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विश्लेषणः सीएम नीतीश से रिश्ते में खटास के बाद आरसीपी सिंह का जदयू से इस्तीफा

पटना (जयप्रकाश नवीन)। बिहार सरकार में नबंर दो की हैसियत रखने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह ने अंततः भारी मन से जदयू को अलविदा कह दिया है। उन्होंने शनिवार देर शाम जदयू से अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी।

पूर्व केंद्रीय मंत्री के इस्तीफे की वजह जदयू के ‘आपरेशन आरसीपी’ को बताया जा रहा है, जिसमें उनके पत्नी और बेटी के पास अकूत संपत्ति होने का दावा किया जा रहा है।

आरसीपी सिंह इस मामले में सफाई दे चुके हैं कि उक्त संपत्ति उनकी अपनी नहीं है।वैसे आरसीपी सिंह के जदयू छोड़ने की स्क्रिप्ट तो पहले ही लिखी जा चुकी थी उसपर बजाप्ता मुहर शनिवार को लग गया।

सीएम नीतीश कुमार के साथ उनके रिश्ते में खटास के बाद यह  लगभग तय हो चुका था आरसीपी सिंह अब जदयू में कुछ ही दिन के मेहमान है। जदयू से इस्तीफे के बाद उनके सियासी सफर पर ब्रेक लगता है या उनके सामने विकल्प बचें हुए हैं।

राजनीति में नीतीश कुमार की भूमिका हमेशा महत्वपूर्ण रही है। वे जिसे चाहे उठा सकते हैं,सिर माथे पर लगा सकते हैं और मन उचट जाने पर लात भी मार सकते हैं।

बिहार की सियासत में उन्हें नजर अंदाज कर चलना मंहगा पड़ सकता है। भाजपा के साथ उनकी पार्टी जदयू का गठबंधन लंबे समय से है। 2020 तक वे बिहार में बड़े भाई की भूमिका में थे। लेकिन 2020 के बाद राजनीतिक समीकरण बदला और जदयू छोटे भाई की भूमिका में आ गई।

हालांकि चुनाव बाद जदयू के लिए परिस्थितियां लगातार बनती बिगड़ती रही ।2019 में एनडीए में रहने के बाबजूद भी नीतीश कुमार ने मोदी मंत्रिमंडल में सांकेतिक भागीदारी से साफ तौर से इंकार कर दिया था।

बाद में मंत्रिमंडल विस्तार के दौरान पार्टी अध्यक्ष आरसीपी सिंह खुद मंत्री बन बैठे और मोदी मंत्रिमंडल में जदयू का प्रतिनिधित्व करने लगे। यहीं से आरसीपी सिंह और नीतीश कुमार के रिश्ते में अनबन शुरू हुई। जबकि आरसीपी सिंह हमेशा नीतीश कुमार के लिए दाहिने हाथ माने जाते रहें है।

नीतीश कुमार जब अटल बिहारी वाजपेई मंत्रिमंडल में रेल मंत्री थें, तब आरसीपी सिंह से उनकी मुलाकात हुई थी। तब से दोनों में गहरी दोस्ती बनी रही।

नीतीश कुमार जब सीएम बने तो आरसीपी सिंह ब्यूरोक्रेट्स की नौकरी से इस्तीफा देकर बिहार आ गये। जहां से नीतीश कुमार ने उन्हें 2010 में राज्यसभा भेजा।

2016 में उन्हें दुबारा राज्यसभा भेजा गया। जब राजनीतिक सलाहकार प्रशांत किशोर जदयू में आएं तो आरसीपी सिंह दरकिनार किए जाने लगे। फिर भी शांत रहकर उन्होंने अपनी स्थिति फिर से मजबूत किया। वे हमेशा नीतीश कुमार के भरोसेमंद रहें।

यहीं कारण रहा कि जब नीतीश कुमार ने जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद छोड़ा तो इसकी जिम्मेदारी श्री सिंह के कंधे पर आ गई। वे लगातार जदयू संगठन को मजबूत करने की कोशिश करते रहें।

2021 के बाद दोनों के रिश्ते में दूरियां दिखाई देने लगी। आरसीपी सिंह के मंत्री बनने के साथ ही जदयू की कमान ललन सिंह के साथ में आ गई। इसके बाद उनकी स्थिति श्री कुमार की नजर में कमजोर होती चली गई।

कहा जाता है कि ललन सिंह के साथ रिश्ते कभी सहज नहीं रहें। लेकिन यह बात सही है कि दोनों नीतीश कुमार के इशारे पर ही काम करते रहे हैं। पिछले महीने 7 जुलाई को राज्यसभा का उनका कार्यकाल समाप्त हो गया था।

मंत्री रहने के लिए उन्हें दोनों सदनों में से किसी एक सदन का सदस्य होना जरूरी था। जदयू की ओर से उन्हें दुबारा राज्यसभा नहीं भेजा गया। जिसके बाद मजबूरन उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

इसके बाद से ही उनके सियासी सफर पर प्रश्नचिन्ह लगना शुरू हो गया था कि वे अब किधर जाएंगे। हालांकि उनपर तेलंगाना मे बीजेपी की बैठक के दौरान एक अन्य कार्यक्रम में बीजेपी के नेताओं ने उनका स्वागत किया था।

तब से कयास लगाया जा रहा था कि वे बीजेपी में चले गए हैं। लेकिन उन्होंने खुद इसका खंडन किया था कि वे बीजेपी में नहीं गए हैं।

फिलहाल आरसीपी सिंह ने जदयू की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। ऐसे में उनके सामने विकल्प क्या होंगे?

वर्तमान में भाजपा उनके लिए बढ़िया विकल्प कहा जा सकता है, लेकिन भाजपा फिलहाल आरसीपी सिंह को पार्टी में शामिल करने से बचेगी। क्योंकि नीतीश कुमार के साथ उसके रिश्ते पर असर पड़ सकता है।

वैसे आरसीपी सिंह के पास खुद की पार्टी बनाने का भी विकल्प है। क्योंकि उन्होंने जदयू का संगठन संभाला है। ऐसे में वे राज्य की परिस्थितियों के बारे अच्छी जानकारी है।

फिलहाल राजनीति अनिश्चितताओं का खेल यहा हर विकल्प नेताओं के लिए खुले रहते हैं। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि आरसीपी सिंह की आगे की रणनीति क्या होगी? आनेवाले समय में बिहार की राजनीति किस करवट बैठेगी और उसमें आरसीपी सिंह की भूमिका क्या होगी?

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