“कभी मध्य बिहार में आतंक के पर्याय थे चितरंजन कुमार, श्री-श्री रविशंकर के सानिध्य में आकर की बूरे कर्मों से तौबा, 2010-15 तक रहे अरवल से थे भाजपा के विधायक भी, पूरे नवरात्र एकांत में मौन व्रत रख रहते हैं साधना में लीन….! “
पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज). महर्षि नारद से ज्ञान पाकर डाकू से ‘रामयण’ जैसे धार्मिक ग्रंथ के रचयिता बने संत बाल्मिकी की कहानी तो जग जाहिर है। लेकिन यहां पाठकों को एक ऐसे शख्स के बारे में जानकारी दिया जा रहा है, जिसने जब ‘शस्त्र’ छोड़ ‘शास्त्र’ पकड़ा तो उनके जीवन की धारा ही बदल गई।
पटना जिला के धनरुआ थाना अंतर्गत नीमा गांव निवासी संजय सिंह, चितरंजन सिंह, अशोक सिंह बबलू सिंह व एक अन्य गांव निवासी एक दारोगा पुत्र विपीन सिंह ने 90के प्रारंभिक दौर में नक्सलियों से लोहा लेने के लिए ‘पांडव सेना’ का गठन किया था।
इस सेना के गठन के शुरुआती दौर में तो सबकुछ ठीक-ठाक था पर बाद में इस गिरोह का लक्ष्य भटक गया और ‘पांडव सेना’ रंगदारी और ठेकेदारी के लिए हत्याओं पर उतर आया।
मध्य बिहार और खासकर जहानाबाद में इस गिरोह का अभ्युदय 1993 में तब सामने आया, जब इस गिरोह के लोगों ने जहानाबाद कोर्ट एरिया में अपनी दूकान पर बैठे आकोपुर गांव निवासी दो सगे दबंग माने जाने भाइयों भीम सिंह और भोला सिंह की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी।
हालांकि तब इस हत्याकांड में पांडव सेना का नाम नहीं आया और कुछ निर्दोष लोगों को इस मामले में आरोपित कर दिया गया था, जिनमें भीम-भोला के पड़ोसी और जहानाबाद में प्रबुद्ध नागरिकों में से एक माने जाने वाले तब के एक तत्कालीन बैंक मैनेजर का भी नाम था।
1996 में इस गिरोह ने जहानाबाद में दूसरी बार दस्तक देते हुए जहानाबाद सब्जी मंडी के पास दिन-दहाड़े राजद नेता अभय सरदार की गोली मारकर हत्या कर दी।
इसके बाद इस गिरोह का दहशत जहाबादवासियों पर इस कदर छाया की कई चिकित्सकों व व्यवसायियों से ‘पांडव सेना’ कुछ स्थानीय छूटभैये अपराधी रुपये वसूलने लगे।
पांडव सेना का सबसे ज्यादा खौफ तब छाया जब इस गिरोह ने रंगदारी के सवाल पर जहानाबाद के व्यस्ततम सट्टी मोड़ पर स्थित राजेश वस्त्रालय के मालिक के पुत्र राजेश को दूकान में ही एके-47 से छलनी कर दिया था।
इसके बाद इस गिरोह ने कोर्ट एरिया में रहने वाले जहानाबाद के एक नामचीन ठेकेदार अजय सिंह की उनके ही घर में हत्या कर दी। इस गिरोह ने जहानाबाद के ही एक अन्य नामचीन ठेकेदार रामानंद यादव उर्फ बऊआ जी पर एक बार जहानाबाद -एकंगर सराय रोड में तो दूसरी बार पटना के पुनाईचक में जानलेवा हमला किया, जिसमें दोनों बार वह बच गए।
दो हजार के दशक में इस गिरोह में अंदरुनी फुट हो गई। गिरोह के दो अहम सदस्य अशोक सिंह व बबलू सिंह की 2004 में गढ़वा में उस वक्त गोली मारकर हत्या कर दी गई, जब दोनों रात का खाना खाकर टहलने निकले थे।
एक और सदस्य विपीन सिंह की सड़क दूर्घटना में मृत्यु हो गई, जबकि संजय सिंह व चितरंजन कुमार ने अपना रास्ता बदल दिया।
संजय सिंह 2005 के चुनाव में लोजपा के टिकट पर पालीगंज से चुनाव भी लड़ा। जबकि चितरंजन कुमार श्री-श्री रविशंकर के सानिध्य में आकर अपनी राह बदल दी।
चितरंजन को गुरुदेव की कृपा से ही 2010 में अरवल से भाजपा का उम्मीदवार बनाया गया और वह चुनाव जीतकर विधायक बन गए, पर पिछला चुनाव वह राजद-जदयू गठबंधन प्रत्याशी रविन्द्र कुमार के हाथों हार गए।
जिस चितरंजन और उनकी पांडव सेना का खौफ कभी पूरे बिहार में था आज उसी चितरंजन कुमार को देखकर कोई यह अंदाजा भी नहीं लगा सकता कि कभी यह दुर्दांत अपराधी रहे होंगे।
प्रारंभिक दौर से ही ‘वेजेटेरियन’ रहे चितरंजन सिंह जहां इन दिनों पूरे नवरात्र मौन व्रत रख साधाना में लीन हैं, वहीं संजय सिंह भी आपराधिक पृष्ठभूमि को छोड़कर कूर्था से विधानसभा के चुनाव लड़ने की तैयारी में लगे हैं।
हांलाकि इन दिनों चिरंजन कुमार और संजय सिंह के बीच गांव में ही हुए एक विवाद के बाद छत्तीस का रिश्ता है। गांव के लोग किसी तरह दोनों के तल्ख हुए रिश्ते को पाटने के प्रयास में लगे हैं।