“मंदार की गरिमा और महिमा अपार है, जिन्हें शब्दों के दायरे में व्यक्त नहीं किया जा सकता। इसी महान मंदार की पूर्वी गोद में पौराणिक लखदीपा मंदिर अवस्थित है…..”
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज ( बांका लाइव)। बांका जिले में मंदार स्थित पौराणिक लखदीपा मंदिर की दिवाली का आगाज इतिहास अन्वेषी और धरोहरों के संरक्षक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी भागलपुर के पुलिस उप महानिरीक्षक विकास वैभव ने किया।
इस अवसर पर मंदार विकास परिषद के अध्यक्ष उदय शंकर झा चंचल, उदयेश रवि, समाजसेवी संजीव कुमार, राजाराम अग्रवाल आदि अनेक सामाजिक कार्यकर्ता एवं स्थानीय लोगों ने इस उत्सव में भागीदारी निभाई।
मंदार बांका जिले की पहचान है। मंदार एक पौराणिक धरोहर है, जिसके बारे में मान्यता है कि देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन के लिए मथानी के रूप में इसी मंदार पर्वत का इस्तेमाल किया था।
समुद्र मंथन में 14 रत्नों की प्राप्ति हुई थी। इन रत्नों में अमृत, लक्ष्मी, ऐरावत, कामधेनु आदि शामिल थे। हलाहल विष भी इन्हीं रत्नों में से एक था।
कहते हैं कि सागर मंथन में हलाहल निकलने के बाद संसार में जलन पैदा हो गई और कोहराम मच गया। तब इसी क्षेत्र के दारुकवान में निवास करने वाले लोक कल्याणकारी महादेव भगवान भोले शंकर ने हलाहल का पान कर विश्व को इसके कोप से मुक्ति दिलाई और स्वयं नीलकंठ हो गए।
मान्यता है कि इसी पौराणिक मंदार पर्वत पर भगवान विष्णु ने दानवराज मधु का मर्दन किया और स्वयं मधुसूदन कहलाए। कभी दिवाली के अवसर पर यहां एक लाख दिए जलते थे।
यह क्षेत्र तब वालिसानगरी के रूप में जाना जाता था। लोग हर घर से दीप लेकर यहां जलाते थे, जिनके लिए मंदिर में एक लाख कोटर बने हुए थे।
इस मंदिर के ध्वंसावशेष और कोटर आज भी मौजूद हैं। मंदार विकास परिषद के तत्वावधान में आज यहां दिवाली मनाई गई। एक लाख दीपक तो नहीं जले, लेकिन लखदीपा मंदिर आज दीपों से जगमगा गया।
इस अवसर पर डीआईजी विकास वैभव ने कहा कि पौराणिक और ऐतिहासिक धरोहरों तथा परंपराओं का संरक्षण कर हम अपनी संस्कृति की सुरक्षा करते हैं। ये धरोहर और परंपराएं हमारी पहचान और अस्तित्व के आधार हैं। इस क्षेत्र में जनसहयोग को उन्होंने बड़ा संसाधन बताया तथा लोगों से इसके लिए आगे आने की अपील उन्होंने की।