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बिहार विधानसभा चुनाव 2025: रिकॉर्ड 64.69% मतदान से मजबूत होता प्रशांत किशोर का दावा, बदलाव की हवा तेज!

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज/मुकेश भारतीय)। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में रिकॉर्ड 64.69 प्रतिशत मतदान ने न केवल राजनीतिक हलचल मचा दी है, बल्कि यह भी संकेत दे रहा है कि राज्य में दशकों पुरानी राजनीतिक जड़ता टूटने वाली है। स्वतंत्रता के बाद से अब तक का यह सबसे ऊंचा मतदान प्रतिशत, जो पहले आम चुनावों के बाद का रिकॉर्ड है, वह जाने-माने राजनीतिक रणनीतिकार और जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर के दावों को मजबूती दे रहा है।

किशोर का स्पष्ट कहना है कि दीवाली और छठ महापर्व के बहाने बिहार लौटे लाखों प्रवासी मतदाता ही इस चुनाव के असली ‘एक्स फैक्टर’ साबित होंगे। ये प्रवासी न केवल खुद वोट डाल रहे हैं, बल्कि अपने परिवारों और रिश्तेदारों को भी बदलाव के लिए प्रेरित कर रहे हैं, जो राजग की सत्ता को गंभीर चुनौती दे सकता है।

प्रशांत किशोर ने पटना में पत्रकारों से बातचीत में कहा कि यह रिकॉर्ड मतदान हमारी बातों की पुष्टि करता है। बिहार के लोग 30 साल से अधिक समय से राजनीतिक सुस्ती में जकड़े हुए हैं, लेकिन अब बदलाव की प्रबल इच्छा जाग चुकी है। हमारी एक साल पुरानी जन सुराज पार्टी लोगों को एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में दिख रही है।

किशोर के इस बयान को ताजा आंकड़े और सर्वेक्षण मजबूती प्रदान कर रहे हैं। चुनाव आयोग के अनुसार पहले चरण के 73 विधानसभा क्षेत्रों में कुल 7.4 करोड़ मतदाताओं में से 64.69 प्रतिशत ने वोट डाला, जो पिछले चुनाव (2020) के 57.05 प्रतिशत से करीब 7.64 प्रतिशत अधिक है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस उछाल का बड़ा श्रेय महिलाओं (जिनकी भागीदारी 68 प्रतिशत रही), युवाओं और सबसे महत्वपूर्ण छठ पर्व के लिए लौटे प्रवासियों को जाता है।

बिहार से प्रवासन की समस्या कोई नई नहीं है। राष्ट्रीय सैंपल सर्वे कार्यालय (NSSO) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक बिहार से प्रतिवर्ष करीब 80 लाख युवा रोजगार की तलाश में अन्य राज्यों खासकर दिल्ली, मुंबई, गुजरात और पंजाब चले जाते हैं। लेकिन इस बार छठ महापर्व ने एक अनोखा मोड़ ला दिया।

अनुमान है कि अक्टूबर-नवंबर में करीब 50 लाख से अधिक प्रवासी ट्रेनों और बसों से बिहार लौटे और कई अभी तक अपने कार्यस्थलों पर वापस नहीं गए। जन सुराज पार्टी के एक हालिया आंतरिक सर्वे में पाया गया कि इन प्रवासियों में से 45 प्रतिशत ने अपनी पार्टी को प्राथमिकता दी है, क्योंकि किशोर का वादा है कि जन सुराज की सरकार बनेगी तो ये प्रवासी कभी बिहार छोड़ने को मजबूर नहीं होंगे। रोजगार बिहार में ही मिलेगा।  यह वादा केवल शब्द नहीं, बल्कि किशोर की रोड शो और रैलियों में उमड़ते युवा समर्थन से साकार होता नजर आ रहा है।

किशोर ने राजग पर सीधा निशाना साधते हुए कहा कि इन्होंने सोच लिया था कि कुछ योजनाएं और महिलाओं को थोड़ी-बहुत मदद देकर चुनाव जीत लिया जाएगा। हां, महिलाएं बड़ी संख्या में वोट देने निकलीं। उनका टर्नआउट 68 प्रतिशत रहा। लेकिन असली ‘एक्स फैक्टर’ तो प्रवासी हैं। ये छठ के बहाने लौटे हैं, वोट डाल रहे हैं और पूरे परिवार को जागरूक कर रहे हैं।

ताजा सोशल मीडिया ट्रेंड्स और X (पूर्व ट्विटर) पर छिड़ी बहस भी यही बयान करती है। #BiharElections2025 हैशटैग के तहत सैकड़ों पोस्ट्स में प्रवासियों की भूमिका पर चर्चा हो रही है, जहां किशोर के समर्थक इसे बदलाव की लहर बता रहे हैं। एक हालिया C-Voter सर्वे में जन सुराज को 18-22 प्रतिशत वोट शेयर मिलने का अनुमान है, जो मुख्य रूप से युवा और प्रवासी वोट बैंक से आ रहा है।

बिहार की राजनीति में यह बदलाव केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं। किशोर की रणनीति पहले बंगाल और अन्य राज्यों में कामयाब रही, अब बिहार में स्थानीय मुद्दों पर केंद्रित है।

उन्होंने कहा कि बिहार के युवा अब गुजरात की फैक्टरियों में मजदूर बनने को तैयार नहीं। वे बिहार में ही रोजगार चाहते हैं। जन सुराज का लक्ष्य अगले 10 वर्षों में बिहार को देश के शीर्ष 10 राज्यों में लाना है।

दूसरे चरण का मतदान 10 नवंबर को है और यदि प्रवासियों का उत्साह बना रहा तो 14 नवंबर को आने वाले नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि उच्च टर्नआउट हमेशा सत्ताधारी दलों के खिलाफ जाता है, खासकर जब बात बेरोजगारी और प्रवासन जैसे संवेदनशील मुद्दों की हो।

क्या वाकई प्रवासी बिहार की सियासत का नया चेहरा बनेंगे? प्रशांत किशोर का दावा यही कहता है। बिहार के 7.4 करोड़ मतदाता अब केवल वादों पर नहीं, बल्कि कार्रवाई की उम्मीद पर वोट देंगे। बदलाव की यह हवा कितनी तेज होगी, इसका जवाब तो नतीजों में ही है, लेकिन एक बात पक्की है कि छठ का सूर्य इस बार राजनीतिक आसमान को भी रोशन करने वाला है।

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