राँची (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क)। ‘मैं हूँ झारखंड’ पुस्तक में झारखंड के इतिहास, भूगोल, अर्थव्यवस्था, संवैधानिक प्रावधानों, सामाजिक व धार्मिक व्यवस्था, शिक्षा, कला-संस्कृति, खेलकूद, पर्यावरण सुरक्षा आदि से संबंधित हर सामान्य से लेकर विशिष्ट तथ्यों एवं जानकारियों को संकलित की गई है।
मैं पहली बार कील विश्वविद्यालय, जर्मनी से झारखंड जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं पर शोध करने वर्ष 2018 में गया था। अपने भ्रमण के दौरान मैंने प्राथमिक तौर पर क्षेत्रीय इंडो-आर्यन भाषा (खोरठा, कुडमालि व पंचपरगनिया) पर शोध किया, उसी समय मैंने पाया कि ये भाषायें अपने पडोस के जनजातीय भाषाओं के साथ विशिष्ट गुण साझा करते हैं। मैंने जितना अधिक शोध झारखंड पर किया, उतना अधिक समझ पाया कि जनजातीय एवं आर्यन भाषा बोलने वालों की भाषा-संस्कृति लंबे संपर्क के कारण जटिल था।
वस्तुतः झारखंड राज्य में प्रचुर मात्रा में खनिज एवं प्राकृतिक संपदा पाये जाते हैं। यह राज्य पाषाण काल एवं इसके बाद तक विभिन्न शासनकाल यथा मौर्य, मुगल एवं ब्रिटिश के अधीन था,अतः इसका राजनीतिक इतिहास काफी जटिल था।
मुझे बेहद खुशी है कि देव कुमार जी ने सरल तरीके से जटिल जानकारियों का प्रस्तुतिकरण इस पुस्तक में किया है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस तरह का कार्य झारखंड एवं इसके पहलुओं को पढने वाले पाठकों हेतु अत्यंत ही लाभदायक सिद्ध होगी।
मैं प्रो0 जाँन पिटर्सन का आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने मुझे कील विश्वविद्यालय, जर्मनी में अध्ययन के दौरान झारखंड की भाषायी विविधताओं के बारे में बताया था। वह विगत दो दशकों से विशेषकर पूर्वी भारत में बोली जाने वाली मुंडारी, खडिया एवं बडे क्षेत्र में बोली जाने वाली सादरी / नागपुरी भाषा पर कार्य कर रहे हैं। बाद में मैंने उनके टीम को ज्वाइन कर झारखंड वर्ष 2018 में पहली बार पहुँचा।
प्रारंभ में मैंने इंडो-आर्यन भाषाओं पर शोध किया लेकिन मैंने जितना अधिक कार्य किया उतना ही झारखंड की विविध भाषा-संस्कृति,राजव्यवस्था को जानने की रूचि हुई। मुझे बेहद खुशी है कि लगातार झारखंड के विद्वानों के कार्यों को देखने का अवसर प्राप्त होता रहता है।
देव कुमार जी ने कुछ ही वर्ष पहले अनोखा त्रिभाषी शब्दकोश का रचना कर हम सभी को आश्चर्यचकित किया था जो बिरहोर जनजाति के बच्चों के मातृभाषा सीखने हेतु ही नहीं अपितु गंभीर खतरे की भाषा की सामान्य बोलचाल में प्रयुक्त होने वाले शब्दों को भाषाविदों को समझने में समान रूप से उपयोगी है।
मेरे द्वारा स्वयं इस शब्दकोश के शब्दों का प्रयोग दूसरी भाषाओं से तुलनात्मक अध्ययन में किया गया है। अब वह अपनी नई कृति “मैं हूँ झारखंड” द्वारा झारखंड राज्य की संपूर्ण जानकारी के साथ प्रस्तुत हैं।
मैं इस पुस्तक को तैयार करने में उनके लगन एवं परिश्रम से आश्चर्यचकित हूँ। मुझे पूर्ण विश्वास है कि एक ही बार में झारखंड को समझने हेतु यह पुस्तक बेहद लाभदायक सिद्ध होगी। मैं देव कुमार जी की इस उपलब्धि हेतु बधाई देते हुए उज्जवल भविष्य की शुभकामना देता हूँ।
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