राँची (एक्सपर्ट मीडिया ✍️न्यूज नवीन शर्मा) अभी कुछ दिनों से झारखंड के साथ-साथ पूरे देश में आईएएस अफसर पूजा सिंघल पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपो को लेकर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की छापेमारी की खबर को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है।
पूजा सिंघल के चार्टर्ड एकाउंटेंट के पास से 19.3 करोड़ रुपये कैश बरामद होने की वजह से यह मामला काफी हाई प्रोफाइल हो गया है। मंगलवार को ईडी ने पूजा सिंघल, उनके पति अभिषेक झा, सीए सुमन सिंह से दिन भर पूछताछ की।
इस घटना ने एक बार फिर से ब्यूरोक्रेसी में भ्रष्टाचार को नंगा कर दिया है। भ्रष्टाचार की इस मैली गंगा में राजनेता, ब्यूरोक्रेट औऱ ठीकेदार की तिकड़ी सबसे ज्यादा मलाई बटोरनेवालों में शुमार हैं।
आज हम भले ही कोरोना महामारी समेत कई बीमारियों से लड़ रहे हों लेकिन मेरी नजर में भ्रष्टाचार हमारे देश की सबसे बड़ी बीमारी है। यह हमारे देश को घुन की तरह खोखला करता जा रहा है।
भ्रष्टाचार का अर्थ व्यापक हैः भ्रष्टाचार शब्द संस्कृत का शब्द है जो दो शब्दों के जुड़ने से बना है। भ्रष्ट तथा आचरण यानि ऐसा आचरण जो भ्रष्ट हो, लेकिन आज हमने इस शब्द को घूसखोरी या रिश्वतखोरी से रूढ़ कर दिया है।
इस शब्द का व्यापक अर्थ हमें समझना चाहिए। भ्रष्ट आचरण का अर्थ है कि किसी भी व्यक्ति का अपने आचरण से भ्रष्ट होना यानि उसका जो काम है उसे ईमानदारी पूर्वक नहीं करना।
कुछ उदाहरणों से हम इसे समझते हैं। एक शिक्षक अगर स्कूल नहीं जाता या देर से जाता और समय से पहले स्कूल से आने को बेताब रहता है, बच्चों को ईमानदारी से नहीं पढ़ाता, एमडीएम में घपला करता है।
बच्चों की छात्रवृत्ति और साइकिल, किताबों और पोशाक में भी अपने लिए कुछ कमाने की फिराक में रहता है तो यह भ्रष्टाचार है।
उसकी जांच करनेवाले अधिकारी शिक्षक की गलतियां पकड़ कर भी उसे कुछ ले देकर छोड़ देते है या उसका तबादला पैसे लेकर करते हैं तो ये भी भष्टाचार है।
घूस देकर शिक्षण संस्थानों में एडमिशन लेना भी भ्रष्टाचारः एक विद्यार्थी घूस देकर मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेता है। किसी तरह डॉक्टर बन जाने के बाद सरकारी नौकरी पा लेता है ,लेकिन किसी छोटे गांव या कस्बे में डयूटी करने नहीं जाता है। वो अपनी निजी प्रैक्टिस करना चाहता है।
कोई डॉक्टर दवा कंपनियों के कहने पर महंगी दवाएं लिखता है। जिसकी जरूरत नहीं हो वैसे पैथोलॉजिकल टेस्ट कराता है तो ये भ्रष्टाचार है।
सरकारी कर्मचारी ना समय से दफ्तर आना चाहता है और ना ही समय पर उचित तरीके से काम निपटाना। वो आम आदमी के एकदम जायज काम को भी लटका कर उससे रिश्वत मांगता है तो ये भी भ्रष्ट आचरण है।
डॉक्टर तो सेवा की शपथ लेते हैं फिर भी अपने पेशे से बेईमानी करते हैं। मेरा तो शिद्दत से ये मानना है कि जिन लोगों में समाजसेवा का जज्बा नहीं है और पैसा जिनके लिए बहुत ज्यादा महत्व रखता है तो ऐसे लोगों को शिक्षक, चिकित्सक और न्याय दिलाने के पेशे में नहीं आना चाहिए। इससे ये समाज का काफी भला कर देंगे।
सरकारी योजनाओं में पीसी या कमीशनखोरीः सरकारी योजनाओं में पीसी या कमीशनखोरी देश का सबसे बड़ा संकट है। पूर्व पीएम राजीव गांधी ने गलती से एकदम कड़वी सच्चाई बयां करते हुए कह दिया था कि जनता के लिए दिए गए एक रुपये में से सिर्फ 15 पैसे ही उस तक पहुंच पाते हैं।
यानि बाकि से 85 पैसे कुछ लोग खा जाते हैं। इनमें नेता, अधिकारी, कर्मचारी, ठीकेदार और बिचौलिये शामिल हैं। आज हमारे देश का सबसे ज्यादा पैसा इन्हीं लोगों ने गलत तरीके से अपने कब्जे में कर रखा है। इन लोगों का गठजोड़ काफी मजबूत है।
इसका पूरा चैनल बना हुआ है। सरकार की सभी योजनाओं में छोटे से रोजगार सेवक, पंचायत सेवक से लेकर बीडीओ और विभागीय अधिकारियों का कमीशन तय कर दिया जाता है।
व्यापार और व्यवसाय में घोखाधड़ीः कई व्यापारी, व्यवसायी और उद्योगपति भी अपना काम ईमानदारी से नहीं करते। कई तो अपने उत्पाद सही गुणवत्ता के नहीं बनाते। कई दुष्ट किस्म के लोग अपने मुनाफे के लिए लोगों के स्वास्थ से खिलवाड़ करते हुए खानपान की चीजों तक में भी मिलावट का सहारा लेते हैं।
विभिन्न करों की चोरी तो काफी आम बात है। इतने बड़े देश में इतने अमीर लोग हैं। इतनी गाड़ियां है। करोड़ों मकान है। पर टैक्स देनेवालों की संख्या काफी कम है।
जिनकी रोकने की जिम्मेदारी वो तो नंबर वनः भ्रष्टाचार रोकने की जिम्मेदारी जिनकी है वो ही इसे बढ़ाने के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। कई सर्वे में पुलिस और राजनेताओं का पेशा सबसे अधिक करप्ट पेशों में शुमार होता है।
इनकम टैक्स, सीबीआई, विजिलेंस, निगरानी ब्यूरो और अन्य कर विभागों के अधिकारी कर्मचारियों के पास आय से बहुत अधिक संपत्ति होना आम बात है।
ये लोग भ्रष्टाचार को रोकने के लिए जिम्मेदार हैं, लेकिन ये खुद घूस लेकर मामलों को दबाने,लटकाने और सलटाते रहते हैं। इसी वजह से भ्रष्टाचार करनेवालों में भय नहीं है।
भ्रष्टाचार के हजारों रूपः भ्रष्टाचार के एक से बढ़कर एक नमूने आप हमारे देश में देख सकते हैं। यहां कागज पर ही सड़क बनाने, तालाब और कुएं खोदने तथा पौधे रोपने में अधिकारियों को महारत हासिल है। वो भी बिना किसी डर भय के।
उन्हें पता है कि उनका कुछ भी बिगड़नेवाला नहीं है क्योंकि भ्रष्टाचार से मिली कमाई का हिस्सा काफी ऊपर तक जाता है। हाल में ही एक फिल्म आई थी मदारी। इस फिल्म में भ्रष्टाचार के इस गठजोड़ को बखूबी उजागर किया गया है।
अंत में एक बात और सबसे ज्यादा आश्चर्य इस बात पर होता है कि हमारे देश के 95 फीसद लोग धार्मिक हैं। ये लोग ईश्वर पर विश्वास करते हैं। पाप-पुण्य में यकीन करते हैं। यहां तक कि स्वर्ग और नर्क की धारणा को भी मानते हैं।
इसके बावजूद इतने बड़े पैमाने पर भ्रष्ट आचरण होता है तो लगता है कि ये लोग ईश्वर को भी अपनी तरह का ही मानते हैं, जो इनकी गलत हरकतों की तरफ से आंखे मूंद लेगा।
साहबान वहां आपकी ये गलत तरीके से कमाई गई दौलत किसी काम नहीं आनेवाली है सब दूध का दूध और पानी होना तय है। इसलिए ऐसे लोगों से विनम्र आग्रह है पानी इतना मत मिलाइए कि दूध नजर ही ना आए।