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    Friday, December 27, 2024
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      विश्लेषणः नीतीश कुमार पर सियासी हमले के बीच सुराज अभियान की सियासी राह कितना आसान ?

      "दो साल पहले जब जदयू से उन्हें निकाला गया तो उनकी प्रतिक्रिया थी - मेरे नीतीश कुमार की पार्टी में रहने और वहां से निकाले जाने के बाद जदयू की हालत की तुलना करके देखें जाने की जरूरत है....

      पटना (जयप्रकाश नवीन)। महर्षि वशिष्ठ की धरती बक्सर से निकला एक युवक को सरकारी नौकरी की चाहत बिल्कुल नहीं थी। बिना कोई राजनीतिक दल बनाएं राजनीति में कूद पड़ा। सफलता ऐसी मिली की उसके राजनीतिक प्रबंधन को लोग देखकर दांतों तले अंगुली दबा ली। हर राजनीतिक दल उसे हाथों हाथ लेने को तैयार है।

      Analysis Amidst the political attack on Nitish Kumar how easy is the political path of Suraj Abhiyanराजनीति के इस चाणक्य को प्रशांत किशोर कहा जाता है। वहीं प्रशांत किशोर जो अपनी कंपनी’ इंडियन पालिटिकल एक्शन कमेटी’ जो चुनाव प्रचार अभियान की कमान संभालती है।उनकी कंपनी का उद्देश्य राजनीतिक सलाहकार बनकर एक वकील की तरह अपने क्लाइंट को जिताना होता है।

      प्रशांत किशोर वहीं शख्स हैं जो 2012 में गुजरात चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव अभियान से अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की थी। उन्होंने लोकसभा चुनाव में श्री मोदी को केंद्र में तख्ता दिलाने में सफलता पाई थी। लोकसभा चुनाव में जदयू की करारी हार के बाद सीएम नीतीश कुमार के तीसरे कार्यकाल में काफी अहम भूमिका निभाई थी।

      प्रशांत किशोर इन दिनों राजनीति का चमकता चेहरा बन चुके हैं। हालांकि राजनीतिक जानकारों के लिए यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं है, क्योंकि पहले भी बहुत से राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर से भी बड़े-बड़े रहे हैं, लेकिन उन्होंने पार्टियों का दामन थामकर लाभ उठाया और प्रशांत किशोर पार्टियों को यह दिखाकर भारत की राजनीति के चाणक्य बनने की कोशिश में हैं कि वो पार्टियों से बाहर रहकर सत्ता बदलने का माद्दा रखते हैं।

      हालांकि प्रशांत किशोर दो तरीके से बिहार की राजनीति में चर्चा का केंद्र बनें हुए हैं, पहला उनका सुराज अभियान और दूसरा उनके निशाने पर सीएम नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव का परिवार।

      पिछले महीने प्रशांत किशोर सीएम नीतीश कुमार से मिलने भी गये थें जिसे नीतीश कुमार महज औपचारिक मुलाकात बता अन्य अटकलों को खारिज कर दिया। लेकिन जैसे ही प्रशांत किशोर अपने सुराज पदयात्रा में सीएम नीतीश कुमार पर हमलावर हुए तो नीतीश कुमार को मीडिया में कहना पड़ा कि प्रशांत किशोर जदयू का विलय कांग्रेस में कराना चाहते थें। प्रशांत किशोर डिप्टी सीएम के शैक्षणिक योग्यता पर सवाल उठा चुके हैं।

      यहां तक कि उन्हें सीएम नीतीश कुमार की उम्र की चिंता है। नीतीश कुमार के पास 71 साल की उम्र में बिहार का जिम्मा है। लेकिन प्रशांत किशोर को प्रधानमंत्री की उम्र परेशान नहीं करती है,जो इस विशाल देश के अलावा विश्व गुरु का दायित्व भी संभालें हुए हैं।

      प्रशांत किशोर काफी पहले से जदयू के खिलाफ बोलते आ रहें हैं।अब राजद के खिलाफ बोल रहें हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या प्रशांत किशोर भाजपा के लिए खेल रहें हैं? वे महागठबंधन के नेताओं के बारे में तो मुंह खोलते हैं, लेकिन एनडीए के बारे में और देश की समस्या पर चर्चा क्यों नहीं करते ? आखिर क्या कारण है कि वे नीतीश कुमार के विरोध में बोलते हैं। अपने सुराज अभियान के तहत किसे कमजोर और किसे मजबूत करना चाहते हैं।

      लेकिन अब सुनने में आ रहा है कि यही चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर, जो अब तक दूसरों को कुर्सी दिलाने का दंभ भरते आए हैं, जल्द ही खुद की राजनीतिक पार्टी बना सकते हैं। सवाल है कि क्या यह शुरुआत बिहार से होगी ! लेकिन इतना जरूर है कि यह कयास उनकी पदयात्रा की घोषणा के साथ लगने शुरू हो गए हैं।

      प्रशांत किशोर 2 अक्टूबर से ऐतिहासिक पश्चिमी चंपारण के गांधी आश्रम से 3 हजार किलोमीटर की पदयात्रा शुरू कर चुके हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वो अगले तीन से चार महीनों में उनके द्वारा चिह्नित किए गए 17 हजार पांच सौ लोगों से मिलेंगे। उन्होंने यह भी इशारा किया कि अगर उन्हें एक साथ दो से पांच हजार लोग मिलेंगे, तो वो पार्टी की घोषणा कर सकते हैं।

      इस पदयात्रा के दौरान वो बिहार के लोगों को जागरूक करेंगे और उनकी समस्याएं सुनेंगे। प्रशांत का कहना है कि 30 साल के लालू-नीतीश के शासन के बावजूद बिहार देश का सबसे पिछड़ा और गरीब राज्य है। वो बिहार को अग्रणी राज्यों में शामिल करना चाहते हैं। कुल मिलाकर प्रशांत नई सोच के आधार पर बिहार को अग्रणी राज्यों की सूची में लाने की बात कर रहे हैं।

      देखना यह होगा कि वो बिहार के लिए भविष्य में क्या कुछ कर पाते हैं और उनकी यात्रा के क्या परिणाम निकलकर सामने आते हैं? वैसे इस अभियान के पीछे अरविंद केजरीवाल की तर्ज पर राजनीति में कदम रखने की महत्वाकांक्षा है,तो बिहार में उनकी राह आसान नहीं होगी।

      प्रशांत किशोर बिहार को लेकर सियासी महत्वाकांक्षा पहले भी सामने आती रहीं है। जब तक वह नीतीश कुमार के रणनीतिकार और परामर्शी रहें,उस दौरान संवाद के दौरान जदयू के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भी महसूस किया। जदयू में यह धारणा बनने लगी थी कि वह नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी बनना चाहते हैं।

      दो साल पहले जब जदयू से उन्हें निकाला गया तो उनकी प्रतिक्रिया थी – मेरे नीतीश कुमार की पार्टी में रहने और वहां से निकाले जाने के बाद जदयू की हालत की तुलना करके देखें जाने की जरूरत है।

      इसके बाद भी उन्होंने” बिहार की बात” मुहिम शुरू किया था उनका दावा था कि वे दस लाख लोगों को इस मुहिम से जोड़ेंगे। उन्होंने गांव-गांव जाकर लोगों से मिलने की बात कहीं थी। लेकिन उनकी यह मुहिम ज्यादा नहीं चली।

      उस कसर को वे सुराज पदयात्रा से पूरा कर रहें हैं। लिहाजा आने वाले समय में वो बिहार में कोई नई सियासी पार्टी बनाकर वहां से चुनाव लड़ सकते हैं। इसी का आधार टटोलने के लिए वो क़रीब तीन हजार किलोमीटर का पदयात्रा करने का विचार बना रहे हैं।

      जानकार यह भी कहते हैं कि प्रशांत किशोर बिहार पर कोई पहली बार दांव नहीं लगा रहे हैं। बल्कि दो साल पहले भी वह नीतीश कुमार से अलग होने के बाद एक कार्यक्रम कर चुके हैं, जिसका मकसद बिहार में अपनी राजनीतिक छवि को लोगों की नजर में लाना रहा है।

      प्रशांत किशोर ने भाजपा-जदयू के अलावा कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक,आप आदि दलों के लिए अलग-अलग समय में बतौर चुनावी रणनीतिकार काम किया है। कामयाबी का सेहरा भी उनके सिर बंधा है। लेकिन उनकी पहचान मूलतः पेशेवर रणनीतिकार की रहीं है। आजादी के दौर में जिस सुराज का आह्वान होता रहा,उस शब्द को उन्होंने अपने अभियान के लिए इस्तेमाल किया है।

      बिहार में समाजवादी आंकी जड़ें काफी गहरी रहीं है। सियासी दलों के आज के प्रमुख चेहरे जेपी आंदोलन की उपज है। मुख्यमंत्री खुद कट्टर समाजवादी रहें हैं।आज बिहार के हालात भी ऐसे नहीं हैं कि यहां किसी सुराज अभियान को कामयाबी मिलें।ऐसे में बिहार की जटिल सामाजिक संरचना और समाजवादी बुनियाद प्रशांत किशोर की सबसे बड़ी चुनौती होगी।

      प्रशांत किशोर के तमाम सहयोगियों का मानना है कि वह अपनी कंपनी आई पैक के माध्यम से राजनीतिक रणनीतियां बनाते हैं। लेकिन इसमें उनकी अकेले की मेहनत नहीं है, उनके साथ इस कंपनी के लिए सैकड़ों लोग काम करते हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण उनके तीन दोस्त प्रतीक जैन, ऋषिराज सिंह और विनेश चंदेल का खून-पसीना भी लगा है। इनमें प्रतीक जैन पटना के रहने वाले हैं और आईआईटी मुंबई से पासआउट हैं। यें आई पैक के को फाउंडर भी हैं। ऋषिराज सिंह दिल्ली से ताल्लुक रखते हैं और आईआईटी कानपुर से पढ़े हैं। इस समय वो भी आई पैक के को-फाउंडर हैं। विनेश चंदेल अधिवक्ता और पत्रकार रह चुके हैं। यह भी कंपनी के को-फाउंडर हैं।

      प्रशांत किशोर ने वर्ष 2013 में सिटीजन फॉर अकाउंटेबल गर्वनेंस की स्थापना अपने इन्हीं दोस्तों की मदद से की थी, जिन्हें आज भी कोई उतना नहीं जानता, जितना प्रशांत को जानते है। यहां सवाल यह है कि अगर प्रशांत कभी राजनीति के फ्रंट पर खेलते हैं, तो क्या वो अपने दोस्तों को कोई बड़ा ओहदा देंगे या फिर उन्हें तब भी परदे के पीछे रखेंगे?

      राजनीतिक जानकारों का कहना है कि प्रशांत किशोर ने राजनीति की पारी एंपायर के रूप में खेलनी शुरू की है। अभी वो राजनीति के खिलाड़ियों को जिताने-हराने की बाजी लगा रहे हैं। इससे उन्हें राजनीति में कुर्सी की दौड़ से दूर रहकर भी हर तरह के अनुभव मिल रहे हैं। भविष्य में वो इसका फायदा उठाते हुए चुनाव मैदान में उतर सकते हैं।

      अगर वो इस पारी को आराम से खेलेंगे, तो हो सकता है कि उन्हें इसका बड़ा लाभ मिल जाए। लेकिन जल्दबाजी से उन्हें नुकसान होने की संभावनाओं से इनकार भी नहीं किया जा सकता, क्योंकि राजनीतिक रणनीतिकारों में प्रशांत अकेले हीरो नहीं हैं, बल्कि तमाम राजनीतिक दलों में उनके कई प्रतिद्वंदी मौजूद हैं। हालांकि यह बात अलग है कि उनमें से कई के चेहरे छुपे हुए हैं।

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