रांची। झारखंड के राज्यपाल द्वारा सीएनटी-एसपीटी में संशोधन से जुड़े विधेयक झारखंड सरकार को वापस करने के बाद राजनीतिक गतिविधियां बढ़ गयी हैं। हालांकि अभी तक न तो राजभवन से या सरकार की ओर से इस खबर की आधिकारिक पुष्टि नहीं की गयी है।
खबर यह है कि राज्यपाल ने एक माह पहले ही यानी 24 मई को ही सीएनटी-एसपीटी एक्ट संशोधन बिल रघुबर सरकार को वापस कर दिया था, लेकिन इसकी जानकारी किसी मंत्री तक को नहीं थी। कई मंत्रियों ने स्वीकार किया है कि उन्हें अखबारों से ही विधेयक वापस करने की जानकारी मिली है। ये मंत्री प्रशिक्षण के लिए अभी अहमदाबाद में जुटे हुए हैं। दूसरी ओर झामुमो समेत विपक्ष का इस मुद्दे पर काफी आक्रामक तेवर देखने को मिल रहा है, जबकि भाजपा के नेता चुपी साधे हुए हैं और इसे सरकार का मामला बताते हुए पल्ला झाड़ रहे हैं।
चर्चा है कि सीएनटी-एसपीटी एक्ट संशोधन बिल वापस किये जाने को लेकर भारी गोपनीयता बरती जा रही है। राजभवन ने विधेयक 24 मई को ही 192 आपत्तियों के साथ मुख्य सचिव को भेजा था। इसके बाद राज्य मंत्रिपरिषद की चार बैठकें हुईं। खबर है कि किसी भी बैठक में इस पर कोई चर्चा नहीं हुई।
विधानसभा में एक्ट में संशोधन संबंधी विधेयक पेश किये जाने से पूर्व इसे कैबिनेट की बैठक से पास कराया गया था। पर इसके वापस होने की जानकारी किसी भी मंत्री को नहीं है। बात करने पर मंत्रियों ने बताया कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है कि बिल को राजभवन ने लौटा दिया है।
नगर विकास मंत्री सीपी सिंह और श्रम मंत्री राज पलिवार ने बताया कि विधेयक की वापसी के बाबत उन्हें कोई जानकारी नहीं है। यही नहीं भू-राजस्व मंत्री को भी इसकी जानकारी नहीं है कि विधेयक पुनर्विचार के लिए राजभवन से वापस आ गया है।
सीएनटी-एसपीटी एक्ट संशोधन बिल पुनर्विचार के लिए वापस हो चुका है। अब सरकार आगे क्या करेगी, इसे लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। सरकार से जुड़े कोई भी अभी इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं दिख रहा है।
वहीं भाजपा संगठन से जुड़े लोग यह कह कर पल्ला झाड़ ले रहे हैं कि यह सरकार का मामला है।
कब क्या हुआ
23 नवंबर : विधानसभा में भारी हंगामे, तोड़फोड़ के बीच सीएनटी-एसपीटी एक्ट संशोधन विधेयक पारित
18 दिसंबरः विधेयक को मंजूरी के लिए राज्यपाल के पास भेजा गया
24 मईः राज्यपाल ने विधेयक को लौटाया
05 माहः तक राजभवन में रहा संशोधन संबंधी विधेयक
हो रहा था विरोध प्रदर्शन
विभिन्न राजनीतिक दलों, आदिवासी व सामाजिक संगठन विधेयक के खिलाफ राज्य में आंदोलन चला रहे थे। राज्यपाल को कुल 192 आपत्ति से संबंधित ज्ञापन सौंपे गये थे। सरकार की ओर से लगातार बताया जा रहा था कि विधेयक आदिवासियों के हित में है। पर विपक्ष व विभिन्न संगठनों के लोग लगातार इसका विरोध कर रहे थे।