-: मुकेश भारतीय :-
बिहार के सीएम नीतिश कुमार वाली जदयू रेल चाहती थी। रेल से उसे पुराना लगाव रहा है। समता पार्टी के वरिष्ठ संस्थापक नेता जार्ज फर्णाडिस साहेब की छवि बतौर रेल मंत्री ही उभरी थी। वर्तमान रहनुमा नीतिश जी का खुमार भी उसी से बढ़ा है।
कभी रेल मंत्री के पीए रहे आसीपी सिंह (रामचन्द्र प्रसाद सिंह) की दिली तमन्ना थी कि येन केन प्रक्रेरेण रेल मंत्री की कुर्सी विराज लें, लेकिन उनकी ये हसरत फिलहाल पुरी नहीं हुई। आगे हो पायेगा, राम जाने।
आज भले ही जदयू के लोग या फिर खुद नीतिश कुमार सब कुछ मीडिया की उपज बताते हों। लेकिन दिल्ली की सत्ता की गलियारों में साफ चर्चा है कि भाजपा-जदयू की डील में केन्द्र सरकार की 2 कुर्सी भी शामिल थी।
इस डील में जदयू के तीन महारथी शामिल थे। तीनों राज्य सभा के सम्मानित सदस्य हैं- केसी त्यागी, हरिवंश सिंह और आसीपी सिंह।
भाजपा के अमित शाह इसके लिये तैयार थे। लेकिन संघ चाहती थी कि सामाजिक और राजनीतिक समीकरण के आलोक में जदयू को एक से अधिक कुर्सी न दी जाये। इस पर जदयू तैयार तो हुई, लेकिन उसकी ‘रेल वर्थ’ की जिद को पीएम मोदी साहब ने सीधे नकार दिया।
जदयू का तर्क था कि सांसद आरसीपी सिंह को रेलवे में काम करने का अनुभव है। वे नीतिश कार्यकाल में उनके पीए थे। वे नीतिश जी के आज की तारीख में खासखास भी माने जाते हैं।
हांलाकि, आरसीपी सिंह का नीतिश जी के रेल राज्य मंत्री बनने के पहले कोई संपर्क नहीं था। तब नालंदा के एक विधायक, जो अब भाजपा में हैं, उनकी पहल पर स्वजातीय आधार पर आरसीपी सिंह को नीतीश ने अपना पीए बनाया था।
बाद में वे इतने करीबी हो गये कि पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में भेजा और उनकी रणनीति पर अमल भी करने लगा। नालंदा के रहने वाले आरसीपी सिंह आज नीतीश जी के करीबी लोगों में से एक माने जाते हैं। सरकारी निर्णयों में भी इनकी राय अवश्य शामिल होती है।
इधर बिहार के सीएम नीतीश कुमार का दावा है कि कैबिनेट विस्तार पर उनसे चर्चा नहीं हुई। लेकिन सूत्रों का दावा है कि नीतीश जदयू कोटे के मंत्री के लिए रेल मंत्रालय चाहते थे। उनके निर्देश पर जदयू नेता आरसीपी सिंह और संतोष कुशवाह दिल्ली में ही रुके थे।
जब भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने यह साफ कर दिया कि जदयू को मंत्रालय पर कोई आश्वासन नहीं दिया जा सकता। इसके चलते बात बिगड़ गई।