देश

अगर कुछ निःशुल्क करना है तो स्वास्थ्य सेवाएं करिए,आखिर चिकित्सक क्यों नहीं देना चाहते सरकारी सेवा !

इंडिया न्यूज रिपोर्टर डेस्क। देश में स्वास्थ्य सुविधाएं वेंटिलेटर पर हैं, अगर यह कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। देश में सरकारी स्तर पर दी जाने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर दावे तो बड़े बड़े किए जाते हैं, पर जमीनी हकीकत क्या है यह देखने की फुर्सत किसी को नहीं होती है।

सरकारी स्तर पर निशुल्क स्वास्थ्य सुविधाएं देने का दावा केंद्र और सूबाई सरकारों के द्वारा किया जाता है पर जैसे ही आप सरकारी अस्पताल पहुंचते हैं तो सायकल स्टैण्ड से लेकर बाहर निकलते समय तक आपकी जेब तराशी का काम बहुत ही करीने से किया जाता है। आप पर्ची बनवाने जाईए तो पैसे दीजिए, अगर भर्ती की पर्ची बनवाना है तो उसकी दरें अलग हैं।

यह सच है कि देश में कुल आबादी का एक बहुत बड़ा भाग गांवों में रहता है। महापुरूषों ने भी यही कहा है कि देश की आत्मा गांव में ही बसती है। गांव में ही भारत बसता है यह कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगा।

ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाओं का क्या हाल है यह बात किसी से छिपी नहीं है। गांव में गुणवत्ता वाला ईलाज मुश्किल है तो दूसरी ओर ईलाज पर होने वाला खर्च ग्रामीण वहन करने में सक्षम नहीं होता है।

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ग्रामीण स्वास्थ्य रिपोर्ट को अगर आप आधार बनाकर बात करें तो ग्रामीण अंचलों में शल्य क्रिया करने वाले सर्जन, बच्चों की चिकित्सा करने वाले पीडियाट्रिशियन, ऑब्सटेट्रिशिन्यन्स, भेजष चिकित्सक अर्थात फिजिशियन्स, प्रसूति विशेषज्ञ अर्थात गाईनोकोलॉजिस्ट आदि की 68 फीसदी तक कमी है देश में।

देश भर में लगीाग पांच हजार से ज्यादा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 22 हजार से ज्यादा विशेषज्ञ चिकित्सक चाहिए पर कुल स्वीकृत पदों पर अगर आप नजर डालें तो यह महज 13 हजार 637 ही हैं, इनमें से भी 09 हजार 268 पदों पर ही चिकित्सक काम कर रहे हैं। देश के हृदय प्रदेश में 945 स्वीकृत पद हैं पर यहां इसके विरूद्ध 902 पद रिक्त हैं। बिहार में 836 में 730 पद रिक्त हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं के लिहाज से केरल ही समृद्ध माना जा सकता है।

सवाल यही उठता है कि आखिर चिकित्सक सरकारी सेवाओं से क्यों विमुख हो रहे हैं! एक समय था जब बड़े शहरों में जिला चिकित्सालयों या मेडिकल कॉलेज के भरोसे ही लोग रहा करते थे।

उस दौर में सरकारी अस्पतालों पर ही पूरी तरह निर्भरता हुआ करती थी। शहरों में मेडिकल स्टोर्स भी कम ही हुआ करते थे। अस्पताल से ही दवाएं और मिक्चर मिला करते थे वह भी अलग अलग रंगों वाले।

गांवों में वैद्य हुआ करते थे, नाड़ी वैद्य आपकी नाड़ी देखकर ही आपका मर्ज बता देते थे। आयुर्वेद एवं परंपरागत चिकित्सा पर आश्रित लोग स्वस्थ्य रहा करते थे और लंबा जीवन भी जिया करते थे।

आज जगह जगह कुकुरमुत्ते के मानिंद मेडकल और नर्सिंग कॉलेज खुल चुके हैं। भारी भरकम फीस देकर मेडिकल की पढ़ाई कर चिकित्सक बनने वाले विद्यार्थियों को सरकारी सेवाओं के बजाए निजि क्षेत्र की ओर रूख करना ज्यादा भा रहा है क्योंकि निजि क्षेत्र में उन्हें भारी भरकम पगार जो मिल रही है।

इसके बाद दवा कंपनियों के प्रतिनिधियों के द्वारा इन चिकित्सकों को पिन टू प्लेन की सुविधाएं भी दी जाती हैं। यही कारण है कि शहरी क्षेत्रों के सरकारी अस्पतालों से लेकर ग्रामीण अंचलों तक में रेडियोलॉजिस्ट, स्पेशलिस्ट चिकित्सक, दंत चिकित्सक, गायनोकलाजिस्ट, नेत्र रोग विशेषज्ञ, रेडियोग्राफर, नर्सिंग स्टॉफ, लैब टेक्नीशियन्यस आदि की कमी साफ तौर पर दिखाई देती है।

देखा जाए तो केंद्र और सूबाई सरकारों को चाहिए कि वे मेडिकल की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों को उपाधि लेने के बाद उन्हें पहले अस्थाई पंजीयन प्रदाय करें और साथ ही यह बाध्यता भी रखें कि पढ़ाई करने के बाद सुदूर ग्रामीण अंचल के सरकारी अस्पताल में छः माह, विकास खण्ड स्तर पर एक साल, तहसील मुख्यालय में डेढ़ साल और जिला स्तर पर दो साल तक सेवाएं देने के बाद ही उनका स्थायी पंजीयन किया जाएगा तो देश में सरकारी स्तर पर चिकित्सकों की कमी को काफी हद तक दूर किया जा सकता है।

आज देश में मुफत में राशन मिल रहा है, न जाने कितनी चीजें बिल्कुल निशुल्क ही प्रदाय की जा रही हैं। सरकारों को चाहिए कि अगर उन्हें कुछ निशुल्क देना है तो बस दो ही चीजें निशुल्क प्रदान करें, पहली शिक्षा और दूसरी चिकित्सा सुविधाएं।

इसके साथ ही अगर सरकारी स्तर पर चिकित्सा सुविधा देने के बाद ही स्थायी पंजीयन की बाध्यता रख दी जाती है तो इसके अच्छे परिणाम आने की उम्मीद की जा सकती है। कम से कम एक दशक के लिए तो इसे लागू कर इसके परिणाम देखे ही जा सकते हैं।

सेक्स वर्करों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, कहा- वेश्यावृत्ति भी एक प्रोफेशन, तंग न करे पुलिस

आलेख : क्या उदयपुर अधिवेशन कांग्रेस में जान फूंक पाएगा !

बिहारः औरंगाबाद-गया जिले में जहरीली शराब पीने से 5 लोगों की मौत, दर्जनों बीमार

बिहारः चारा घोटाले की तर्ज हुआ बड़ा चावल घोटाला, 9 साल बाद इन 7 अफसरों पर चलेगा मुकदमा

अमित शाह के कान में कुछ कहती पूजा सिंघल की यह फोटो पोस्ट करने पर एफआईआर

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker