रांची (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज ब्यूरो)। झारखंड की राजधानी रांची में भूमि घोटालों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। कांके अंचल के एक छोटे से प्लॉट पर फर्जी दस्तावेजों के सहारे न केवल अवैध कब्जा किया गया, बल्कि डीसीएलआर (डिप्टी कलेक्टर लैंड रिकॉर्ड्स) कोर्ट के स्पष्ट आदेश की अवहेलना कर 25 डिसमिल जमीन पर 37 डिसमिल की रसीद तक जारी कर दी गई।
यह महज एक केस नहीं, बल्कि रांची जिला प्रशासन की गैरजिम्मेदार मानसिकता का आईना है,जहां जन शिकायत कोषांग से लेकर अंचल अधिकारी तक सब ‘टालमटोल’ की भेंट चढ़ गए। जिला आयुक्त मंजूनाथ भजयंत्री के नेतृत्व में ‘ई-गवर्नेंस’ की चमक-दमक के बावजूद पीड़ितों को ‘ढाक के तीन पात’ वाली सजा मिल रही है। क्या यह लापरवाही है या साजिश? आइए, इस फर्जीवाड़े की परतें खोलें, जहां कानून के दांत तो हैं, लेकिन उसके नाखून कटे हुए।
मामला कांके अंचल, मौजा-नेवरी (थाना सदर), खाता संख्या-17, आरएस प्लॉट नंबर-1335, नामजमीन केन्दुपावा दोन की 25 डिसमिल भूमि का है। झारखंड सरकार के नाम दर्ज यह जमीन 2010 में तीन लोगों ने वैधानिक तरीके से खरीदी। कुल रकबा में 05, 08, 12 डिसमिल हिस्सों का दाखिल-खारिज हो चुका था और 2025-26 तक ऑनलाइन लगान चुकता है। पीड़ितों ने डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सब कुछ पारदर्शी रखा।
लेकिन 2022 में एक ‘जमीन दलाल’ ने फर्जी डीड बनवाकर 12 डिसमिल का अवैध दाखिल-खारिज करा लिया। इस अप्रैल, 2025 को सोशल मीडिया पर एक वायरल डीड की जांच से खुलासा हुआ कि कांके अंचल कार्यालय से मिलीभगत कर यह फर्जीवाड़ा किया गया। आश्चर्यजनक रूप से 25 डिसमिल पर अब 37 डिसमिल की रसीद जारी हो रही है।डीसीएलआर कोर्ट के आदेश के बावजूद।
पीड़ित ने शिकायत में लिखा कि वर्ष 2010 से पूर्ण दाखिल-खारिज कब्जा है। फिर यह फर्जीवाड़ा कैसे? यह भय का माहौल पैदा कर रहा है। अन्य पीड़ितों की याचिकाएं भी इसी धागे पर हैं फर्जी निबंधन से लेकर अवैध रसीद तक।
पीड़ितों ने 04 और 10 जून 2025 को कांके अंचलाधिकारी को सीधी शिकायतें भेजीं, लेकिन सुनवाई शून्य। आशा कुमारी ने जिला आयुक्त मंजूनाथ भजयंत्री को लिखित शिकायत सौंपी, जो जन शिकायत कोषांग (13 जून 2025, पत्रांक 2847) पहुंची। कोषांग ने अपर समाहर्ता (राजस्व) को फॉरवर्ड किया, जिन्होंने 17 जून 2025 (पत्रांक 28521) में कांके सीओ से ‘अविलंब रिपोर्ट’ तलब की।
लेकिन छह महीने बाद 21 दिसंबर 2025 तक सीओ की रिपोर्ट न जन शिकायत कोषांग को मिली, न पीड़ितों को! अगर बनी भी तो गोपनीय रखी गई। कोषांग और अपर समाहर्ता के कर्मी पीड़ितों को टरकाते रहे- कांके सीओ से खुद जाओ। आशा कुमारी ने अपर समाहर्ता से कई मुलाकातें कीं, लेकिन हर बार टालमटोल कभी ‘जांच चल रही’, कभी ‘और दस्तावेज दो’। उपायुक्त को अतिरिक्त आवेदन दिए, लेकिन नतीजा? वही ‘अबुआ साथी’ पोर्टल की निष्क्रियता!
ताजा मोड़ यह है कि कांके सीओ कार्यालय के एक कर्मचारी ने रिकॉर्डेड बातचीत में कहा, रोज 50 आवेदन आते हैं, याद नहीं रहता… बार-बार आते रहो! डीसीएलआर कोर्ट के आदेश को ‘लात मार’ दिया गया और फर्जी 12 डिसमिल को राजस्व रिकॉर्ड में घुसाए बरकरार है! यह ‘बाबू राज’ का नंगा चेहरा है, जहां फाइलें घूमती हैं, लेकिन न्याय सोता रहता है।
झारखंड भूमि सुधार अधिनियम 2000 की धारा 46 फर्जी दाखिल-खारिज को तत्काल रद्द करने और 3 साल तक कारावास का प्रावधान देती है। आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी), 467 (फर्जी दस्तावेज), 468 (धोखाधड़ी का इरादा) राज शेखर पर सीधे लागू होती हैं। निबंधन अधिनियम, 1908 की धारा 82 अवैध रजिस्ट्री को कोर्ट में रद्द करने की अनुमति देती है। डीसीएलआर कोर्ट का आदेश (जिसकी अवहेलना हुई) सीआरपीसी धारा 144 के समकक्ष है उल्लंघन पर contempt of court! लेकिन प्रशासन ने इन प्रावधानों को ‘कागजी बाघ’ बना दिया। क्या कांके कार्यालय में आंतरिक ऑडिट हुआ? या यह माफिया-नौकरशाही का गठजोड़ है, जहां डिजिटल रिकॉर्ड्स को ही ‘हैक’ कर लिया जाता है?
बहरहाल रांची प्रशासन की यह गैरजिम्मेदारी शर्मसार करने वाली है। जिला आयुक्त मंजूनाथ भजयंत्री ‘जन-केंद्रित शासन’ का दावा करते हैं, लेकिन उनके दफ्तर से शिकायतें महज ‘फॉरवर्ड’ हो रही बिना ट्रैकिंग के। अपर समाहर्ता का ‘जवाब तलब’ पत्र तो निकला, लेकिन कांके सीओ की चुप्पी क्या बयान करती है? मिलीभगत? ऐसे पीड़ित को दफ्तरों के चक्कर लगवाकर तोड़ा जा रहा है। यह अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का उल्लंघन है। प्रशासन जागे, वरना हाईकोर्ट की दहलीज पर यह मामला FIR बन जाएगा और तब किसी की ‘सॉरी’ से भी काम न चलेगा।



