“विश्वविद्यालय में कुलपति के नहीं रहने के कारण यहाँ की प्रशासनिक और शैक्षणिक व्यवस्था अस्त व्यस्त हो गया है । विश्वविद्यालय में विकास के काम ठप हैं । वहीं सभी संकायो में रेगुलर वर्ग का संचालन नहीं हो रहा है।“
नालंदा (राम विलास)। नव नालंदा महाविहार डीम्ड विश्वविद्यालय नालंदा में स्थाई कुलपति की नियुक्ति की मांग उठने लगी है। इस विश्वविद्यालय में विगत 2 वर्षों से कुलपति का पद रिक्त है। प्रभारी कुलपति के भरोसे यह विश्वविद्यालय संचालित हो रहा है। ये प्रभारी कुलपति राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली के सचिवालय में बैठकर ही विश्वविद्यालय का संचालन करते हैं।
वर्तमान कुलपति प्रणव खुल्लर के पहले अप्रैल तक एम एल श्रीवास्तव इसके कुलपति थे। ये दोनों संस्कृति मंत्रालय के संयुक्त सचिव हैं । अपने मंत्रालय के कार्यों के बोझ से दवे इन अधिकारी को ससमय काम निपटाने में काफी मसक्त करनी पड़ती है । वे इस विश्वविद्यालय के लिए चाह कर भी समय नहीं निकाल पाते हैं।
वर्तमान कुलपति प्रणव खुल्लर अपने करीब आठ महीने के कार्यकाल में केवल तीन बार नालंदा आये हैं और एक दिन या अधिकतम दो दिनों में लौटते रहे हैं ।
जानकर बताते हैं कि कुलपति राष्ट्रीय राजधानी के सचिवालय में बैठकर ही विश्वविद्यालय के कार्यों का निष्पादित करते हैं। यहां से रजिस्ट्रार फाइलो का गठ्ठर समय- समय पर दिल्ली ले जाते हैं और कई दिनों तक प्रवास कर संचिकाओ का निष्पादन करवाकर वापस लौटते हैं ।
जानकर यह भी बताते हैं कि शिक्षकों और शिक्षकेतर कर्मियों के वेतन भुगतान के लिए भी चेक पर हस्ताक्षर कराने के लिए रजिस्ट्रार को राष्ट्रीय राजधानी का दौड़ लगाना पड़ता है। विश्वविद्यालय में कुलपति के नहीं रहने के कारण यहां की प्रशासनिक और शैक्षणिक व्यवस्था बदहाल हो गये हैं। विकास के काम लगभग अवरुद्ध हो गये हैं । छात्रावास भवन निर्माण का मामला हो या जमीन अधिग्रहण का सभी के सभी काम ठप हैं ।
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं नीरपुर पंचायत के पूर्व मुखिया रत्नेश कुमार, भारतीय जनता पार्टी के जिला उपाध्यक्ष श्याम किशोर भारती, जिला परिषद सदस्य चंद्रकला कुमारी समेत अनेक लोगों ने केंद्रीय संस्कृति मंत्री डॉ महेश शर्मा से नव नालंदा महाविहार डीम्ड विश्वविद्यालय में स्थाई कुलपति की नियुक्ति की मांग की है।
मालूम हो कि संस्कृति मंत्री डॉ महेश शर्मा ही इस विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी हैं। इन सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि कुलपति के नहीं रहने के कारण विश्वविद्यालय का व्यवस्थित संचालन नहीं हो रहा है। प्रशासनिक व्यवस्था तो लुंज-पुंज हो ही गई है। शैक्षणिक व्यवस्था पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
सबसे अधिक बुरा असर विदेशी छात्रों पर पड़ रहा है। जिस उद्देश्य से विदेशी छात्र यहां आते हैं। उनके उद्देश्य की पूर्ति में बाधा हो रही है । रेगुलर क्लास नहीं होने के कारण उनके उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो रही है।
यहां के बुद्धिजीवियों की मांग है कि विश्वविद्यालय की गौरव गरिमा को बेहतर बनाये रखने के लिए और अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर ख्याति दिलाने के लिए नियमित कुलपति का होना बहुत जरूरी है ।
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा है कि महाविहार की स्थापना प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की स्मृति में की गई है। भारत सरकार ने इस संस्थान को डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा भी दिया है। लेकिन स्थाई कुलपति नहीं रहने के कारण यह उद्देश्य को हासिल करने में सफल होता नहीं दिख रहा है।