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    Monday, December 23, 2024
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      15 वर्षों के ‘सुशासन’ में शिक्षा का बेड़ा गर्क, बाबजूद बड़ा बजट नकारा व्यवस्था

      बिहार की शिक्षा व्यवस्था एक बार फिर सवालों के घेरे में है। जब-जब परीक्षाओं और परिणामों का समय आता है, अख़बारों की सुर्खियों में बिहार बोर्ड के कारनामे बड़े-बड़े अक्षरों में लिखे जाने लगते हैं”

      NITISH DONT CARE EDUCATION(INR). इस साल इंटर परीक्षा टॉपर कल्पना कुमारी के ‘फ्लाइंग स्टूडेंट’ होने का मामला थमा भी नहीं था कि बिहार बोर्ड का एक और ‘कारनामा’ सामने आ गया। कल्पना ने खुद माना था कि उनका रजिस्ट्रेशन बिहार का था, लेकिन उन्होंने पढ़ाई दिल्ली में रहकर की है।

      गोपालगंज के एक स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा के 42 हज़ार से अधिक उत्तर पुस्तिकाओं के गायब होने का खुलासा हुआ। ये मामला तब सामने आया जब बोर्ड के कर्मचारी 12 उत्तर पुस्तिकाएँ लेने स्कूल पहुंचे थे। इन उत्तर पुस्तिकाओं का री-वेरिफिकेशन होना था।

      स्कूल के प्रिंसिपल प्रमोद कुमार श्रीवास्तव ने 18 जून को गोपालगंज में एफ़आईआर दर्ज करवाई थी। स्कूल के प्रिंसिपल को बिहार बोर्ड के दफ्तर में पूछताछ के लिए पटना बुलाया गया, जब वे सवालों के ‘संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाए’ तो उन्हें वहीं गिरफ़्तार कर लिया गया।

      NITISH DONT CARE EDUCATION1स्कूल के प्रिंसिपल ने स्थानीय मीडिया को बताया कि सभी उत्तर पुस्तिकाएँ जांच के बाद 213 बोरियों में रखी गईं थी, जो स्कूल से गायब हो गईं, अब पुलिस ने विशेष जाँच दल का गठन किया है।

      गोपालगंज में नवादा और दूसरे ज़िलों की दसवीं के छात्रों की कॉपियां जांची गई थीं। आश्चर्य की बात है कि 213 बोरियों में रखे 42 हज़ार से ज्यादा आंसर शीट गायब हो गए और स्कूल प्रशासन को पता तक नहीं चला।

      मीडिया में छपी रिपोर्टों के मुताबिक जहां आंसर शीट रखे गए थे, उस कमरे का न ताला टूटा मिला और न ही सेंधमारी के निशान मिले हैं।बाद में पुलिस जांच में यह पता चला कि ये सभी कॉपियां रातों-रात एक कबाड़ी की दुकान में 8,500 रुपए में बेच दी गई थी। शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलती यह कोई पहली घटना नहीं है। हर साल परीक्षाओं के समय बोर्ड एक नए विवाद में फंसता है।

      बिहार अन्य राज्यों की तुलना में अपने कुल बजट का बड़ा हिस्सा शिक्षा पर खर्च करता है। इस साल बिहार विधानमंडल में एक लाख 76 हजार 990 करोड़ रुपए का बजट पेश किया गया, जिसमें से शिक्षा पर खर्च करने के लिए लगभग 32 हज़ार करोड़ रुपए दिए गए हैं।

      यह कुल बजट का 18.15 प्रतिशत है। बिहार में शिक्षा विभाग सबसे मालदार विभाग समझा जाता है। यही कारण है कि यह विभाग सत्ताधारी पार्टी खुद अपने पास रखती है।

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      साल 2005 में पहली बार ‘विकास पुरुष’ नीतीश कुमार सूबे के मुख्यमंत्री बने थे। तब से लेकर अब तक यानी 13 सालों में वो एक के बाद एक शिक्षा में सुधार के वादे और दावे करते रहे हैं, पर व्यवस्था की पोल परीक्षा और उसके परिणामों के वक्त ही खुलती है।

      इस साल हुए 12वीं की परीक्षा में करीब 12 लाख परीक्षार्थी शामिल हुए थे, जिनमें से करीब 5.6 लाख फेल हो गए। पिछले साल 12वीं में महज 47 फीसदी बच्चे ही पास हो पाए थें। वहीं दसवीं में 50.12 फीसदी बच्चों ने परीक्षा पास की थी।

      इससे पहले की बात करें तो साल 2016 का रिजल्ट भी बेहतर नहीं रहा था। 2016 में 12 वीं में 68 फीसदी बच्चों ने सफलता हासिल की थी तो दसवीं में 46.66 फीसदी ही सफल रहे थे।

      युवा आबादी के लिहाज से बिहार देश का तीसरा बड़ा राज्य है। 11 करोड़ की आबादी वाले इस राज्य में 16।8 प्रतिशत युवा हैं। इस साल जारी किए गए राज्य के आर्थिक सर्वेक्षण मुताबिक यहां 15 से 24 साल वालों की आबादी 1.75 करोड़ है।

      सर्वेक्षण के अनुसार बिहार की प्रति व्यक्ति सालाना आय 26,693 रुपए है, जो एक लाख के करीब पहुँच रहे राष्ट्रीय औसत का लगभग एक-चौथाई है।

      यहां के उद्योग-धंधों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। बिहार में देश के महज 1।5% ही कारखाने चलते हैं। यहां कृषि और गैर-कृषि आधारित कुल 3530 कारखाने हैं। इनमें से 2942 कारखाने ही चालू हैं, जिनमें 1।46 लाख लोग काम करते हैं, जो राज्य की कुल आबादी के डेढ़ प्रतिशत से भी कम है।

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      शिक्षा की अहमियत क्या है इन आंकड़ों से पता चलता है। राज्य के लोगों के लिए शिक्षा सम्पन्नता पाने का जरिया है। यही कारण है कि यहां के गरीब अभिभावक अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए अपनी जमीन और जेवर तक बेच देते हैं।

      नीतीश कुमार हर चुनावी सभा में यह दावा करते नहीं थकते कि उनके कार्यकाल में सरकारी स्कूलों में बच्चों के नामांकन दर बढ़े हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या उन्हें वहां बेहतर शिक्षा मिलती है?

      इस साल हुए मेडिकल प्रवेश परीक्षा (NEET) की ऑल इंडिया टॉपर कल्पना कुमारी ने इंटर की परीक्षा बिहार बोर्ड से दी थी, हालांकि प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए उन्हें दिल्ली के एक निजी कोचिंग संस्थान जाना पड़ा था।

      एक वीडियो में उन्होंने बाहर पढ़ने की बात खुद स्वीकारी है। वो बारहवीं में शिवहर जिले के वाईजेएम कॉलेज की छात्रा थीं। सिर्फ कल्पना ही नहीं है, बेहतर शिक्षा की चाहत रखने वाले बच्चों को दिल्ली, कोटा और अन्य राज्यों का रुख करना पड़ता है।

      भारत सरकार के आंकड़ें बताते हैं कि बिहार में कक्षा आठवीं से बारहवीं तक के 8116 सरकारी स्कूल हैं, जहां करीब 43 लाख छात्र पढ़ते हैं।

      इन्हें पढ़ाने के लिए स्कूलों में 1.08 लाख शिक्षक हैं। इनमें से कुछ ऐसे शिक्षक भी हैं, जिन्हें अंग्रेजी में दिनों और महीनों का नाम तक लिखना नहीं आता। इनकी जानकारी में बिहार की राजधानी दिल्ली है। अब जरा सोचिए कि बेहतर शिक्षा की चाहत रखने वाले बच्चे बिहार में रहकर पढ़ाई क्यों करेंगे।

      नीतीश कुमार के पहले कार्यकाल में बड़े पैमाने पर शिक्षक बहाल किए गए थे। भर्तियां डिग्री और अंक के आधार पर की गई। कई स्तर पर नियोजन इकाइयां बनाई गईं, जहां जमकर फर्जीवाड़ा हुआ। फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर रिश्वत लेकर कई लोगों को शिक्षक बना दिया गया।

      खुलासा होने पर करीब तीन लाख शिक्षकों के सर्टिफिकेट की जांच का जिम्मा राज्य के विजलेंस ब्यूरो को दिया गया। जांच में हजारों सर्टिफ़िकेट फ़र्ज़ी पाए गए।

      शिक्षा में फ़र्जीवाड़े की यह इकलौती तस्वीर नहीं है। याद कीजिए कुछ साल पहले परीक्षा में धड़ल्ले से हो रहे कदाचार की तस्वीर ने देश-दुनिया की मीडिया में ख़ूब सुर्खियां बटोरी थी।

      नीतीश कुमार के बिहार की सत्ता संभालने के एक दशक बाद इस तस्वीर ने उनकी कार्यप्रणाली और ‘न्याय के साथ विकास’ वाली छवि पर प्रश्न खड़ा कर दिया। सरकार की ख़ूब फजीहत हुई।

      सिलसिला आगे बढ़ता ही रहा। अगले साल यानी 2016 में हुए टॉपर स्कैम ने यह साबित कर दिया कि बिहार में फ़र्जी शिक्षक ही नहीं, फर्जी टॉपर भी बनाए जा सकते हैं।

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      इंटर परीक्षा की आर्ट्स टॉपर रुबी राय, साइंस टॉपर सौरभ श्रेष्ठ से जब मीडिया ने उनके विषयों से जुड़े कुछ आसान सवाल पूछे तो वे उनका उत्तर नहीं दे पाए। रुबी राय ने तो अपना फेवरिट सब्जेक्ट “प्रोडिकल साइंस” (पॉलिटिकल साइंस कहना चाहती थीं) बताया था।

      जब सरकार की चहुं ओर फजीहत हुई तो जांच बिठाई गई, जिसमें बिहार बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष लालकेश्वर प्रसाद से लेकर बोर्ड के क्लर्क तक को घपले में शामिल पाया गया। यहां तक कि फर्जीवाड़े के सूत्रधार बच्चा राय के संबंध बिहार के राजनीतिक दलों से भी पाए गए। ये सभी जेल भेजे गए।

      2017 में भी इंटर के आर्ट्स टॉपर गणेश कुमार भी फ़र्जी पाए गए और इस साल का बोर्ड का कारनामा सबके सामने है। हर साल फूंक-फूंक कर कदम रखने वाला बिहार बोर्ड हर बार नए विवाद में फंसता है।

      परीक्षा और परिणाम के बाद नए-नए घोटाले सामने आते हैं। यह दर्शाता है कि बिहार की शिक्षा व्यवस्था में पढ़ने-पढ़ाने से लेकर परीक्षा तक में अव्यवस्था और भ्रष्टाचार हर कदम पर फैला है।

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