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    Sunday, December 22, 2024
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      डीएसपीएमयूः स्कूल ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज एडमिशन प्रक्रिया में होती है भारी धांधली और अनियमता

      राँची (इंद्रदेव लाल)। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी (डीएसपीएमयू) के अंतर्गत संचालित स्कूल ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज में प्रबंधन विभाग में छात्रों के नामांकण में व्यापक पैमाने पर धांधली और अनियमियता बरती जाती है।

      DSPMU There is huge rigging and irregularities in the School of Management Studies admission process 3सूत्रों के अनुसार विभागीय प्रबंधन द्वारा करवाए गए बीबीए इंट्रेंस एग्जाम में किसी भी प्रकाशित लिस्ट में चयनित विद्यार्थियो का परीक्षा में प्राप्तांक का विवरण नहीं दिया गया था। जबकि इनके कार्यकाल के पहले वर्षो में विभाग में कभी भी इस तरह की परंपरा नही रही।

      सूत्रों का कहना है कि पिछले वर्ष और इस वर्ष, दोनो सत्रों में प्रबंधन द्वारा धन की उगाही के उद्देश्य से ये जान बूझ कर ये गलत प्रक्रिया अपनाई गई। मेधा सूची जो विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर उपलब्ध है, किसी भी सूची में छात्रों का अंक या प्रतिशत, जो उन्होंने एंट्रेंस एग्जाम में पाया है प्रकाशित नहीं किया गया। इस प्रकार किसी भी छात्र को कितना प्राप्तांक प्राप्त हुआ, इसकी सूचना उपलब्ध नहीं की गई। यह सूचना को छुपा कर गलत तरीके से एडमिशन लिया गया एवं धन की उगाही की गई।

      इसके पूर्व के वर्ष 2022-2025 के सत्र में कुल सीटों की संख्या 500 थी। अतः इस वर्ष भी प्रथम सूची में कम से कम 500 छात्रों का मेधा सूची में नाम निकालना चाहिए था। परंतु सिर्फ 368 छात्रों का ही नाम प्रकाशित किया गया। जबकि प्रवेश परीक्षा में करीबन 614 छात्रों ने परीक्षा दिया था।

      वहीं प्रबंधन ने 130 सीटों का प्रकाशन रोक दिया, ताकि धन लेकर आगे गलत तरीके से छात्रों का नाम प्रकाशित कर सके और छात्रों में डर की भावना उत्पन्न कर सके कि उनका एडमिशन नहीं होगा। जिससे पैसे की उगाही में आसानी हो।

      सूत्रों के अनुसार कुल एडमिशन लगभग 650 हुए हैं। इसका प्रमाण में फर्स्ट एंट्रेंस एग्जाम की पहली सूची के तौर पर जो कि यहां विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर भी उपलब्ध है।

      DSPMU There is huge rigging and irregularities in the School of Management Studies admission process 2सूत्रों के अनुसार यही नहीं, इस पूरे प्रक्रिया में आरक्षण के नियमों का भी ठीक ढंग से पालन नहीं किया गया और जिन छात्रों का आरक्षण के जुड़े आवश्यक प्रमाण पत्र न होते हुए भी उनका एडमिशन आरक्षण कोटे में ले ली गयी। वैसे विद्यार्थी जिनका नाम पहली लिस्ट में आ गया था, परंतु उन्होंने एडमिशन नहीं लिया। वैसे विद्यार्थीयो  का नाम पुनः दूसरी लिस्ट में जनरल कैटेगरी में फिर से निकल गया।  इस प्रकार प्रबंधन द्वारा मनमर्जी से किसी भी विद्यार्थी को किसी भी कैटेगरी में परिवर्तित कर दिया गया।

      सूत्रों ने बताया कि अगर किसी विद्यार्थी, जिसने एप्लीकेशन दिया है और वह अपना एडमिशन किसी वजह से नहीं ले पा रहा हो तो उस छात्र को फिर से मौका पूरी लिस्ट के एग्जास्ट होने के बाद ही, वह भी अगर अंत में सीट बची रही, तो ही दिया जा सकता है। परंतु प्रबंधन ने इन सब को दरकिनार कर, उन विद्यार्थियो का  नाम पूरी लिस्ट एग्जास्ट होने से पहले दूसरी ही लिस्ट में इनका नाम निकाल दिया।

      सूत्रों के अनुसार अनियमितता की सारी सीमा पार करते हुए विभागीय निदेशक के आदेश से 13 अगस्त 2023 सेकंड एंट्रेंस एग्जाम लिया गया। इसकी दूसरी सूची में कुछ ऐसा नाम देखने को मिलते हैं, जिसमें न तो फॉर्म नंबर और न ही आरक्षण की केटेगरी का विवरण किया गया है।

      सूत्रों के अनुसार दूसरी सूची जो की 9 या 10 सितंबर को प्रकाशित हुई है, उसमें कुछ स्टूडेंट्स का नाम जिसमें जिनका फॉर्म नंबर और कैटिगरी तक मेंशन नहीं है, उसमें कुछ ऐसा फार्म नंबर में xxxxxxxx लिखा गया है। उन बच्चों के नाम है मनीष कुमार, जसवीर सिंह, कुमारी आकांक्षा, शुभम कुमार गुप्ता, पूनम कुमारी, अर्पित कुमार, निखिल कुमार गुप्ता मॉर्निंग शिफ्ट में अंकित कुमार यह नाम है।

      इससे साफ है कि इन बच्चों ने फार्म तक नहीं भरा था। जबकि यहां के निदेशक बार-बार चांसलर पोर्टल खुला करके फॉर्म भरवाते थे ,परंतु चांसलर पोर्टल न खुलने की वजह से इन बच्चों ने फॉर्म नहीं भरा, तो भी इन्हें एंट्रेंस एग्जाम दिलवा कर इनका नाम सूची में निकलवा कर एडमिशन प्रक्रिया में इनका एडमिशन करवाया गया।DSPMU There is huge rigging and irregularities in the School of Management Studies admission process 3

      सूत्रों के अनुसार इन बच्चों से इस प्रकार एडमिशन करवाने के लिए अच्छी खासी मोटी रकम की उगाही की गई।

      वहीं इस वर्ष प्रबंधन विभाग में 650 विद्यार्थियो का एडमिशन लिया गया, जिसमें 720 छात्र और छात्राओं ने फॉर्म भरा था। एंट्रेंस एग्जाम का औचित्य तब है, जब विद्यार्थियों का संख्या और उनके अनुपात में सीटो की संख्या , 3:1 और 2:1 होना चाहिए। परंतु जब छात्र–छात्रा का अनुपात बराबर हो और सभी को अवसर देकर एंट्रेंस एग्जाम का व्यर्थ नाटक कर के एग्जाम के नाम पर धन और समय क्यों व्यर्थ किया गया।

      यह अपने आप में एक बड़ा सबाल है कि बीबीए एंट्रेस इस वर्ष दो बार लिया गया,और दो बार इस प्रक्रिया हेतु धन एडवांस लिया गया। जब सभी को अवसर देना है तो एंट्रेंस का औचित्य क्या था?

      इधर, एक शिकायत पर मिले निर्देश के आलोक में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी  के कुलपति द्वारा एक तीन सदस्यीय जाँच समिति बनाई गई। उसमें विभाग के निदेशक के कथित करीबी को ही सदस्य बना दिया गया। इसके ठीक पहले एक पाँच सदस्यीय जांच समिति का गठन किया गया था, जिनके सदस्यों ने यह कहकर जाँच करने से साफ इन्कार कर दिया था कि वर्तमान निदेशक के पद पर रहते हुए उनके खिलाफ निष्पक्ष संभव नहीं है।

      सूत्रों के अनुसार दूसरी बार गठित जाँच समिति के सदस्यों ने निदेशक के प्रभाव में आकर रिपोर्ट तैयार करने में अधिक रुचि दिखा रही है। इस दौरान जांच के बिंदुओं से जुड़े साक्ष्य से भी छेड़छाड़ किया गया है। उसे मिटाने या उसमें सुधार लाने की जुगत भिड़ाई गई है।

      इस मामले में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी के कुलपति की मंशा पर भी सवाल उठता है कि पांच सदस्यीय जाँच समिति ने जिस आधार पर जाँच करने से साफ इन्कार कर दिया था, उसी आधार पर आरोपों के घेरे में आए निदेशक के खिलाफ जांच का जिम्मा उनके कथित करीबियों को ही कैसे सौंप दिया गया?

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