– जयप्रकाश नवीन –
“दुनिया कहें बुरी है ये बोतल शराब की,
अपनी तो जिंदगी है ये बोतल शराब की,
हमदम अमीर की है न दुश्मन गरीब की,
मानता हूँ जनाब पीता हूँ, ठीक है बेहिसाब पीता हूँ,
लोग तो लोगों का खून पीते हैं,
मैं तो फिर भी शराब पीता हूँ ।”
शराब पीने वालों के लिए यह पंक्ति पांच अप्रैल से ही बंद है ।राज्य में 5 अप्रैल से पूर्ण शराब बंदी लागू है । राज्य के सभी मयखाने बंद है । बावजूद राज्य में चोरी छिपे शराब की खेप आ रही है, धंधेबाज मस्त है, शराबी भी चोरी छिपे ज्यादा दामों पर शराब खरीद रहे हैं ।वही राज्य में जनप्रतिनिधि भी इस कानून को ताक पर रखे हुए हैं । पंचायत प्रतिनिधि को छोड़ दे तो राज्य के ‘माननीय ‘भी इस कानून की चपेट में आ चुके हैं ।
यह अलग बात है कि राज्य में शराब निर्माण का धंधा बंद है। लेकिन झारखंड, यूपी और हरियाणा से शराब की खेप राज्य में पहुँच रही है।
आज से दस साल पहले चलते है। राज्य में देशी शराब के ठीके गली-गली में ऐतिहासिक स्मारक की तरह खुल गए थे। सरकारी राजस्व बढ़ाने वाले राज्य के शराबी वैधानिक चेतावनी के बाद भी जो काम हो रहा था । उससे हमारे राज्य की अर्थव्यवस्था धन्य ही होती आ रही थी। शराब और सिगरेट उस चेतावनी की तरह बिकते आ रहे थे, जैसे झूठ बोलना महापाप है व इससे खुलता नरक द्वार है।
5 अप्रैल से सीएम नीतीश कुमार की शराब बंदी की घोषणा काबिले तारिफ है ।कहने को उनका विचार नेक है। लेकिन सिवाय एक राजनीतिक चोंचले से अधिक कुछ नहीं।
5 अप्रैल से ‘मयखाने बिहार ‘अब विकास की नई कहानी गढ़ता इससे पहले ही शराब बंदी कानून की हवा निकलती दिखने लगी। जिस राज्य में एके47 से लेकर गांजा, चरस, स्मैक तक आसानी से उपलब्ध हो….वहाँ यह कल्पना करना बेमानी है कि राज्य में शराब बंदी कानून असरदार हो।
बिहार में इससे पहले भी मसाला गुटखा पर प्रतिबंध लगा लेकिन हश्र क्या हुआ। हर मुँह में अब भी पहले की तरह गुटखा युक्त है। खासकर सरकारी कार्यालय में कर्मचारी इसका ज्यादा उल्लंघन कर रहे थे। लेकिन बाद में सरकार ने इस पर से बैन हटा लिया गया।
अमेरिका जैसे देश में भी 1920 में शराब बंदी का प्रयोग किया गया था। 13 साल में ही अमेरिका को भारी उथल पुथल से गुजरना पड़ा। इस दौरान कई माफिया गैंग उदित होते चला गया। कहने को तो गुजरात में भी 1960 से ही शराब बंदी है। लेकिन वहाँ एक कॉल पर शराब पिज्जा की होम डिलेवरी से भी जल्द उपलब्ध हो जाती है। लेकिन डबल दामों पर।
गौरतलब रहे कि सीएम नीतीश कुमार ने चुनाव के दौरान राज्य में शराब बंदी लागू करने का वादा किया था। देश में इस समय गुजरात और नागालैंड में शराब बंदी कानून लागू है।
शराब बंदी कानून लागू होने की चुनौतियाँ और मुश्किलें खड़ी भी होने वाली है। जिनसे निपटना आसान नही होगा। दरअसल जहाँ भी शराब पर रोक लगती है, वहाँ शराब माफिया का नेटवर्क खड़ा हो जाता है। सरकार के मंसूबे फेल हो जाते है। शराब पर रोक भी नहीं लगती और सरकार को हजारों करोड़ों का नुकसान अलग। बिहार में देशी -विदेशी शराब दुकानों के अलावा गलियों में, ठेले पर,खिचड़ी परोस दुकानों में, छोटे -छोटे ढाबो पर शराब का धंधा धड़ल्ले से चलता है। ग्रामीण इलाकों में तो शराब चुलाई का रिवाज ही है।
पंचायत और ब्लॉक स्तर पर संचालित दुकान जो एक समय बिहार में ऐतिहासिक धरोहर माना जाता था। वह तो खत्म हो गया ।
खैर बिहार के मधुशालाओ में दिन को होली और रात को दीवाली 5 अप्रैल से ही खत्म हो गई है। मधुशाला बंद है। रात की पार्टियों में शराब गायब हो चुकी है। लेकिन लोग है कि कहीं से न कही जुगाड कर ही लेते हैं।
अंत में हरिवंश राय बच्चन की कुछ पंक्तियों के साथ……
‘पी पीने वाले चल देंगे,
हाय,न कोई जानेगा,
कितने मन के महल ढहे,
तब खड़ी हुई यह मधुशाला “
” अब न होंगे वे पीने वाले,
अब नहीं रहेगी वह मधुशाला”।
खैर राज्य में शराब बंदी कानून कब तक जारी रहती है, यह तो भविष्य के गर्त में है ।