सम्राट चौधरी पर प्रशांत किशोर की सीधी चोट, तारापुर हत्याकांड में गिरफ्तार कर बर्खास्त करें सीएम

यह मामला बिहार की सियासत को नई दिशा दे सकता है। क्या चौधरी को न्याय का सामना करना पड़ेगा, या यह आरोप राजनीतिक साजिश साबित होंगे? आने वाले दिनों में और खुलासे होने की संभावना है।
पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार की सियासत में भूचाल मचाने वाले जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने एक बार फिर उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पर सीधी चोट की है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर एक पोस्ट के जरिए पीके ने चौधरी पर 1995 के तारापुर हत्याकांड में आरोपी होने का गंभीर आरोप लगाया है।
उन्होंने दावा किया कि चौधरी ने अदालत में फर्जी दस्तावेज जमा कर खुद को नाबालिग साबित किया था, जबकि वास्तव में वे उस समय वयस्क थे। इस विरोधाभास ने न केवल चौधरी की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि पूरे मामले को एक बड़े षड्यंत्र के रूप में पेश किया है। पीके ने तत्काल गिरफ्तारी और पद से बर्खास्तगी की मांग करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राज्यपाल से हस्तक्षेप की अपील की है।
यह मामला बिहार के मुंगेर जिले के तारापुर इलाके से जुड़ा है, जहां 24 अप्रैल 1995 को एक सनसनीखेज हत्याकांड हुआ था। स्थानीय सूत्रों और पुराने कोर्ट रिकॉर्ड के मुताबिक सात निर्दोष लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई थी और सभी पीड़ित कुशवाहा समाज से ताल्लुक रखते थे। यह घटना उस दौर की जातिगत राजनीति और गुंडागर्दी का प्रतीक बनी, जब बिहार में अपराध और सियासत का गठजोड़ आम था।
हत्याकांड के आरोपी के रूप में सम्राट चौधरी का नाम सामने आया, जो तब बिहार भाजपा के युवा नेता के रूप में उभर रहे थे। केस नंबर 44/1995 दर्ज होने के बाद चौधरी पर अभियोजन की कार्रवाई शुरू हुई, लेकिन अदालत में पेश किए गए दस्तावेजों ने पूरी तस्वीर बदल दी।
चौधरी ने दावा किया कि वे नाबालिग हैं और उनके जन्म वर्ष 1981 दर्ज कराया गया। इसका मतलब था कि हत्याकांड के समय उनकी उम्र महज 14 वर्ष (या उपयोगकर्ता के अनुसार 15 वर्ष) थी। नाबालिग होने के कारण अदालत ने उन्हें रिहा कर दिया और मामला वहीं ठंडा पड़ गया।
सुप्रीम कोर्ट तक यह केस पहुंचा, जहां भी यही दलील स्वीकार की गई। लेकिन अब प्रशांत किशोर ने इस फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा है कि यह न्यायिक प्रक्रिया का अपमान है। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में जोर देकर कहा है कि यह न केवल एक अपराधी को बचाने का प्रयास था, बल्कि सिस्टम की कमजोरी को उजागर करता है।
पीके के आरोपों का केंद्र बिंदु चौधरी की उम्र को लेकर है, जो एक बड़ा विरोधाभास पैदा करता है। 2020 में विधान परिषद चुनाव लड़ते समय चौधरी ने अपना हलफनामा दाखिल किया, जिसमें उन्होंने खुद की उम्र 51 वर्ष बताई। गणना करने पर साफ होता है कि 1995 में उनकी उम्र कम से कम 26 वर्ष रही होगी। यदि वे 2020 में 51 वर्ष के थे तो 25 वर्ष पहले (1995) वे वयस्क थे। नाबालिग कतई नहीं। यह खुलासा चौधरी के लिए राजनीतिक रूप से घातक साबित हो सकता है।
प्रशांत किशोर ने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखाहै कि 1995 में तारापुर हत्याकांड में सम्राट चौधरी आरोपी थे। अदालत में फर्जी जन्म प्रमाण पत्र जमा कर वे नाबालिग बने, लेकिन 2020 के हलफनामे से साफ है कि वे 26 साल के थे। क्या यह फर्जीवाड़ा था? क्या भाजपा का यह नेता अपराधी है? यह पोस्ट वायरल हो चुकी है और सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है।
पीके ने आगे लिखा है कि यदि 2020 का हलफनामा सही है तो अदालत में जमा दस्तावेज फर्जी थे। यदि पुराना दस्तावेज सही है तो चुनावी हलफनामा झूठा है। दोनों में से एक तो अपराध है।
यह आरोप बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से ठीक पहले आया है, जब जन सुराज पार्टी अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है। प्रशांत किशोर ने इसे जातिगत राजनीति पर करारा प्रहार बताया।
उन्होंने कहा कि कुशवाहा समाज के सात बेटों की हत्या का आरोपी आज कुशवाहा वोट बैंक का ठेकेदार बन बैठा है। यह बिहार की राजनीति का काला सच है। पीके ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अपील की कि वे चौधरी को तत्काल बर्खास्त करें, वरना एनडीए की साख दांव पर लग जाएगी।
जन सुराज पार्टी कल (30 सितंबर) राज्यपाल से मिलने का कार्यक्रम बना रही है, जहां चौधरी की बर्खास्तगी की मांग सौंपी जाएगी। यदि सरकार ने कार्रवाई नहीं की तो पीके ने हाईकोर्ट जाने की धमकी दी है। इस बीच भाजपा ने अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन पार्टी के अंदर खलबली मच गई है। सम्राट चौधरी ने पहले के आरोपों (जैसे शिक्षा योग्यता पर) का खंडन किया था, लेकिन इस बार चुप्पी साधे हुए हैं।
बता दें कि सम्राट चौधरी का राजनीतिक सफर विवादों से भरा रहा है। 1990 के दशक में वे बिहार भाजपा के युवा विंग से जुड़े और कथित तौर पर गुंडागर्दी के आरोपों से घिरे रहे। बाद में नाम बदलकर (कुछ रिपोर्ट्स में सम्राट कुमार मौर्या से सम्राट चौधरी) उन्होंने खुद को कुशवाहा नेता के रूप में स्थापित किया। 2020 में नीतीश सरकार में उपमुख्यमंत्री बने, लेकिन पीके के लगातार हमलों ने उनकी छवि को धक्का पहुंचाया है। शिक्षा पर भी सवाल उठे हैं। वर्ष 1998 के हलफनामे में सातवीं पास बताया, जबकि अब डॉक्टरेट का दावा कर रहे हैं।