रांची (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 केवल एक सामान्य कानून नहीं, बल्कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) से जुड़ा नागरिकों का मौलिक अधिकार है। इसके बावजूद झारखंड में बीते चार वर्षों से राज्य सूचना आयोग का गठन न होना एक गंभीर संवैधानिक संकट का रूप ले चुका है। यानि कानून मौजूद है। अधिकार घोषित हैं। लेकिन उन्हें लागू कराने वाली संवैधानिक संस्था ही गायब है।
सुप्रीम कोर्ट अपने कई ऐतिहासिक फैसलों में स्पष्ट कर चुका है कि सूचना पाने का अधिकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है। सरकार की जवाबदेही और पारदर्शिता का आधार RTI है। जब राज्य सरकार जानबूझकर सूचना आयोग का गठन नहीं करती तो यह सीधे तौर पर मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना जा सकता है।
RTI अधिनियम की धारा 15 के अनुसार हर राज्य में एक राज्य सूचना आयोग का गठन अनिवार्य है। मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति राज्य का दायित्व है। झारखंड में इस वैधानिक दायित्व की लगातार अनदेखी हो रही है।
राज्य सूचना आयोग के अभाव में धारा 19(3) के तहत द्वितीय अपील असंभव हो गई है। धारा 20 के तहत PIO पर जुर्माना नहीं लगाया जा सकता है। RTI कानून का दंडात्मक ढांचा पूरी तरह ध्वस्त है।
कांके अंचल जैसे मामलों में अधिकारी जानते हैं कि उनके खिलाफ कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं होगी। यही कारण है कि आदेशों की खुलेआम अवहेलना हो रही है। ऐसी स्थिति में हाईकोर्ट ही एकमात्र संवैधानिक संरक्षक बचता है।
सूचना आयोग न होने से झारखंड के नागरिकों को अन्य राज्यों के नागरिकों से कम अधिकार मिल रहे हैं। यह समानता के अधिकार का उल्लंघन है। RTI के बिना सूचना का अधिकार निष्प्रभावी है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा असर है।
जब कानून तो हो, लेकिन लागू न हो तो यह Rule of Law के सिद्धांत के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि सूचना आयोगों को खाली रखना असंवैधानिक है।सरकारें जानबूझकर नियुक्ति में देरी नहीं कर सकतीं हैं। पारदर्शिता लोकतंत्र की बुनियाद है। इन निर्णयों के आलोक में झारखंड सरकार की चुप्पी और भी गंभीर हो जाती है।
हालांकि यह मुद्दा किसी एक व्यक्ति का नहीं है। पूरे राज्य के करोड़ों नागरिकों के अधिकार से जुड़ा है। इसलिए यह जनहित याचिका (PIL) का मजबूत मामला बनता है।
ऐसे में राज्य सूचना आयोग का तत्काल गठन होनी चाहिए। समयबद्ध नियुक्ति प्रक्रिया निर्धारित होनी चाहिए। आयोग के रिक्त पदों की नियमित निगरानी होनी चाहिए। RTI अपीलों के लिए वैकल्पिक तंत्र (अंतरिम व्यवस्था) होनी चाहिए।
बतौर उदाहरण राजधानी रांची अंतर्गत कांके अंचल में PIO ने सूचना नहीं दी। FAA ने चार आदेश दिए। फिर कहा कि मेरे हाथ बंधे हैं, मौं कुछ नहीं कर सकता। यह बयान खुद साबित करता है कि RTI की पूरी संरचना धराशायी हो चुकी है और इसका मूल कारण सूचना आयोग का न होना है।
झारखंड में राज्य सूचना आयोग का गठन न होना कानून का उल्लंघन है। संविधान का अपमान अपमान है। नागरिक अधिकारों की खुली अनदेखी है। अब सवाल यह नहीं कि RTI आवेदक क्या करें। सवाल यह है कि क्या हाईकोर्ट हस्तक्षेप कर लोकतंत्र के इस औज़ार को बचाएगा?



