रांची (मुकेश भारतीय)। करीब 53 लाख उपर खर्च हो गए। पूरा खाका बन कर तैयार हो गया। सिर्फ मछलियां से घर आबाद करना था लेकिन, वह समय पर नहीं हो सका और आज सब कुछ खंडहर नजर आ रहा है।
जी हां, बात कर रहे हैं विभागीय अफसरों की लूटस्थली बनी भगवान बिरसा जैविक उद्दान ओरमांझी परिसर स्थित महात्वाकांक्षी मछली घर की। इसका निर्माण एक दशक पूर्व हुआ था लेकिन, आज उसे पुनः सजाने के लिये नये सिरे से सब कुछ नये सिरे से तैयार करना पड़ेगा।
इस संदर्भ में कोई बताने को तैयार नहीं है कि आखिर सारी संरचना तैयार कर ली गई थी। बिजली, पानी वायरिंग से लेकर रंग-रोगन कर लिया गया था। फिर यह घर सतरंगी मछलियों से आबाद क्यों न हो सका।
आरटीआई से प्राप्त सूचना के अनुसार इस मछली के निर्माण में प्राकल्लन से अधिक अब तक 52,72,665 रुपये खर्च किये जा चुके हैं और इसका निमार्ण कार्य 2004-2005 में प्रारंभ हुआ था।
बकौल वर्तमान उद्दान निदेशक अशोक कुमार सिंह, वे नये आये हैं और इस संबंध में वे कुछ नहीं बता सकते। उनके आलावे उद्दान के अन्य सारे जिम्मेवार अफसर खुद को इसके लिए अधिकृत न बता अपना पल्ला झाड़ रहे हैं।
दरअसल, इस मछली घर के आबाद न होने के पीछे अफसरों और ठेकेदार के लूट की खुली गाथा छुपी है। जंगली झाड़ियों के बीच हर तरफ चटकी दीवारें, उजड़े खिड़की-दरवाजे, जीर्ण-शीर्ण पानी के पाइप वायरिंग किये बड़े-बड़े गढ्ढे आदि इस बात के प्रमाण हैं कि इसकी बुनियाद ही भ्रष्टाचार की ईंट से रखी गई है उसी की सिमेंट-बालु से खत्म हुई है। जिसे देखने वाला न कल था और न उसकी सुध लेने वाला कोई आज है।
बहरहाल, लाखों रुपये की लूट के बाद बिन मछली घर की हालत को देख कर नहीं लगता है कि यह खंडहर कभी सतरंगी जल परियों से सज पायेगा। क्योंकि इसे सजाने की कोशिश करते ही खुलेगा एक बड़ी लूट का राज और उसकी चपेट में कई बागड़ बिल्ले दिखेगें। इसीलिये विभागीय लोगों की मंशा यही है कि यह राज कभी न खुले और हर काले कारनामें झाड़ियों के बीच दफन होकर रह जाये।