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9 नवंबर को पद्मश्री से विभूषित होंगी छुटनी महतो, जानें कौन हैं झारखंड की यह शान

“इस कुप्रथा के खिलाफ अंतिम सांस तक मेरी जंग जारी रहेगी। भारत सरकार ने मुझे इस योग्य समझा, यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है, लेकिन इस कुप्रथा को जड़ से मिटाने के लिए जमीनी स्तर पर सख्त कानून बनाने और उसके अनुपालन की मुकम्मल व्यवस्था होनी चाहिए। स्थानीय प्रशासन को भी ऐसे मामले में गंभीरता दिखानी चाहिए ….पद्मश्री छुटनी महतो

सरायकेला (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क)। साल 2020- 21 के पद्मश्री सम्मान के लिए नामित सरायकेला-खरसावां ज़िले की छुटनी महतो को 9 नवम्बर 2021 को राष्ट्रपति भवन में पद्मश्री पुरुस्कार दी जाएगी। उन्हें राष्ट्रपति भवन की ओर से विभूषित होने का न्योता मिल गया है। वे इसकी तैयारी में जुट गई है।

Chutni Mahto will be honored with Padma Shri on November 9 know who is this pride of Jharkhandछुटनी महतो को पद्मश्री सम्मान की घोषणा इसी साल गणतंत्र दिवस के मौके पर की गई थी, मगर कोरोना के प्रकोप के कारण उन्हें अब तक यह पुरस्कार नहीं मिल सका था।

इस साल केंद्र सरकार ने जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे और दिवंगत गायक एसपी बालासुब्रमण्यम को पद्म पुरस्कार से सम्मानित करने का ऐलान किया है।

शिंजो आबे, मौलाना वहीदुद्दीन खान, बीबी लाल, सुदर्शन पटनायक पद्मभूषण पाने वालों की सूची में शामिल है। असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई, पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान जबकि पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को पद्मभूषण से सम्मानित किया गया है। इनको मरणोपरांत यह अवार्ड दिया जा रहा है।

देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में शामिल पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री अवारर्डों की सूची जारी की गयी है। आम तौर पर हर साल मार्च या अप्रैल में यह अवार्ड दिया जाता है। कुल 141 नाम घोषित किया गया है, इसके तहत 7 नाम पद्मविभूषण के लिए है, 10 पद्मभूषण और 118 पद्मश्री अवार्ड के लिए दिया गया है। इसमें 33 महिलाएं और 18 विदेशी लोग शामिल है।

उन्हीं में एक जमशेदपुर और सरायकेला-खरसावां जिले में डायन प्रथा के खिलाफ काम करने वाली महिला छुटनी महतो (छुटनी देवी) को पद्मश्री देने का ऐलान किया गया है। छुटनी महतो सरायकेला-खरसावां जिले के गम्हरिया के पास बीरबांस इलाके में डायन प्रथा के खिलाफ आंदोलन चलाती है।

उनको भी लोग डायन कहकर ही कभी पुकारते थे, लेकिन डायन प्रथा के खिलाफ आंदोलन चलाने वाले फ्री लीगल एड कमेटी के समाजसेवी प्रेमचंद ने छुटनी महतो का पुर्नवास कराया और फ्री लीगल एड कमेटी (फ्लैक) के बैनर तले काम करना शुरू किया और अब भारत सरकार ने उनको पद्मश्री का अवार्ड देने का ऐलान कर दिया है। छुटनी महतो अभी 62 साल की है।

कौन हैं झारखंड की मिसाल छुटनी महतो उर्फ छुटनी देवीः

छुटनी महतो उर्फ छुटनी देवी झारखंड के सरायकेला- खरसावां जिले के गम्हरिया के बीरबांस इलाके की रहने वाली है। वह गम्हरिया थाना के महतांडडीह इलाके में ब्याही गयी थी।

वह जब 12 साल की थी, तब उसकी शादी धनंजय महतो से हुई थी। उसके बाद उसके तीन बच्चे हो गये। दो सितंबर 1995 को उसके पड़ोसी भोजहरी की बेटी बीमार हो गयी थी। लोगों को शक हुआ कि छुटनी ने ही कोई टोना टोटका कर दिया है।

इसके बाद गांव में पंचायत हुई, उसको डायन करार दिया गया और लोगों ने घर में घुसकर उसके साथ बलात्कार करने की कोशिश की। छुटनी महतो सुंदर थी, जो अभिशाप बन गया था।

अगले दिन फिर पंचायत हुई, पांच सितंबर तक कुछ ना कुछ गांव में होता रहा। पंचायत ने 500 रुपये का जुर्माना लगा दिया। उस वक्त किसी तरह जुगाड़ कर उसने 500 रुपये जुर्माना भरा। लेकिन इसके बावजूद कुछ ठीक नहीं हुआ।

इसके बाद गांववालों ने ओझा-गुनी को बुलाया। छुटनी महतो को ओझा-गुनी ने शौच पिलाने की कोशिश की। मानव मल पीने से यह कहा जा रहा था कि डायन का प्रकोप उतर जाता। उसने मना कर दिया तो उसको पकड़ लिया गया और उसको मैला पिलाने की कोशिश शुरू की और नहीं पी तो उसके ऊपर मैला फेंक दिया गया।

वह डायन करार दे दी गयी। चार बच्चों के साथ उसको गांव से निकाल दिया गया। उसने पेड़ के नीचे अपनी रात काटी। वह विधायक चंपई सोरेन के पास गयी। वहां भी कोई मदद नहीं मिला, जिसके बाद उसने थाना में रिपोर्ट दर्ज करा दी। कुछ लोग गिरफ्तार हुए और फिर छुट गये, जिसके बाद और नरक जिंदगी हो गयी।

फिर वह ससुराल को छोटकर मायके आ गयी। मायके में भी लोग डायन कहकर संबोधित करने लगे और घर का दरवाजा बंद करने लगे। भाईयों ने बाद में साथ दिया। पति भी आये, कुछ पैसे की मदद पहुंचायी, भाईयों ने जमीन दे दी, पैसे दे दिये और मायके में ही रहने लगी।

पांच साल तक वह इसी तरह रही और ठान ली कि अब वह डायन प्रथा के खिलाफ लड़ेंगी। 1995 में उसके लिए कोई खड़ा नहीं हुआ था, उसकी सुंदरता के कारण लोग उसको हवस का शिकार बनाना चाहते थे।

लेकिन उन्होंने किसी तरह फ्लैक के साथ काम करना शुरू किया और फिर उसको कामयाबी मिली और कई महिलाओं को डायन प्रथा से बचाया। अब तो वह रोल मॉडल बन चुकी है।

छुटनी ने इस कुप्रथा के खिलाफ ना केवल अपने परिवार के खिलाफ जंग लड़ा बल्कि 200 से भी अधिक झारखंड, बंगाल, बिहार और ओडिशा की डायन प्रताड़ित महिलाओं को इंसाफ दिला कर उनका पुनर्वासन भी कराया।

ऐसी बात नहीं है, कि छुटनी को इसके लिए संघर्ष नहीं करने पड़े। लेकिन छुटनी तो छुटनी थी। धुन की पक्की छुटने कभी खुद को असहज महसूस होते नहीं देखना चाहती थी। जिसने जब जहां बुलाया छुटनी पहुंच गई और अकेले इंसाफ की लड़ाई में कूद गई।

उसके इसी जज्बे को देखते हुए सरायकेला- खरसावां जिले के तत्कालीन उपायुक्त छवि रंजन ने डायन प्रताड़ित महिलाओं को देवी कह कर पुकारने का ऐलान किया था। हालांकि छुटनी को सरकारी उपेक्षाओं का दंश झेलना पड़ा।

आज भी छुटनी बीरबांस में डायन रिहैबिलिटेशन सेंटर चलाती है, लेकिन सरकारी मदद ना के बराबर उसे मिलती है। देर सबेर ही सही भारत सरकार की ओर से छुटनी को इस सम्मान से नवाजा गया जो वाकई छुटनी के लिए गौरव का क्षण कहा जा सकता है।

रायकेला-खरसावां जिले के तत्कालीन उपायुक्त छवि रंजन ने डायन प्रताड़ित महिलाओं को देवी कह कर पुकारने का ऐलान किया था। हालांकि छुटनी को सरकारी उपेक्षाओं का दंश झेलना पड़ा।

आज भी छुटनी बीरबांस में डायन रिहैबिलिटेशन सेंटर चलाती है, लेकिन सरकारी मदद ना के बराबर उसे मिलती है। देर सबेर ही सही भारत सरकार की ओर से छुटनी को इस सम्मान से नवाजा गया, जो वाकई छुटनी के साथ पूरे झारखंड के लिए गौरव का क्षण कहा जा सकता है।

 

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