभाग अपनी जमीन पर यथोचित कार्रवाई क्यों नहीं कर रही।
सबसे बड़ा सबाल कि एक बार वीरायत के किस शिकायत पर इस वन भूमि की जमीन पर वर्षों से बसे दलित-गरीब तबके के लोगों को उजाड़ने के लिये राजगीर एसडीओ, डीएसपी, सीओ, बीडीओ, थाना प्रभारी आदि पूरे लाव-लश्कर के साथ कैसे धावा बोल दिया था ?