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बिहार शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार: आरोपी लिपिक का निलंबन 5 दिन में वापस !

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार के नालंदा जिले में शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली एक बार फिर विवादों के घेरे में आ गई है। यहां के जिला शिक्षा पदाधिकारी (डीईओ) कार्यालय में कार्यरत तत्कालीन लिपिक फणी मोहन पर सरकारी राशि के गबन का गंभीर आरोप लगा है, जो अब राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में तीखी बहस का विषय बन चुका है।

मामला सिर्फ 19338 रुपये की गबन का नहीं है, बल्कि विभागीय नियमों की धज्जियां उड़ाने और संदिग्ध तरीके से निलंबन वापस लेने का है, जिसने पूरे सिस्टम की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

घटना की शुरुआत कुछ महीने पहले हुई, जब फणी मोहन पर सरकारी फंड से जुड़ी अनियमितताओं की शिकायतें सामने आईं। जांच में पाया गया कि उन्होंने लगभग 19338 रुपये की राशि का गबन किया था। इसकी पुष्टि होने के बाद क्षेत्रीय शिक्षा उप निदेशक पटना प्रमंडल ने सख्त कदम उठाते हुए 3 सितंबर 2025 को उन्हें निलंबित कर दिया।

निलंबन के आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि फणी मोहन को विभागीय कार्यवाही के अधीन रखा जाएगा और मामले की गहन जांच की जाएगी। उस समय यह कार्रवाई विभाग की सख्ती का प्रतीक लग रही थी, लेकिन महज पांच दिनों में ही सारा खेल पलट गया।

आश्चर्य की बात यह है कि इन पांच दिनों में तीन दिन सरकारी छुट्टियां थीं, जिसमें वीकेंड और एक स्थानीय अवकाश शामिल था। फिर भी 8 सितंबर 2025 को फणी मोहन का निलंबन वापस ले लिया गया। सूत्रों के मुताबिक फणी मोहन ने बिना किसी आधिकारिक आदेश के ही 1830 रुपये की आंशिक राशि कोषागार में जमा कर दी और एक आवेदन दाखिल किया।

इसी आधार पर क्षेत्रीय शिक्षा उप निदेशक राज कुमार ने उन्हें बहाल करने का आदेश जारी कर दिया। यह फैसला इतनी तेजी से लिया गया कि कई कर्मचारियों को इसकी जानकारी भी नहीं हो पाई।

शिक्षा विभाग के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि यह मामला सिर्फ एक लिपिक का नहीं, बल्कि उच्चाधिकारियों की मिलीभगत का है। राज कुमार खुद विवादों से घिरे हुए हैं। जब वे नालंदा में जिला शिक्षा पदाधिकारी के पद पर थे, तब बेंच-डेस्क की आपूर्ति में वित्तीय अनियमितताओं का आरोप उन पर साबित हो चुका है।

उस मामले में प्रपत्र-क गठित किया गया था और जांच रिपोर्ट भी प्रस्तुत की गई थी, लेकिन कार्रवाई का कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। अब फणी मोहन के मामले में उनकी भूमिका पर उंगलियां उठ रही हैं। क्या यह संयोग है कि दोनों मामलों में वित्तीय गड़बड़ियां शामिल हैं? या फिर विभाग में एक बड़ा नेटवर्क काम कर रहा है?

शिकायतकर्ता ने इस फैसले को भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा करार दिया है। उन्होंने एक्सपर्ट मीडिया न्यूज से बातचीत में कहा कि उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय की गाइडलाइंस स्पष्ट हैं कि गबन जैसे गंभीर मामलों में आरोपी कर्मचारी को सेवा में बनाए रखना अनुचित है। यहां तो निलंबन के कुछ दिनों में ही बहाली हो गई, वह भी आंशिक राशि जमा करने पर। क्या बाकी राशि की वसूली का कोई प्लान है? यह साफ-साफ लापरवाही और पक्षपात दर्शाता है।

शिकायत में मांग की गई है कि फणी मोहन से गबन की पूरी राशि (19,338 रुपये) वसूल कर सरकारी कोष में जमा कराई जाए। साथ ही राज कुमार को किसी डंपिंग यार्ड यानी गैर-प्रभावी विभाग में स्थानांतरित किया जाए और उनके खिलाफ समुचित जांच शुरू की जाए।

यह प्रकरण सिर्फ नालंदा तक सीमित नहीं है। बिहार के शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार की शिकायतें लंबे समय से आ रही हैं। हाल ही में पटना हाई कोर्ट ने एक समान मामले में राज्य सरकार को फटकार लगाई थी, जहां सरकारी फंड के दुरुपयोग पर कार्रवाई में देरी हुई थी।

विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों में तेजी से बहाली से विभाग के अन्य कर्मचारियों में गलत संदेश जाता है। एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी ने कहा कि शिक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। यह बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ है। अगर उच्चाधिकारी खुद संदिग्ध हैं तो सिस्टम कैसे सुधरेगा?

शिक्षा विभाग के प्रवक्ता से संपर्क करने पर उन्होंने कोई आधिकारिक टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, लेकिन कहा कि मामला जांच के अधीन है। वहीं विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे को सड़क पर उठाने की तैयारी कर रही हैं। क्या यह मामला बिहार शिक्षा विभाग में बड़े सुधारों का ट्रिगर बनेगा या फिर एक और फाइल धूल फांकती रहेगी?

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