
रांची (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क)। झारखंड की राजनीति और प्रशासन में ‘अबुआ राज’ का नारा कितना खोखला साबित हो रहा है, इसका ताजा उदाहरण रांची के कांके अंचल में चल रहे भूमि घोटालों की दिल दहला देने वाली कहानी है। यहां भूमि माफियाओं और भ्रष्ट नौकरशाहों की मिलीभगत से हजारों एकड़ जमीन असली मालिकों के हाथ से छिन रही है, जबकि हेमंत सोरेन सरकार की ‘अबुआ राज’ (हमारा राज) की बातें सिर्फ चुनावी जुमलों तक सिमटकर रह गई हैं।
क्या यह ‘अबुआ राज’ नहीं, बल्कि ‘बबुआ राज’ (भ्रष्टाचार का राज) है, जहां आम आदमी की जमीन पर लुटेरों का कब्जा हो रहा है? हमारी विशेष जांच टीम ने इस काले कारोबार की परतें उधेड़ी हैं, जो न सिर्फ आर्थिक अपराध है, बल्कि लाखों परिवारों की जिंदगी को तबाह करने वाली साजिश है।
भूमि घोटालों का खौफनाक जाल: कांके अंचल से रजिस्ट्री कार्यालय तक
झारखंड की राजधानी रांची में भूमि घोटाले कोई नई बात नहीं, लेकिन हाल के वर्षों में यह इतना बेकाबू हो गया है कि असली जमीन मालिक खुद को मौत के मुंह में धकेला हुआ महसूस कर रहे हैं। कांके अंचल कार्यालय, जहां से दाखिल-खारिज की प्रक्रिया शुरू होती है, वहां भ्रष्टाचार का ऐसा जहरीला जाल फैला है कि फर्जी दस्तावेजों पर जमीनें हड़पी जा रही हैं।
हमारी टीम ने स्थानीय गांवों और जंगलों में जाकर पीड़ितों से बात की, जहां सैकड़ों एकड़ ‘जनरल’ जमीन बताकर माफियाओं के हवाले कर दी गई। एक पीड़ित ने बताया कि हमारी खून-पसीने की कमाई से खरीदी जमीन पर अचानक फर्जी रसीदें कटने लगीं। 25 डिसमिल की प्लॉट को 37 डिसमिल दिखाकर लुटेरों को सौंपने की शाजिस रची गई है। यह जादू नहीं, बल्कि घूस का चमत्कार है कि अफसर-कर्मी 25 डिसमिल की प्लॉट को रिकार्ड में 37 डिसमिल बना देता है।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की हालिया छापेमारी ने इस साजिश को और पुख्ता किया है। ईडी की रिपोर्ट्स के मुताबिक कांके अंचल में 200 एकड़ से ज्यादा जमीन इस घोटाले की भेंट चढ़ चुकी है। म्यूटेशन रजिस्टर में हेराफेरी, पुराने रिकॉर्ड मिटाना और झारभूमि पोर्टल पर क्षेत्रफल बढ़ाकर दिखाना। यहां सब आम हो गया है। CNT एक्ट 1908 की धारा 46 और 49 का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है, लेकिन अंचल अधिकारी (सीओ) उप समाहर्ता (डीसीएलआर) से लेकर उपायुक्त तक सब चुप हैं। क्या वजह है कि शिकायतें फाइलों में दफन हो जाती हैं? क्या उच्च स्तर पर कोई ‘सेटिंग’ है?
नौकरशाहों की बेलगाम गैंग: हेमंत सरकार की उदासीनता
हेमंत सोरेन सरकार में ‘अबुआ राज’ का दावा किया जाता है, लेकिन हकीकत यह है कि नौकरशाहों की गैंग बिल्कुल बेलगाम हो गई है। अपर समाहर्ता (भूमि राजस्व) कार्यालय में जांच रिपोर्ट्स महीनों तक लंबित रहती हैं, जबकि उपायुक्त (डीसी) कार्यालय की चुप्पी रहस्यमयी है।
एक पूर्व ईडी अधिकारी ने हमें बताया कि झारभूमि पोर्टल पारदर्शिता का ढोंग है। अधिकारियों की मिलीभगत से उसमें छेड़छाड़ की जाती है और घोटाले जारी रहते हैं। नेता, अफसर और माफिया सब यहां एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं।
भूमि निबंधन (रजिस्ट्री) कार्यालय में तो स्थिति और भी भयावह है। यहां जाली दस्तावेजों पर रजिस्ट्री का खेल चल रहा है। भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) 2023 की धारा 316(2), 336-339 और 61 के तहत यह गंभीर अपराध है, लेकिन जांच एजेंसियां जैसे सो रही हैं।
राज्य राजस्व विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि 2024-25 में रांची जिले में 500 से ज्यादा म्यूटेशन अपील जाली दस्तावेजों से जुड़ी थीं। पीड़ित रैयत कहते हैं कि हमारी जमीन पर महल और रिसॉर्ट उग रहे हैं और हम मौत के मुंह में धकेले जा रहे हैं। गठित एसआईटी या एसीबी में शिकायत करते हैं, लेकिन जांच रुक जाती है।
असली मालिकों की चीख: सिस्टम या साजिश?
यह कहानी उन लाखों रैयतों की है, जो सालों से अपनी जमीन पर शांतिपूर्वक कब्जा रखते थे, लेकिन फर्जी दाखिल-खारिज ने सब तबाह कर दिया। डीसीएलआर कोर्ट में तारीख पर तारीख मिलती है, जबकि झारखंड म्यूटेशन मैनुअल की धारा 4 समयबद्ध प्रक्रिया का वादा करती है। देरी की यह रणनीति असली मालिकों को आर्थिक और मानसिक यातना देती है।
कांके में भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रदर्शन हो चुके हैं, लेकिन सुधार की कोई किरण नहीं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खुद ईडी जांच का सामना कर चुके हैं और जेल तक जा चुके हैं। ऐसे ही मामले में रांची के पूर्व आयुक्त छवि रंजन बीते दिन ही सुप्रीम कोर्ट से जमानत पर जेल की सलाखों से बाहर आ हैं। फिर भी इन मामलों में उनकी उदासीनता सवाल खड़े करती है। क्या यह उच्च स्तर की साजिश है, जहां जमीन मालिकों की ‘मौत’ पर पैसा कमाया जा रहा है?
क्या होगा समाधान? समय आ गया है सख्त कदमों का
झारखंड में भूमि घोटालों को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। झारभूमि पोर्टल को और पारदर्शी बनाना, अधिकारियों पर सख्त निगरानी और फर्जी दस्तावेजों पर तुरंत कार्रवाई जरूरी है। ईडी और एसीबी को और सक्रिय किया जाए, ताकि माफिया-अफसर गठजोड़ टूटे।
हेमंत सरकार को ‘अबुआ राज’ को हकीकत बनाना होगा, वरना यह ‘बबुआ राज’ राज्य को तबाह कर देगा। असली जमीन मालिकों की चीखें अब अनसुनी नहीं रहनी चाहिएं। क्या सरकार जागेगी, या यह काला खेल जारी रहेगा? समय बताएगा, लेकिन सच्चाई यही है कि झारखंड की जमीन अब सुरक्षित नहीं।
(यह संपादकीय आलेख एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क की विशेष जांच पर आधारित है।)









