पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार शिक्षा विभाग ने राज्य की शिक्षा व्यवस्था को फिर से एक नए मोड़ पर ला खड़ा किया है। जहाँ एक ओर अपर मुख्य सचिव (ACS) डॉ. एस सिद्धार्थ ने कुछ बड़े फैसलों के जरिए सुधार की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। वहीं उनके पूर्ववर्ती आईएएस केके पाठक ने अपनी कड़ी नीतियों के कारण कई विवादों को जन्म दिया था। लेकिन शिक्षा व्यवस्था में काफी सुधार भी देखने को मिले थे। आइए जानते हैं दोनों आइएएस के फैसलों के तुलनात्मक पहलुओं को और यह समझते हैं कि ये कदम शिक्षा व्यवस्था को कितनी दिशा देते हैं।
केके पाठक की कठोरता या सुधार की दिशा?
- गर्मी की छुट्टियाँ और स्कूलों में अवकाश का कैलेंडर: केके पाठक के दौरान, बिहार में गर्मी की छुट्टियों को खत्म कर दिया गया था। उन्होंने यह आदेश दिया कि शिक्षकों को स्कूल बुलाया जाए और छात्रों के लिए समर वैकेशन सिर्फ लागू हो। इस फैसले में छुट्टियों पर कटौती के अलावा, त्योहारों जैसे रक्षा बंधन, तीज, छठ, और दीपावली पर भी छुट्टियाँ कम की गई थीं। यह कदम विवादों में रहा। क्योंकि शिक्षक और छात्रों ने इसको अत्यधिक सख्ती और असुविधाजनक माना।
- स्कूलों की समय सीमा में बदलाव: पाठक ने स्कूलों के समय में भी बदलाव किया और इसे सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक कर दिया। पहले स्कूल 10 बजे से 4 बजे तक चलते थे। लेकिन यह कदम भी शिक्षकों और छात्रों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हुआ, क्योंकि यह अतिरिक्त समय पढ़ाई के दबाव को बढ़ाता था।
- विद्यालय निरीक्षण और उपस्थिति की सख्ती: पाठक ने स्कूलों का रैंडम निरीक्षण शुरू किया और उपस्थिति में सुधार के लिए कड़ा आदेश जारी किया। खासकर जो छात्र लगातार 15 दिन स्कूल नहीं आते थे। उनके नाम काट दिए जाने का निर्णय लिया। इस कदम ने स्कूलों में उपस्थिति को बढ़ाया। लेकिन छात्रों के लिए यह निर्णय कड़े और जाँचपूर्ण महसूस हुए।
डॉ. एस सिद्धार्थ के अहम फैसले:
- छुट्टियों की पुनः बहाली और शिक्षक की स्वतंत्रता: डॉ. एस सिद्धार्थ ने केके पाठक के फैसले को पलटते हुए सरकारी स्कूलों में अब फिर से गर्मी की छुट्टियाँ बहाल कर दीं। अब स्कूल पूरी तरह से बंद रहेंगे और शिक्षक को स्कूल आने की कोई आवश्यकता नहीं होगी। सिद्धार्थ ने यह भी स्पष्ट किया कि शिक्षक अब गर्मी में बाहर घूमने का प्लान बना सकते हैं और कोई वेतन कटौती नहीं होगी। यह फैसला कर्मचारियों के लिए राहत लेकर आया।
- छात्रों के नाम काटने का निर्णय वापस लिया: डॉ. सिद्धार्थ ने केके पाठक के फैसले को पलटते हुए कहा कि अब किसी भी छात्र का नाम केवल नियमित रूप से स्कूल न आने के कारण नहीं काटा जाएगा। इसने छात्रों को एक आश्वासन दिया कि वे बिना डर के छुट्टियाँ ले सकते हैं।
- स्कूलों की निगरानी में बदलाव: सिद्धार्थ ने स्कूलों की निगरानी का जिम्मा अब जिला विकास अधिकारियों (DDC) को सौंप दिया है। इसके साथ ही, स्कूलों के निरीक्षण के लिए एक नया रोस्टर तैयार किया गया है। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हर स्कूल का समुचित निरीक्षण किया जाए।
- यूनिवर्सिटी के फ्रीज खातों से रोक हटाई: आईएएस केके पाठक ने विश्वविद्यालयों के खातों पर रोक लगा दी थी। लेकिन सिद्धार्थ ने इसे हटा लिया। जिससे विश्वविद्यालयों को वित्तीय स्वतंत्रता मिली और वे अपनी आवश्यकताओं को बेहतर तरीके से पूरा कर सके।
आखिर शिक्षा व्यवस्था में सुधार या बेड़ा गर्क?
केके पाठक ने शिक्षा व्यवस्था में सुधार की कोशिश की थी। लेकिन उनकी सख्त नीतियों और कठोर आदेशों ने कई लोगों को असहज किया। वहीं डॉ. एस सिद्धार्थ ने लचीलेपन और समझदारी के साथ बदलाव किए। जिससे शिक्षा विभाग के कार्यकर्ताओं और छात्रों को राहत मिली। उनके कदम छात्रों की उपस्थिति को प्रोत्साहित करने के बजाय उनकी चिंता को कम करता है और कर्मचारियों के लिए एक बेहतर कार्य वातावरण तैयार करता है।
फिलहाल इन दोनों के फैसलों में यह फर्क देखा जा सकता है कि जहाँ एक ओर केके पाठक की नीतियाँ सख्त सुधार की दिशा में थीं। वहीं सिद्धार्थ का दृष्टिकोण अधिक सहानुभूतिपूर्ण और समावेशी रहा है। दोनों के फैसले बिहार की शिक्षा व्यवस्था को एक नई दिशा देने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन सिद्धार्थ के दृष्टिकोण से विभागीय अफसरों, शिक्षकों एवं छात्र-छात्राओं में अनुशासनहीनता के मामले पुराने ढर्रे पर चल पड़े हैं।
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