संवाददाता (नालंदा)। चीनी यात्री ह्वेनसांग के नालंदा ( भारत ) आने से पहले ही चीन में भारतीय बौद्ध आचार्यो के द्वारा बौद्ध धर्म की स्थापना की जा चुकी थी। उस समय आठ निकायों में उसका विकास वही हो चुका था। जिनमें कुछ पाठांतर भी था। बौद्ध धर्म के रहस्य व मूल को जानने के उद्देश्य से ही ह्वेनसान्ग नालंदा आए थे।
चीनी यात्री ह्वेनसांग नालंदा में रहकर बौद्ध अध्ययन तो किया ही इसके साथ संस्कृत एवं अन्य विषयों की भी गहन शिक्षा हासिल की। नालंदा से चीन लौटने के दौरान वे यहां से 1500 से अधिक सूत्र ( पाण्डुलिपी ) अपने साथ ले गए, जिसका अनुवाद उन्होंने अपनी मूल भाषा में किया। नालंदा से लगाये मूल प्रती को उन्होंने सुरक्षित रखा था।
नव नालंदा महाविहार डीम्ड विश्वविद्यालय, नालंदा में आयोजित ” मैन्युस्क्रिप्ट्स ऑफ़ बिहार इन रिच द एशियन बुद्धिज़्म ” विषयक सेमिनार के दूसरे दिन चीनी विद्वान डॉक्टर यू कुंडला ने रविवार को यह कहा।
बौद्ध विद्वान मंतोष मंडल ने नालंदा विश्वविद्यालय के आचार्य शांतरक्षित के योगदान पर प्रकाश डालते हुए कहा कि तिब्बत में बौद्ध धर्म के प्रचार और प्रसार में शांतरक्षित का बहुत बड़ा योगदान है।
तिब्बत के राजा थिसंग देचन के आमंत्रण पर नालंदा के आचार्य जब वहां गए थे तो वह अपने साथ माध्यमिक अलंकार शास्त्र ही लेते गए थे। इसी शास्त्र से तिब्बत में बौद्ध परंपरा का आगाज हुआ और प्रचार-प्रसार भी।
पदार्थविद् डॉक्टर देव ज्योति गंगोपाध्याय ने पुरानी पांडुलिपियो के अध्ययन में भी नयी तकनीकों का प्रयोग करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आधुनिक समय में आनुभविक विषयों को सही और गलत तय करने में विज्ञान का महत्वपूर्ण पैमाना माना जाता है।
बौद्ध विद्वान डॉक्टर विश्वजीत कुमार ने मगध सम्राट अशोक के समय के पूर्व के लेखन कला की खोज करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि नेशनल पांडुलिपि मिशन को इसके लिए आगे बढ़कर अन्वेषण करना चाहिए। सम्राट अशोक के पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा बुद्ध वचन अपने साथ श्रीलंका ले गए होंगे इसकी पूरी संभावना है।
पांडुलिपिविद् विवेकानंद बनर्जी ने कहा कि पांडुलिपि के संपादन में अनंतलाल ठाकुर के योगदानों को भुलाया नहीं जा सकता है । उनके योगदान लेखन और संपादन पर उन्होंने विस्तार से प्रकाश डाला। समर कुमार मंडल ने पांडुलिपिविद् राजेंद्रलाल मित्रा के योगदानों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे 1882 में नेपाल जाकर बहुत सारी पांडुलिपियों का संग्रह किए थे।
सभी संग्रह साहित्य से संबंधित थे, जिसका प्रकाशन भी कराया जा चुका है। इस अवसर पर विश्व भारती शांति निकेतन के प्रोफेसर सेदुप तेनजिन्ग ने तिब्बत में बौद्ध धर्म के विकास में भारत के सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया।
इनके अलावा सेमिनार में रघुनाथ कक्षवे, सुबोध कुमार, रविंद्र कुमार, दिनेश प्रसाद सहित अनेक पांडुलिपिविदो ने अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया।