रांची (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। झारखंड प्रदेश के सिंहभूम क्षेत्र की कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा ने आज सोमवार को पिछले दरवाजे से भाजपा का दामन थाम लिया है। इसके साथ ही लंबे अर्से से झारखंड के सियासी गलियारों में चल रहे तमाम अटकलों पर विराम लग गया है।
गीता कोड़ा उसी मधु कोड़ा की पत्नी है, बाबूलाल जिसे बड़े ही शान से झारखंड में भ्रष्टाचार का प्रतीक पुरुष बताकर झामुमो और कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करते थे। अब उसी भ्रष्टाचार के प्रतीक पुरुष मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा कमल पर सवार होकर झारखंड में सुशासन की बहार बहायेंगी !
सबसे अहम सवाल ये है कि मधु कोड़ा को झारखंड में भ्रष्टाचार का प्रतीक पुरुष बताने वाले भाजपा को आज गीता कोड़ा की जरुरत ही क्यों पड़ी? क्यों एक कथित भ्रष्टाचारी के चेहरे के आगे बाबूलाल से लेकर पूरी भाजपा को शरणागत होना पड़ा? और गीता कोड़ा के समक्ष ऐसी क्या सियासी मजबूरी आन पड़ी कि उन्हें मधु कोड़ा की खिल्ली उड़ाते रहे पीएम मोदी के चेहरे में विकास का अक्स नजर आने लगा।
कमल का दामन थामते ही गीता कोड़ा को पीएम मोदी के चेहरे में विकास का अक्स नजर आने लगा। कभी जिस भाजपा पर देश में विभाजनकारी शक्तियों को प्रश्रय देने का आरोप लगाती थी, आज उसी भाजपा की नीतियों में देश का खुशहाल-सुनहरा भविष्य नजर आने लगा।
गीता कोड़ा ने कांग्रेस के उपर वंशवाद की सियासत और तुष्टीकरण की राजनीति कर देश का बेड़ा गर्क करने जैसे गंभीर आरोप लगाया है। उन्होंने दावा किया है कि कांग्रेस की नीतियों से समाज के किसी भी हिस्से को कोई लाभ नहीं होना वाला। कांग्रेस की इस तुष्टीकरण की सियासत के कारण है देश की अस्मिता पर संकट गहराता जा रहा है।
जानकारों का मानना है कि झारखंड की कमान सौंपने वक्त ही बाबूलाल को झामुमो का सबसे मजबूत किला कोल्हान को ध्वस्त करने की जिम्मेवारी सौंपी गयी थी, और इस टास्क को पूरा करने के लिए बाबूलाल कोल्हान के किसी बड़े सियासी चेहरे को भाजपा में शामिल करने को प्रयासरत थे। उनकी नजर गीता कोड़ा पर थी।
अंदर खाने बातचीत की प्रक्रिया भी चल रही थी, क्योंकि झामुमो द्वारा बार-बार चाईबासा सीट पर अपनी दावेदारी करने से गीता कोड़ा को भी अपना सियासी भविष्य भंवर में फंसता दिख रहा था।
दरअसल पश्चिमी सिंहभूम की कुल छह विधान सभा क्षेत्रों में से अभी पांच पर झामुमो का कब्जा है। सरायकेला से खुद सीएम चंपाई सोरेन, चाईबासा से दीपक बिरुआ, मझगांव से निरल पूर्ति, मनोहरपुर से जोबा मांझी और चक्रघरपुर से सुखराम उरांव झामुमो के विधायक है, जबकि एकमात्र विधान सभा सीट जगन्नाथपुर से कांग्रेस के सोना राम सिंकु विधायक हैं।
इस हालत में झामुमो का दावा था कि चाईबासा की सीट को छोड़कर कांग्रेस अपने लिए जमशेदुर संसदीय ले लें। और यहीं से गीता कोड़ा की सियासत फंसती नजर आने लगी थी।
गीता कोड़ा को इस बात का पूरा विश्वास हो गया था कि यदि उसने भाजपा का दामन नहीं थामा तो इस बार संसद पंहुचने की राह में कांटा बिछ सकता है, हालांकि संसद जाने की गीता की राह कितनी आसान हुई है, इस पाला बदल के बाद भी उस पर गंभीर सवाल है। क्योंकि एकमात्र जगन्नाथपुर की सीट है, जहां मधु कोड़ा परिवारा का सियासी पकड़ा है, और यदि भाजपा की बात करें तो पूरे कोल्हान में उसका सुपड़ा साफ है।
इस हालत में गीता कोड़ा इस पलटी बाद भी संसद पहुंचने में सफल रहेंगी। इस पर कई सवाल है। हां, इतना जरुर है कि भाजपा को अब कोल्हान में एक चिराग जरुर हाथ लगा है, लेकिन यह चिराग झामुमो की ताकत को चुनौती दे पायेगी, ऐसा होता नजर नहीं आता।
उल्लेखनीय है कि साल 2000 में इसी सीट से जीत हासिल करने के बाद मधु कोड़ा ने झारखंड की सियासत में अपना परचम गाड़ा था और उसके बाद यह सीट मधु कोड़ा परिवार के हाथ में ही रही। दो-दो बार खुद मधु कोड़ा और दो बार उनकी पत्नी गीता कोड़ा जगन्नाथपुर विधान सभा से विधान सभा तक पहुंचने में कामयाब रही।
जब गीता कोड़ा को कांग्रेस के टिकट पर सांसद बना कर दिल्ली भेज दिया गया तो कांग्रेस ने इस सीट से सोना राम सिंकु पर दांव लगाया और वह इस सीट पर कांग्रेस का पंजा लहराने में कामयाब रहें।
माना जा है कि सोना राम सिंकू की इस जीत के पीछे भी उस इलाके में मधु कोड़ा की लोकप्रियता रही है। कुल मिलाकर पिछले 23 वर्षों से इस सीट पर मधु कोड़ा का राजनीतिक वर्चस्व कायम है। और बाबूलाल का मधु कोड़ा पर दांव लगाने की मुख्य वजह भी यही है।
यह भी उल्लेखनीय है कि अभी कुछ दिन पहले ही बाबूलाल ने कभी कोल्हान का बड़ा कुड़मी चेहरा माने वाले शैलन्द्र महतो की पार्टी में वापसी करवायी है। उनका आंकलन है कि यदि शैलेन्द्र महतो को आगे कर कुड़मी मतदाताओं को पाले में लाया जाए, और गीता कोड़ा के सहारे आदिवासी मतों को लामबंद किया जाए तो भाजपा की गुंजाईश बन सकती है। बची- खुची कसर खुद उनके आदिवासी चेहरे के बदौलत पूरी की जा सकती है।
लेकिन मुसीबत यह है कि जैसे ही बाबूलाल गीता कोड़ा को सामने रख चाईबासा को साधने की दिशा में आगे बढ़ेंगे, उनके सामने मधु कोड़ा का चेहरा होगा। यह वही मधु कोड़ा है, जिसे वह अब तक लूट का चेहरा बताते रहे हैं। रही बात शैलेन्द्र महतो की तो पिछले एक दशक में उनकी सियासी सक्रियता काफी सिमट चुकी है। कहा जा सकता है कि आज की तारीख में वे एक कुंद पड़े तीर से ज्यादा कुछ नहीं है। इस हालत में यह जोड़ी कौन सा कमाल खिला पायेगी, इस पर बड़ा सवाल है।
ऐसे में अहम सवाल यह है कि कांग्रेस से गीता कोड़ा की विदाई के बाद अब यहां इंडिया गठबंधन का चेहरा कौन होगा? इस सवाल का जवाब खोजने के पहले यह याद रखना होगा कि अब यह सीट कांग्रेस के हाथ से निकल कर झामुमो के पास जाने वाली है और चूंकि छह में से पांच विधान सभा में आज के दिन झामुमो का कब्जा है, इस हालत में झामुमो के पास चेहरे की कमी नहीं दिखती। हालांकि वह चेहरा कौन होगा, अब उसके लिए इंतजार करना होगा।
ध्यान देने वाली बात यह भी है कि गीता कोड़ा की असली ताकत उनका हो जनजाति समुदाय से आना है। हो जनजाति की इस लोकसभा में काफी बड़ी आबादी है। झामुमो की बात करें तो चाईबासा से विधायक दीपक बिरुआ भी इसी समुदाय से आते हैं, इस हालत में दीपक बिरुआ झामुमो के लिए तुरुप का पत्ता साबित हो सकते हैं।
लेकिन पार्टी का एक बड़ा खेमा का मानना है कि दीपक बिरुआ अपने आप को राज्य की राजनीति से बाहर करना नहीं चाहते। उनका पूरा फोकस अपने विधान सभा और राज्य की राजनीति पर है। इस हालत में जो दूसरा चेहरा सामने आता है, वह है चक्रधरपुर विधायाक सुखराम उरांव का। खुद सुखराम उरांव भी काफी लम्बे अर्से से टिकट के दावेदार रहे हैं।
दावा यह भी किया जाता है कि गीता कोड़ा की नाराजगी की एक बड़ी वजह सुखराम उरांव की सियासी गतिविधियां ही है। सुखराम उरांव झामुमो के कार्यकर्ताओं को लगातार गीता कोड़ा के विरुद्ध उकसाते रहते हैं और गीता कोड़ा के खिलाफ लगातार झामुमो आलाकमान के पास शिकायत पहुंचाते रहे हैं। और इसी कारण से गीता कोड़ा को कांग्रेस से अपनी विदाई लेनी पड़ी।
अब इस बदले सियासी घटनाक्रम के बाद आगामी लोकसभा चुनाव में चाईबासा संसदीय क्षेत्र के बहाने कोल्हान की राजनीति में अब बिल्कुल बदले माहौल में भाजपा गीता कोड़ा के सहारे कांग्रेस-झामुमो का किस हद तक मुकाबला करने में सक्षम हो पाएगी, यह समझ से उतने ही परे है, जितना कि राजनीति आशंकाओं और संभावनाओं का खेल माना जाता है।
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