नालंदा(प्रमुख संवाददाता)। एक तरफ सरकार और जिला प्रशासन निजी स्कूलों और कोचिंग संस्थानों पर लगाम लगा रही है। उनके निबंधन को लेकर सख्त कदम उठा रही है। तो दूसरी तरफ चंडी प्रखंड में धड़ल्ले से निजी क्लिनिक और नर्सिंग होम का संचालन हो रहा है। पूरे क्षेत्र में नीम हकीमों की चल रही है। सभी नियम कानून ताक पर रखकर क्लिनिकों का संचालन किया जा रहा है। चंडी में कुकुरमुते की तरह निजी क्लिनिक का जाल फैला हुआ है।
चंडी प्रखंड के माधोपुर, जैतीपुर, हिलसा रोड, हरनौत मोड़, नरसंढा सहित कई क्षेत्रों में दर्जनों निजी क्लिनिक या नर्सिंग होम फल फूल रहा है। बावजूद न स्वास्थ्य विभाग की नींद टूटती है और न ही नालंदा के डीएम की। बिना किसी डिग्री और निबंधन के चल रहे इस क्लिनिको में न कोई डिग्री धारी चिकित्सक होते हैं, न ही कंपाउडर और न ही इलाज की समुचित व्यवस्था। कपाउंडर ही चिकित्सक की भूमिका निभाते हैं ।
चंडी प्रखंड में बगैर लाइसेंस और निबंधन के अवैध रूप से संचालित दर्जनों क्लिनिक मुर्दे से कफन छीनने की कहावत को चरितार्थ कर रहे है। लालच और पैसे की भूख ने इनसे मानवता और सारी संवेदनाएं तक छीन ली है साथ ही टूट रहा है वह भरोसा और विश्वास, जो लोगों के अंदर चिकित्सा सेवा के प्रति अभी तक कायम थी।
इन क्लिनिकों में इलाज के नाम पर धोखाधड़ी और मरीजों व उनके परिजनों के साथ होने वाले अमानवीय व्यवहार को देखने सुनने वाला कोई नहीं। हालांकि तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। वह यह कि क्षेत्र में कुछ ऐसे चिकित्सक हैं, जो अपनी ईमानदारी और कर्त्तव्यनिष्ठा की बदौलत इस सेवा की लाज बचाये हुए हैं। निजी क्लिनिकों व अस्पतालों में यदि क्लिनिकल इस्टेबलिशमेंट एक्ट को लागू कराने के प्रति जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग गंभीर होता तो स्थिति बदल सकती थी।
चिकित्सा सेवा की गुणवत्ता और विश्वसनीयता बनाये रखने के लिए प्रशासन को चाहिए कि वह राज्य सरकार के क्लिनिकल इस्टेबलिशमेंट एक्ट को चंडी के सभी क्लिनिकों में लागू कराये। चिकित्सा विभाग के लोगों का मानना है कि यदि डॉक्टर ईमानदारी पूर्वक अपने यहां इस एक्ट का पालन करें तो उनके क्लिनिक में इलाज की बेहतर व्यवस्था देखने को मिल सकती है। मरीजों का इलाज भी उचित तरीके से हो सकेगा।
जानकारों का कहना है कि चंडी प्रखंड में जिस प्राइवेट क्लिनिक या नर्सिंग होम में एक्ट का पालन नहीं हो रहा है, उसे फौरन बंद कराया जाना चाहिए, ताकि गलत इलाज के कारण लोगों को मरने से बचाया जा सके।
चंडी में संचालित क्लिनिकों में रोगियों के बैठने तक की सुविधा नहीं होती है। इन क्लिनिकों का हाल देखेंगे तो ऐसा लगेगा मानो ये क्लिनिक के बजाय दरबे में दुकान चला रहे हों। कुछ को छोड़ कर ज्यादातर प्राइवेट क्लिनिकों में रोगियों के लिए न्यूनतम सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं। ये क्लिनिक कहीं से स्वास्थ्य मानकों के अनुरूप नहीं हैं. जहां-तहां खोले गये नर्सिंग होम्स का भी यही हाल है। दो-चार चौकियां रख दी, हरे रंग का परदा टांग दिया, किसी तरह एक ओटी और एक चिकित्सक कक्ष बना दिया और खुल गया नर्सिंग होम. ऐसे नर्सिंग होम्स ही मरीजों के लिए जानलेवा साबित होता रहा है ।
माधोपुर में लोगों का कहना है कि डॉक्टर की फीस, जांच की दर और ऑपरेशन की फीस निर्धारित नहीं होने के कारण भी रोगियों को शोषण-दोहन का शिकार होना पड़ता है। प्रशासनिक स्तर पर इन सभी चीजों की दर निर्धारित होनी चाहिए और उसकी सूची सभी क्लिनिकों और नर्सिंग होम्स में लगायी जानी चाहिए। इससे मनमानी और नाजायज वसूली पर रोक लगेगी और मरीजों को राहत मिलेगी।