
पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार की धरती पर सियासत का रंग हमेशा गर्म रहता है, लेकिन इस बार का तड़का कुछ खास है और वह है राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के दोनों बेटों तेजस्वी और तेज प्रताप के बीच का खुला संग्राम। कल 6 नवंबर को बिहार विधानसभा चुनाव-2025 के पहले चरण में राघोपुर और महुआ सीटों पर मतदान होगा, जहां लालू परिवार की परंपरागत विरासत दांव पर लगी है।
एक तरफ तेजस्वी यादव राघोपुर से महागठबंधन के ताजा चेहरे के रूप में मुख्यमंत्री पद की दौड़ में हैं तो दूसरी ओर उनका बड़ा भाई तेज प्रताप अपनी नई पार्टी जनशक्ति जनता दल से महुआ में अकेले वंशी बजाने में मग्न हैं। क्या यह भाईचारा सियासत की भेंट चढ़ जाएगा या लालू का जादू फिर चलेगा? आइए, इस सियासी ड्रामे की परतें खोलते हैं।
राघोपुर लालू परिवार की ‘किला’ जो कभी न डगमगाई। यह सीट यादव समाज का गढ़ है, जहां 35 फीसदी यादव मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। तेजस्वी यादव, जो 2015 और 2020 में लगातार दो बार विधायक बने, इस बार हैट्रिक लगाने उतरे हैं।
महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में वे 19 उम्मीदवारों के बीच मैदान संभाले हुए हैं। लेकिन चुनौतियां कम नहीं। भाजपा ने फिर वही रणनीति अपनाई है- यादव कार्ड। उनके उम्मीदवार सतीश कुमार यादव, जो 2020 में तेजस्वी से 38,000 से ज्यादा वोटों से हार चुके थे (तेजस्वी को 97,404 वोट, सतीश को 59,230) इस बार बदला लेने को बेताब हैं।
वहीं जन सुराज पार्टी के चंचल कुमार और तेज प्रताप की जनशक्ति जनता दल के प्रेम कुमार ने भी ताल ठोक रखी है, जिससे वोटों का बिखराव तेजस्वी के लिए सिरदर्द बन सकता है।
राघोपुर का सियासी इतिहास लालू परिवार की कहानी ही कहता है। 1998 के बाद से यहां राजद का एकछत्र राज रहा, सिवाय 2010 के उस रोचक अध्याय के जब नीतीश-बिहार की जोड़ी ने लालू को पटखनी दी। लेकिन तेजस्वी ने 2015 में वापसी की और 2020 में धमाकेदार जीत हासिल की। इस बार डेमोग्राफिक्स उनका साथ दे रहे हैं- 18 फीसदी दलित और राजपूत मतदाता, जो महागठबंधन की रीढ़ हैं। साथ ही 3 फीसदी ब्राह्मण और मुस्लिम आबादी।
स्थानीय कार्यकर्ताओं का कहना है कि तेजस्वी का चेहरा युवाओं को लुभा रहा है। वे नौकरी और विकास की बात कर रहे हैं, जबकि भाजपा पुरानी हार की छाया में उलझी है। लेकिन सवाल यह है कि क्या भाई तेज प्रताप की पार्टी से प्रेम कुमार के उतरने से यादव वोट बंटेंगे? तेजस्वी के करीबी सूत्र बताते हैं कि पार्टी ने गांव-गांव जाकर ‘परिवार एकता’ का संदेश दिया है, लेकिन सियासत में रिश्ते रेत की तरह फिसलते हैं।
अब बात महुआ की, जहां सियासी उलझन का ग्राफ राघोपुर से भी ऊंचा है। तेज प्रताप यादव लालू के बड़े बेटे, जो कभी परिवार की उम्मीद थे, अब ‘बागी’ बन चुके हैं। 2015 में महुआ से जीतकर उन्होंने सियासी पारी की शुरुआत की, लेकिन 2020 में हसनपुर चले गए।
अब जनशक्ति जनता दल के बैनर तले वे दोबारा महुआ लौटे हैं, लेकिन राह कांटों भरी है। परिवार से अलगाव ने उन्हें अकेला कर दिया है। राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने खुलकर समर्थन राजद के विधायक मुकेश रौशन को दिया है, जबकि एनडीए की ओर से लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के संजय सिंह मैदान में हैं। डॉ. आसमां जैसे स्वतंत्र उम्मीदवारों ने भी समीकरण जटिल कर दिए हैं।
महुआ में वोटों का बिखराव तेज प्रताप की सबसे बड़ी टेंशन है। यादव बहुल इस सीट पर लालू परिवार का वोट बैंक हमेशा मजबूत रहा, लेकिन अब राजद के मुकेश रौशन को मिल रहा समर्थन तेज प्रताप के लिए चुनौती है। 2015 की जीत यादों में ताजा है, जब उन्होंने 50,000 से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की थी। लेकिन इस बार?
स्थानीय विश्लेषक कहते हैं कि तेज प्रताप युवा इमेज पर निर्भर हैं, लेकिन परिवार का साथ न होने से ग्रामीण मतदाता कन्फ्यूज हैं। एनडीए की मजबूत मशीनरी संजय सिंह को फायदा पहुंचा सकती है। तेज प्रताप ने हालिया रोड शो में चुटकी लेते हुए कहा था कि मैं लालू का बेटा हूं, लेकिन अपनी राह खुद चुनूंगा। महुआ मेरी मां की तरह है, जो मुझे कभी निराश नहीं करेगी।। लेकिन सवाल वहीं कि क्या यह विद्रोह जीत की सीढ़ी बनेगा या हार का सबब?
बहरहाल यह चुनाव सिर्फ सीटें नहीं, बल्कि लालू परिवार की आंतरिक कलह का आईना है। तेजस्वी की हैट्रिक और तेज प्रताप की वापसी पर सबकी नजरें टिकी हैं। अब राघोपुर और महुआ की की जनता फैसला करेगी कि क्या यादव राज फिर कायम रहेगा या भाजपा-एनडीए का सूरज चढ़ेगा।
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