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गजब! मुखिया का प्रवक्ता बना बीडीओ, खेत खाए गदहा मार खाए जो रहा  

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मीडिया में खबरें आई नहीं कि बीडीओ साहब के पसीने छूटने लगे और खुलकर बीडीओ साहब मुखिया के बचाव में उतर गए। आखिर बीडीओ साहब को मुखिया से इतनी सहानुभूति क्यों……………?

जमशेदपुर (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क)। झारखंड में जीरो टॉलरेंस का ढिंढोरा पीटने वाले सीएम रघुवर दास जरा अपने गृह जिले के आस पास की भी सुधि लें।

यहाँ हिंदुस्तान के इतिहास में पहली बार किसी सरकारी पदाधिकारी (बीडीओ) को खुलकर एक जनप्रतिनिधि (मुखिया) के बचाव में छुट्टी के दिन रविवार को प्रेस कांफ्रेस करते देखा गया।

rajnagar bdo mukhiya cruption ali 1वह भी भ्रष्टाचार के मामले में और पत्रकार वार्ता कर पूरे मामले में एक ऐसे व्यक्ति को घसीटा जा रहा है, जिसका इस पूरे मामले से कोई लेना-देना नहीं।

यहां तो वही कहावत चरितार्थ होती है कि खेत खाए गदहा मार खाए जो रहा…..। सरायकेला खरसावां जिला के राजनगर प्रखंड का मामला है।

यहां आरटीआई कार्यकर्ता दिनेश महतो ने 14वें वित्त आयोग के तहत गोविंदपुर पंचायत में वित्तीय वर्ष 2018- 19 के तहत कंप्लीट किए गए योजनाओं की जांच लोकायुक्त से कराए जाने को लेकर चिट्ठी क्या लिखी, पूरे प्रखंड में हड़कंप मच गया।

वैसे भी दिनेश महतो ने लोकायुक्त से जांच कराए जाने की मांग की है। किसी पर आरोप नहीं लगाया है। हाथ कंगन को आरसी क्या। अब इस मामले में बेवजह एक निरीह पत्रकार को फंसा कर पूरे मामले को नया तूल देने का काम बीडीओ द्वारा किया जा रहा है।

पहली बार देखा गया है कि जनप्रतिनिधि के मामले में बीडीओ ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जनप्रतिनिधि को पाक- साफ बताया। वैसे हम पूरे मामले पर पैनी निगाह रख रहे हैं और ख्याति प्राप्त अखबार द्वारा बगैर पुख्ता प्रमाण के किसी के चरित्र का हनन किए जाने का मामला बेहद भी काफी संवेदनशील है।

मामला तब और भी गम्भीर है। पत्रकार वीरेंद्र मंडल का इस पूरे प्रकरण से कोई लेना देना नहीं। यह पूरा प्रकरण मुखिया और आरटीआई एक्ट्विस्ट द्वारा लोकायुक्त से की गई शिकायत से जुड़ा है। इस संबंध में बीडीओ प्रेमचंद कुमार सिन्हा से संपर्क करने के काफी प्रयास किए गए, लेकिन वे अनुपलब्ध रहे।

फिर भी बीडीओ सरीखे एक जिम्मेवार प्रशासनिक अधिकारी का अदद मुखिया के पक्ष में बाजाप्ता प्रेस कांफ्रेस आयोजित कर मीडिया के सामने प्रवक्ता के रुप में सामने आना कहीं न कहीं मामले को गंभीर बना डालती है। क्या मान लिया जाए कि बीडीओ मुखिया की ईमानदारी की गारंटी लेते हैं?

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