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आदित्यपुर ‘सनराइज पॉइंट’ बहुमंजिला प्रोजेक्ट पर RTI का बम फटने को तैयार

सरायकेला (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले के आदित्यपुर में तेजी से उभरते रियल एस्टेट बाजार में एक नया विवादास्पद अध्याय जुड़ गया है। समाय कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड की बहुचर्चित ‘सनराइज पॉइंट’ परियोजना, जो जी+11 मंजिला आवासीय कॉम्प्लेक्स के रूप में हाल ही में लॉन्च हुई है, अब गंभीर अनियमितताओं के घेरे में फंस गई है।

सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 के तहत दाखिल एक आवेदन ने इस प्रोजेक्ट की नींव पर सवालों की बौछार कर दी है। नदी तट से अनधिकृत दूरी, विवादित भूमि पर नक्शा पास, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की अनदेखी और सरकारी जांच के आदेशों की अनदेखी जैसे आरोप न केवल प्रोजेक्ट की वैधता पर सवाल खड़े कर रहे हैं, बल्कि आदित्यपुर नगर निगम की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर उंगली उठा रहे हैं।

यह प्रोजेक्ट हरिओम नगर के दिंडली मौजा में स्थित है। पिछले कुछ महीनों से सुर्खियों में है। कंपनी ने इसे ‘आधुनिक जीवनशैली का नया अध्याय’ बताते हुए हाल ही में लॉन्च किया, जिसमें पहले दो मंजिलें पार्किंग के लिए आरक्षित हैं। लेकिन अब आरटीआई आवेदन के जरिए सामने आ रही जानकारियां बताती हैं कि यह ‘सनराइज पॉइंट’ वास्तव में पर्यावरणीय और कानूनी नियमों का उल्लंघन कर सकता है।

आवेदन नगर विकास मंत्रालय के जरिए आदित्यपुर नगर निगम को दाखिल किया गया है, जिसमें छह प्रमुख बिंदुओं पर विस्तृत सूचना और दस्तावेज मांगे गए हैं। एक्सपर्ट मीडिया न्यूज को मिली जानकारी के अनुसार यह आवेदन स्थानीय निवासियों और पर्यावरण प्रेमियों की चिंताओं को प्रतिबिंबित करता है, खासकर तब जब जिले में अवैध निर्माणों पर प्रशासन की सख्ती की खबरें सुर्खियां बटोर रही हैं।

नदी तट से ‘खतरनाक’ निकटता: एनजीटी नियमों की अनदेखी? आरटीआई का पहला बिंदु सीधे पर्यावरणीय सुरक्षा को निशाने पर लेता है। आवेदन में पूछा गया है कि ‘सनराइज पॉइंट’ प्रोजेक्ट नदी तट से कितनी दूरी पर स्थित है? एनजीटी की दिशानिर्देशों के अनुसार, नदी या जलस्रोत से न्यूनतम 200 मीटर की दूरी अनिवार्य है, ताकि बाढ़, प्रदूषण और पारिस्थितिकी संतुलन को खतरा न हो। लेकिन प्रोजेक्ट के स्थान दिंडली, हरिओम नगर को देखते हुए विशेषज्ञों का मानना है कि यह दूरी संभवतः कम है। यदि नक्शा पास करने से पहले इसकी जांच नहीं हुई तो यह स्पष्ट उल्लंघन होगा।

आवेदन में मांगी गई जांच रिपोर्ट की प्रमाणित प्रति यदि उपलब्ध नहीं हुई तो यह साबित करेगी कि नगर निगम ने पर्यावरण मंजूरी के बिना ही हरी झंडी दे दी। पर्यावरण विभाग के पुराने दस्तावेजों से पता चलता है कि समाय कंस्ट्रक्शन ने 2020 में ही पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (ईआईए) के लिए फॉर्म-आई दाखिल किया था, लेकिन अब सवाल यह है कि क्या वर्तमान निर्माण उसकी सीमाओं का पालन कर रहा है?

सड़क का ‘भ्रम’: नक्शे में दिखाई गई चौड़ाई की सच्चाई क्या? नक्शे में दिखाई गई चौड़ाई की सच्चाई क्या? दूसरा विवादास्पद मुद्दा प्रोजेक्ट के नक्शे से जुड़ा है। आरटीआई में स्पष्ट रूप से पूछा गया है कि बहुमंजिला आवासीय परियोजना के नक्शे में कौन-सी सड़क दर्शाई गई है और उसकी चौड़ाई कितनी है? आदित्यपुर जैसे व्यस्त इलाके में, जहां ट्रैफिक जाम और बुनियादी ढांचे की कमी आम समस्या है, किसी भी बड़े प्रोजेक्ट के लिए न्यूनतम 12-15 मीटर चौड़ी सड़क अनिवार्य है।

लेकिन स्थानीय निवासियों के अनुसार प्रोजेक्ट वाली सड़क की वास्तविक चौड़ाई इससे काफी कम है, जो निकास और आपातकालीन सेवाओं के लिए खतरा पैदा कर सकती है। नक्शे की प्रति मांगकर आवेदक ने नगर निगम को कटघरे में खड़ा कर दिया है। यदि नक्शा वास्तविकता से मेल नहीं खाता तो यह ‘पेपर पर पास, जमीन पर फेल’ का क्लासिक उदाहरण होगा।

55 डिसमिल भूमि पर विवाद का काला अध्यायः सबसे गंभीर आरोप भूमि विवाद से जुड़ा है। प्रोजेक्ट में 55 डिसमिल भूमि पर स्वामित्व का विवाद चल रहा है। फिर भी नक्शा कैसे पास हो गया? आरटीआई में सभी संबंधित दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतियां मांगी गई हैं।

स्थानीय सूत्रों के मुताबिक यह भूमि पुराने किसान परिवारों और कंपनी के बीच फंसी हुई है और कोर्ट में मामला लंबित है। यदि बिना विवाद सुलझाए निर्माण हो रहा है तो यह न केवल कानूनी अपराध है, बल्कि निवेशकों के लिए भी जोखिम भरा। जिले में रियल एस्टेट घोटालों की पृष्ठभूमि में यह मामला और संवेदनशील हो जाता है।

अन्य प्रोजेक्ट्स की ‘चुनिंदा’ मंजूरी: पारदर्शिता की कमी? आरटीआई का पांचवां बिंदु व्यापक जांच की मांग करता है। विगत एक वर्ष में आदित्यपुर नगर निगम ने कितनी आवासीय परियोजनाओं के नक्शे पास किए? प्रत्येक का नाम, स्थान और पास की तारीख सहित पूरी जानकारी मांगी गई है। यह सवाल उठाता है कि क्या ‘सनराइज पॉइंट’ को विशेष सुविधा दी गई?

हालांकि जिले में रियल एस्टेट बूम के बीच पारदर्शिता की कमी से भ्रष्टाचार के आरोप लगना स्वाभाविक है। नगर निगम के आंकड़ों से यदि पता चले कि अन्य प्रोजेक्ट्स कठोर जांच से गुजरे, लेकिन यह आसानी से पास हो गया, तो सिस्टम पर बड़ा सवाल खड़े होंगे।

जांच के आदेशों पर ‘सरकारी खामोशीः सबसे चौंकाने वाला तथ्य 2023 का है। सरायकेला एसडीओ के पत्रांक 1540, दिनांक 21 दिसंबर 2023 द्वारा ‘सनराइज पॉइंट’ के अनुचित नक्शा पास के खिलाफ जांच के आदेश दिए गए थे। आरटीआई में पूछा गया है कि क्या नगर निगम ने यह जांच कराई? यदि हां, तो रिपोर्ट और साक्ष्य दें। यदि नहीं तो कारण बताएं। 20 महीने बाद भी यदि कोई कार्रवाई नहीं हुई तो यह प्रशासनिक लापरवाही का नंगा चेहरा होगा। स्थानीय कार्यकर्ता इसे ‘राजनीतिक दबाव’ का परिणाम बता रहे हैं।

यह आरटीआई आवेदन, जो धारा 7 के तहत 30 दिनों में जवाब मांगता है, न केवल ‘सनराइज पॉइंट’ बल्कि पूरे जिले के रियल एस्टेट नियमन पर रोशनी डाल सकता है। यदि नगर निगम ने दस्तावेज छिपाए या गलत जानकारी दी तो यह उच्च न्यायालय तक जा सकता है।

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