पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार के छह विशिष्ट उत्पादों को जल्द ही भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग मिलने की संभावना है। इनमें गया का तिलकुट और पत्थलकटी, हाजीपुर का केला, नालंदा की बावनबुटी, उदवंतनगर का खुरमा और सीतामढ़ी की बालूशाही शामिल हैं।
राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने इन उत्पादों के लिए आवेदन किया है, जिसकी ऑनलाइन सुनवाई पूरी हो चुकी है। जबकि चेन्नई स्थित जीआई रजिस्ट्री कार्यालय में ऑफलाइन सुनवाई अभी शेष है।
जीआई टैग किसी भी उत्पाद को विशिष्ट पहचान देता है। इससे उसकी वैश्विक स्तर पर मांग बढ़ती है। बिहार के कई उत्पाद पहले ही जीआई टैग प्राप्त कर चुके हैं। जिनमें भागलपुर का जर्दालु आम, भागलपुर की सिल्क, मुजफ्फरपुर की शाही लीची, करतनी चावल, सिलाव का खाजा, मगही पान और मधुबनी पेंटिंग प्रमुख हैं। इन उत्पादों की वैश्विक पहचान बनने से राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल रही है और किसानों तथा शिल्पकारों को भी बड़ा लाभ हो रहा है।
बिहार में जीआई टैग प्रक्रिया को तेज करने और उत्पादों की ब्रांडिंग के लिए सबौर कृषि विश्वविद्यालय भागलपुर में नाबार्ड के सहयोग से एक जीआई टैग फैसिलिटेशन सेंटर खोला गया है। यह केंद्र किसानों और शिल्पकारों को उनके उत्पादों की वैश्विक पहचान दिलाने में सहायता करेगा।
विशेषज्ञों के अनुसार केवल जीआई टैग प्राप्त कर लेना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि इसके साथ ब्रांडिंग, प्रमोशन और उत्पादों के लिए क्यूआर कोड जेनरेट करना भी आवश्यक है। इससे मूल उत्पादक या कलाकार को सीधा लाभ मिल सकेगा और ग्राहकों को भी असली उत्पाद की पहचान करने में आसानी होगी।
बिहार में कृषि और शिल्प से जुड़े कई उत्पाद पीढ़ियों से अपनी गुणवत्ता और विशिष्टता के लिए प्रसिद्ध हैं। जीआई टैग मिलने से इनकी प्रतिष्ठा और बढ़ेगी। इससे राज्य के किसानों, कारीगरों और उद्यमियों के लिए नए बाजार के द्वार खुलेंगे।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी ऑफलाइन सुनवाई के बाद ये छह उत्पाद कब आधिकारिक रूप से जीआई टैग प्राप्त करते हैं। इससे न केवल बिहार की संस्कृति और परंपरा को प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक उन्नति की एक नई राह भी खुलेगी।
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