“राजगीर मलमास मेला नहीं, अपितु भारत दर्शन का एक केंद्र है। आइए कुछ तस्वीरों के माध्यम से और कुछ कहानी के माध्यम से इस मेला के बारे में जानते हैं। यहां पूर्वोत्तर भारत के कलाकार जहां अपने करतब दिखाकर लोगों का मनोरंजन करने के लिए आते हैं। वहां बंगाली रसोइए भोजन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। वही कश्मीरी व्यक्ति इस मौसम में भी शॉल कंबल बेचते नजर आते हैं। कह सकते हैं कि पूरा भारत को यह मेला अपने आप में समेटे हुआ है।”
लेखक-विश्लेषकः श्री मानवेन्द्र मिश्रा राजगीर मलमास मेला 2018 के विशेष न्यायायिक दंडाधिकारी हैं।
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज। राजगीर मलमास मेला 2018 के विशेष न्यायिक दंडाधिकारी श्री मानवेंद्र मिश्रा ने राजगीर मलमास मेला का ताजा विश्लेषण करते हये बताया कि इस विज्ञान के युग में भी कुछ बातें ऐसे सामने आती हैं, जिनका विज्ञान की दुनिया में भी और तर्क शास्त्रियों के पास भी कोई समुचित जवाब नहीं होता है।
यह सारे प्रश्न धर्म और आस्था से जुड़े होते हैं, वैसे ही एक चीज मलमास मेला के दौरान सामने आयी कि मलमास मेला पूरे 1 माह के दौरान राजगीर में काला कौवा या काग पक्षी नजर नहीं आता है।
धर्मशास्त्रों का अनुसार ब्रह्मा के मानस पुत्र राजा वसु ने महायज्ञ के दौरान जब 33 कोटि देवी देवता को यज्ञ में राजगीर आने का आमंत्रण दिया था, लेकिन भूलवश कौआ या काग पक्षी को निमंत्रण देना भूल गए। इस कारण कौवा यज्ञ में शामिल नहीं हुए।
कहा जाता है कि कौवा की नाराजगी आज तक है और इसलिए मलमास के दौरान सभी कौआ राजगीर के इलाके से कहीं दूर चले जाते हैं और मलमास मेला खत्म होते ही पुनः वापस चले आते हैं।
जबकि हम सभी जानते हैं कि कौवा पक्षी को इंसानों से के बीच रहने से कोई परहेज नहीं है क्योंकि वह उनके द्वारा फेंके गए जूठे अन्न के दाने खाना पसंद करते हैं और मलमास मेला में लाखों श्रद्धालु प्रतिदिन आते हैं। यहां सैकड़ों की तादात में होटल नाश्ता की दुकानें हैं।
सभी जगह मेला क्षेत्र में जूठन पर्याप्त मात्रा में बिखरा रहता है, लेकिन ऐसी स्थिति में भी काग कौआ पूरे 1 माह मेला अवधि में राजगीर में नजर नहीं आना, इस प्रश्न का समुचित जवाब वैज्ञानिकों के पास भी नहीं है। कुछ ऐसे ही बातें धर्म और आस्था से मनुष्य की डोर को मजबूती से बांधे है।
मलमास मेला खत्म होने में मात्र 2 दिन शेष हैं। मलमास मेला नियंत्रण कक्ष में बैठे बैठे हैं। सोच रहा था कि मलमास मेला और इसके महत्व के बारे में अनेकों पुराण धर्म ग्रंथ भरे पड़े हैं। किंतु उन्हीं सब ग्रंथों में से कुछ पंक्ति अपने शब्दों में लिखूं, जो सदैव स्मृति में ताजी रहे। श्रद्धालुओं की भीड़ के बारे में लिखूं, जो इस गर्मी में भूख प्यास को बर्दाश्त करते हुऐ घण्टों ब्रह्मकुंड में नहाने के लिये कतार में खड़े रहते है।
अलग अलग गाँव ,जिलों में ब्याही गयी बहनों, का यह मिलन स्थल है, रिश्तों रिश्तेदारों के बीच गिले-शिकवे दूर करने का यह मिलन स्थल है। अनेक नए रिश्तो को जन्म देने का यह मिलन स्थल है। अनेक संस्कृतियों से परिचित होने का यह मिलन स्थल है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर तीसरे वर्ष में अधिक मास होता है। हिंदू धर्म में अधिक मास के दौरान सभी पवित्र कर्म जैसे विवाह मुंडन या जनेऊ इत्यादि वर्जित माने गए हैं।
माना जाता है कि अतिरिक्त होने के कारण यह मास मलिन होता है। मलिन मानने के कारण ही इसका नाम मलमास पड़ गया है। सौर मास में 12 माह और राशियां भी 12 होती है। जब दो पक्षों में संक्रांति नहीं होती है, तब यह स्थिति बनती है।
यह स्थिति 32 माह 16 दिन में एक बार यानी हर तीसरे वर्ष बनती है। अधिक मास का पौराणिक महत्व क्या है।
पुराणों के अनुसार दैत्यराज हिरणकश्यप ने ब्रम्हाजी से वर मांगा था कि उसे अमर कर दें। भगवान ब्रह्मा ने कहा कि यह वरदान छोड़कर कोई अन्य वरदान मांग लो।
तब हिरण कश्यप ने कहा कि उसे संसार में कोई नर या नारी देवता या असुर या जानवर नहीं मार सके। वह वर्ष के 12 महीनों में उसकी मृत्यु ना हो।
ऐसा वरदान पाकर वह अत्यधिक अत्याचार करने लगा समय आने पर इसी मलमास माह में भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार, जो आधा पुरुष आधा सिंह जानवर का था और संध्या के समय जब न दिन था ना रात और मलमास जो इस 12 मास के अतिरिक्त मास था। इसी में राक्षस का वध किया। इसलिए मल मास मास का पौराणिक महत्व भी है ।
राजगीर में ही क्यों लगता है मलमास मेलाः भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र राजा बसु ने इस पवित्र स्थल पर मनुष्य के कल्याण हेतु महायज्ञ कराया था। उस महायज्ञ के दौरान 33 कोटि देवी देवता को आमंत्रण दिया था।
महायज्ञ माघ माह में हुआ था। इसी कारण देवी देवताओं को ठंड से बचाने के लिए गर्म कुंडों की रचना भगवान ब्रह्मा ने की थी ।
पुरुषोत्तम क्यों कहलाता है मलमासः 12 मास के प्रत्येक मास के अलग-अलग देवता हर मास के स्वामी होते हैं। किंतु मलमास मास के स्वामी कोई देवता बनने को तैयार नहीं हुए तो मलमास नाराज होकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे अपनी शिकायत की कि मुझे अत्यधिक मास क्यों बनाया गया।
इस अवधि में कोई शादी विवाह मुंडन गृह प्रवेश जनेऊ कोई शुभ कर्म नहीं होता है। सब मुझे अपवित्र समझते है।
तब भगवान विष्णु ने कहा आज से आप पुरषोत्तम मास के रूप में जाने जायेंगे और इस माह में जो पूजा पाठ यज्ञ हवन करेंगे, उन्हें दूना लाभ की प्राप्ति होगी।
ऐतरेय ब्राह्मण अग्नि पुराण में इस माह के अपवित्रता की चर्चा आई है। भाई वायु पुराण एवं अग्नि पुराण के अनुसार यहां सभी देवता आकर एक मास के लिए राजगीर में निवास करते हैं।
अब इन धार्मिक कथाओं से इतर मलमास मेला आधुनिक भारत का संगम के पर्याय के रूप में कैसे विकसित हो चुका है। कैसे धर्म और आस्था के सैलाव ने राजा रंक जात पात का भेद भुला दिया है।
इसकी एक बानगी सड़क किनारे सोते हुए व्यक्तियों को देखकर मिल जाएगी। जिसमें सभी व्यक्ति इस आस में जहां जगह मिला, वही सड़क किनारे सोए हुए मिल जाएंगे। उनकी बस एक ही ईच्छा है ब्रह्म मुहूर्त में जाकर ब्रह्म कुंड में स्नान करेंगे। उसके बाद पूजा पाठ करेंगे।
रात्रि में मेले क्षेत्र में मनोरंजन के लिए मौत का कुआं सर्कस इत्यादि देखकर सहसा या अनुमान लगाया जा सकता है। पेट की भूख को और अपने परिवार के पालन पोषण के लिए कैसे प्रतिदिन अपनी जान जोखिम में डालकर मौत के कुएं के पानी से अपने परिवार का लालन-पालन कर रहे हैं। जरा सी एक चूक उनके जिंदगी पर भारी पड़ सकती है, लेकिन साहब यह तो जिंदगी है चलती जाएगी। चाहे कोई रहे या ना रहे क्या फर्क पड़ता है।