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नजीरः डॉ. ललन कुमार ने ईमानदारी की मिसाल से शिक्षा व्यवस्था को दिखाया आयना

पटना (जयप्रकाश नवीन)। भ्रष्टाचार की बात करना वैसा ही है जैसे सत्यवादी हरिश्चंद्र की कथा सुनाना। जहां भ्रष्टाचार की कथा उतनी ही पुरानी है जितनी राजा हरिश्चंद्र की कहानी। ईमानदारी भले ही इस देश में लुप्त चीज हो गई है,वहीं जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों को बिसार दिया गया।

ज्ञान की धरती, गुरु वशिष्ठ की धरती पर आज भी ईमानदारी बरकार है। बिहार में एकतरफ जहां स्कूलों -कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से पढ़ाई समाप्त हो चुकी है। शिक्षक बिना पढ़ाएं लाखों वेतन उठा रहें हैं। ऐसे में आज भी गुरू वशिष्ठ की परंपरा को ईमानदारी से जीवित रखने वाले शिक्षक इस धरती पर है।

Nazir Dr. Lalan Kumar showed the education system by example of honesty 1बिहार के बीआरए विश्वविद्यालय से संबद्ध नीतीश्वर महाविद्यालय के हिंदी विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ ललन कुमार अकादमिक जगत में काफी सुर्खियों में बने हुए हैं।

उन्होंने अपने विभाग में छात्रों की उपस्थिति लगातार नगण्य रहने पर अपनी दो साल और नौ महीने का वेतन 23लाख, 82हजार 228 रूपये एकमुश्त चेक के माध्यम से कुलसचिव के हाथों सौंप दी। उनके इस निर्णय से कॉलेज में मानों सन्नाटा छा गया।

उन्होंने मंगलवार को विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ आर के ठाकुर को राशि का चेक सौंप दिया। उनके इस निर्णय से कुलसचिव भी हतप्रभ रह गए। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि कोई शिक्षक अपनी इतनी बड़ी राशि कैसे लौटा सकता है वो भी छात्रों के नहीं पढ़ाए जाने की बात को लेकर।

कुलसचिव को जब मामला समझ में आया तो उन्होंने डॉ. ललन कुमार को चेक रख लेने का आग्रह किया लेकिन वे अपने निर्णय पर अड़े रहे।

डॉ ललन कुमार ने कहा कि अगर वे चेक नहीं लेते हैं तो वह इस्तीफा दे देंगे। उनके इस्तीफे के निर्णय के बाद कुलसचिव ने अनमने मन से चेक वापस ली।

नीतीश्वर महाविद्यालय के हिंदी विभाग के डॉ. ललन कुमार का कहना है कि उन्होंने 24 सितंबर 2019 को महाविद्यालय में अपनी सेवा दी। उनके विभाग में लगभग 11 सौ छात्र हैं, लेकिन वे कभी भी पढ़ाई के लिए कालेज नहीं आएं। उनकी उपस्थिति नगण्य रहीं। महाविद्यालय सिर्फ परीक्षा फार्म भरने के लिए रह गया है। ऐसे में उनकी अंतरात्मा छात्रों को बिना पढ़ाएं वेतन उठाना नागवार लगा।

उन्होंने महात्मा गांधी के बताए मार्ग और अंतर्रात्मा की आवाज पर नियुक्ति की तारीख से लेकर अबतक की समूची राशि विश्वविद्यालय को समर्पित कर दी।

हालांकि चर्चा है कि कुलपति ने साफ कह दिया है कि राशि लौटाने का कोई प्रावधान नहीं है। उन्होंने सहायक प्राध्यापक को फिलहाल समझा दिया है। वे इस संबंध में आगे उच्च स्तरीय बैठक में मामले को रखेंगे।

सहायक प्राध्यापक डॉ ललन कुमार के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने कुलपति को पत्र लिखकर कहा था कि वह एम ए के छात्रों की कक्षा लेना चाहते हैं, लेकिन छात्र नहीं आते हैं, इसलिए उनकी पढ़ाई बेकार जा रहीं है।

उन्होंने कुलपति से अपना तबादला आरडीएस या एमडीडीएम कालेज में करने की मांग की थी। लेकिन विश्वविद्यालय कोई निर्णय नहीं ले सका।

उधर, नीतीश्वर कॉलेज के प्राचार्य डॉ. मनोज कुमार ने कहा कि शिक्षक ने तबादले को लेकर कोई आवेदन उनके पास नहीं दिया है। इसलिए पूरा मामला उनके संज्ञान में नहीं है। यदि वह कह रहे हैं कि छात्र नहीं आते हैं तो उन्हें छात्रों को बुलाना चाहिए।

कॉलेज में हिन्दी पढ़ने वाले कई छात्र हैं। ऑनर्स के अलावा एमआईएल की भी पढ़ाई होती है। नॉन हिन्दी वाले भी 50 नंबर का हिन्दी पढ़ते हैं। शिक्षक कोशिश करेंगे तो छात्र आएंगे।

मूल रूप से वैशाली निवासी डॉ ललन कुमार सामान्य परिवार से आते हैं। इंटर की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक, जेएनयू से स्नातकोत्तर और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी की। गोल्ड मेडल से सम्मानित डॉ. ललन कुमार को अकादमिक एक्सीलेंस प्रेसिडेंट सम्मान भी मिल चुका है।

डॉ ललन कुमार ने अपने पेशे के प्रति ईमानदारी प्रदर्शित करते हुए मुंशी प्रेमचंद के उस कथन को यथार्थ किया है कि जिस दिन मजदूर मजदूरी नहीं करें तो उसे रोटी खाने का अधिकार नहीं है।

स्वयं डॉ कुमार कहते हैं कि शिक्षक इसी तरह सैलरी लेते रहें तो कुछ सालों में उनकी अकादमिक मृत्यु हो जाएगी। कैरियर तभी बढ़ेगा जब लगातार अकादमिक उपलब्धियां हो‌।

नीतीश्वर महाविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ ललन कुमार के इस कदम से बिहार की शिक्षा जगत में एक नजीर जरूर बनेंगे। वहीं उन शिक्षकों के लिए एक संदेश है जो बिना छात्रों को पढ़ाएं हर साल लाखों वेतन उठा रहें हैं।

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