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शिक्षक दिवसः निजी शिक्षण-संस्थानों के दर्द भी समझिए मेरे सरकार !

शिक्षक दिवसः निजी शिक्षण-संस्थानों के दर्द भी समझिए मेरे सरकार !

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज़ नेटवर्क ब्यूरो)। आज शिक्षक दिवस है। शिक्षकों के सम्मान एवं आदर देने का दिन।पूजा का विधान है। लेकिन पिछले छह माह से कोरोना के नाम पर शिक्षा को अंधेरी गुफा में धकेल दिया गया है। समाज के शिक्षक अवहेलना का पात्र बन गया है।

वैश्विक महामारी कोरोना में भविष्य की रेंगती तस्वीर में शिक्षा का आंगन उदास है। ऐसे में निजी स्कूलों के लिए अब अस्तित्व का प्रश्न सामाजिक और नैतिक बहस तक पहुंच रहा है।

कोरोना संकट में निजी स्कूलों के दर्द को न सरकार समझ रही है और न समाज। पिछले छह महीने से कोरोना संक्रमण को लेकर देश भर में सभी निजी एवं सरकारी शिक्षण संस्थान बंद है। जिसका खामियाजा निजी स्कूलों एवं कार्यरत निजी शिक्षकों को भुगतना पड़ रहा है।

कोरोना महामारी के कारण निजी स्कूलों के शिक्षकों के सामने भूखमरी की नौबत जहाँ आ गई है, वहीं कई निजी स्कूलों के अस्तित्व खतरे में है, जहाँ ताले लटकने की संभावना बढ़ गई है।

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संचालक स्कूल बंद कर अन्य सबंल अपना रहें है। लेकिन वहाँ के शिक्षकों की स्थिति दयनीय हो चुकी है। संचालक द्वारा स्कूल बंद कर दिये जाने के बाद उनके सामने आजीविका को लेकर बडा़ समस्या उत्पन्न हो गया है।

स्कूलों में फीस वसूली नहीं होने की वजह से स्कूल संचालकों के साथ-साथ शिक्षक भी आर्थिक संकट से जूझ रहे है। उनके पास जो जमा पूंजी थी वह कब का खत्म हो चुका है।

ऐसे में शिक्षक भयावह आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं। जो घर से संपन्न है, उनका गुजारा तो किसी प्रकार चल जा रहा है। लेकिन जो पूर्णतः शिक्षा व्यवसाय पर जीवित है, उनकी हालत अब मरनासन्न स्थिति में है।

ग्रामीण इलाके के शिक्षक खेती की ओर चले गए है। लेकिन जो किराए के मकान में रहकर शिक्षण कार्य में है, उनकी आर्थिक हालत खराब हो चुकी है। जिंदा कैसे है? यह बडा़ सवाल उनके सामने है।

उन्हें पांच-छह लोगों का घर भी चलाना है। किराया और बिजली बिल भी भरना है। जबकि आय का स्रोत बिलकुल बंद हो चुका है। ऐसे व्यवसाय के लोग किसी दूसरे रोजगार में जा भी नहीं सकते। ऐसे में उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

कोरोना महामारी के बीच लॉकडाउन की वजह से छोटे, मंझोले विदयालय और कोचिंग संचालकों के सामने भयावह आर्थिक संकट पैदा हो गया है।

मार्च से ही स्कूल बंद है और निकट भविष्य में स्कूलों के खुलने के आसार भी नजर नहीं आ रहा है।बिहार में होली की छुट्टी के बाद से ही लाँकडाउन है। ऐसे में निजी स्कूल फरवरी-मार्च की फीस वसूल नहीं सके। जिससे निजी स्कूलों की स्थिति बहुत खराब हो चुकी है।

चार महीने से स्कूल बंद रहने की वजह से निजी स्कूल संचालकों पर स्कूल की देखरेख के साथ अपने परिवार की आजीविका चलाने का भी संकट सामने है। वैसे स्कूल जो किराए पर चल रहे है, उनकी स्थिति और बदतर है।

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निजी स्कूलों के सामने सैलरी, रख-रखाव खर्च, स्कूली वाहनों का लोन, अन्य खर्च पूरा करना आसान नहीं है। स्कूलों के बंद रहने की वजह से फीस आना संभव नहीं है। ऐसे में संचालक समेत शिक्षकों के सामने भूखो मरने की नौबत आ गई है।

निजी स्कूल संचालकों का कहना है कि शिक्षा के अधिकार के तहत नामांकित 25%बच्चों की राशि का भुगतान सरकार की ओर से नहीं किया गया है। अगर भुगतान हो जाता तो शिक्षकों को वेतन भुगतान भी सकता था।

संचालकों की शिकायत है कि अभिभावक मार्च का फीस भी जमा नहीं कर रहें है।आँनलाइन शिक्षा प्रदान की जा रही है। इसके बाद भी फीस को लेकर अभिभावक रूचि नहीं ले रहें है।

ऑनलाइन पढ़ाई के बाद भी जब फीस नहीं मिलेगा तो स्कूल कैसे चल पाएगा। निजी स्कूलों को सरकार द्वारा विशेष आर्थिक मदद की दरकार है। जिससे वह इस संकट काल में विधालय का अस्तित्व बचाएं रख सकें।

निजी स्कूलों-कोचिंग की अमानत में एक बड़ा रोजगार पलता है। सरकारी संस्थाओं के मुकाबले निजी क्षेत्र की परिपाटी में हर औचित्य  की कीमत है तथा इसका चयन एक कड़ी की प्रतिस्पर्धा के बीच होता है।

प्राइमरी कक्षाओं से लेकर उच्च शिक्षा में लगभग 70 फीसदी अभिभावक अपने बच्चों के लिए निजी स्कूलों को प्राथमिकता देते हैं। कमोबेश यही आंकड़ा पूरी स्कूली शिक्षा के कवच में निजी स्कूलों की अहमियत बढ़ा रहा है।

निजी स्कूलों के लिये यह शैक्षणिक सत्र कई तरह का मानसिक और आर्थिक दबाव लेकर आया है। सबसे बड़ी चुनौती छात्रों के बीच अध्ययन की ऊर्जा बरकरार रखने की है।

जाहिर है ऑनलाइन शिक्षा की वैकल्पिक व्यवस्था के नये संकल्प तैयार हो रहे हैं। लेकिन इसे मुकम्मल करने की वयवस्था अभी भी धरातल पर नहीं है।

इस कोरोना काल में छात्रों के भविष्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।कौन जानता है कि स्कूल कब खुलेगें, और छात्र समुदाय के लिये भविष्य की तैयारियों को खुला आकाश कब नसीब होगा,यह कोई नहीं जानता?

कौन जानता है कि कोरोना संकट में निजी स्कूलों और शिक्षकों पर आफत किस हद तक तबाही मचाएगी कोई नहीं जानता। कितने घर-परिवार तबाह होगें, कोई नहीं जानता। ऐसे में निजी शिक्षकों के आत्महत्या की भी खबरें आनी शुरू हो गई है।

कहने को इस महामारी से सभी लड़ रहे हैं। लेकिन सरकार शिक्षण संस्थान को बंद रखे हुए हैं। जबकि सरकारी कर्मचारियों को घर बैठे वेतन मिल रहा है। लेकिन निजी शिक्षकों को देखने वाला कोई नहीं है।

इस समय बहुतों की नौकरी खत्म हो चुकी है। जब आपके बच्चे स्कूल-कोचिंग जाएंगे तो कोई जरूरी नहीं है कि फिर से क्लास में वही सर-मैडम मिल जाएंगे, जो आपके बच्चे के साथ कदम से कदम  मिलाकर हमेशा खड़े रहते थे।

आपके बच्चों के सपनों  को पंख लगाने के लिए हमेशा प्रेरित कर सही दिशा देते थे। शिक्षकों को इस संकट में अभिभावक अपने आप से सवाल करिये तो समझ आएगा कि आपके बच्चों की सफलता की डोर उन शिक्षकों के हाथों में था। जिनका साथ आपने इस संकट की घड़ी में छोड़ दिया। कभी फोन कर हालचाल भी नहीं पूछा।

जब आपके बच्चे आपसे सवाल करेगें कि हमारे गुरु को इस संकट में जहाँ वे बेरोजगार हो गये उन्हें गुरु दक्षिणा नहीं दे सके, उल्टे उन्हें बुरे हालात में छोड़ दिये! तब आपके पास इन सवालों का जबाब होगा।

जब आपके बच्चे आपसे पूछेंगे कि ऐसी शिक्षा का क्या मतलब जब संकट में हम अपने गुरु की मदद नहीं कर सके। फिर ऐसे शिक्षक दिवस का क्या अर्थ रह जाएगा। आज ज्ञान के देवता के दुख पर पर्याप्त मात्रा में बह सके इतने आंसू कहाँ से लाए ?

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