“ऐसा लग रहा है कि महाविनाश कहीं आस पास ही है और धीरे धीरे अपना पैर पसार रहा है। पृथ्वी जब से बनी है, अपने को संतुलित करने के लिए पांच महाविनाश कर चुकी है और हम छठे महाविनाश की तरफ बढ़ रहे हैं…”
✍ नीतीश प्रियदर्शी अपने फेसबुक वाल पर
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। क्या महाविनाश का आगाज हो चूका है ? प्रकृति शायद सजा देने का मिज़ाज़ बना चुकी है या फिर अपने को संतुलित कर रही है। ऐसा लग रहा है समय ठहर गया है। लोगों को और सचेत रहने की जरुरत है।
आज पुरे भारत में सन्नाटा है। विश्व के कई देशों में मौत का सन्नाटा है। हम लोग इस महामारी पर चुटकुले शेयर कर रहे हैं और इसका मज़ाक उड़ा रहे हैं, लेकिन ये नहीं देख रहे हैं।
ये महामारी कब तक रहेगा, ये पता नहीं। बढ़ता तापमान भी इसको रोक नहीं पा रहा है। नहीं तो इंडोनेशिया और मलेशिया में मृत्य नहीं होती। जहाँ का तापमान ३० से ३५ डिग्री के ऊपर है।
वैसे देखा जाए तो छट्ठा महाविनाश आने में काफी वक़्त है लेकिन हमलोगों के करतूत की वजह से ये तेज़ी से हमारी तरफ बढ़ रहा है। कही बाढ़, कहीं भूकंप , कही सूखा , जंगलों में आग तो कहीं ज्वालामुखी विस्फोट और अब ये महामारी।
बचपन से लेके अभी तक कर्फ्यू देखे थे लेकिन कारण कुछ और होता था लेकिन आज का कर्फ्यू बहुत कुछ सोचने पर विवश कर दिया है। स्कूल और कॉलेज के दिनों में अंग्रेजी फिल्मो में काल्पनिक महामारी की वजह से ऐसे दृश्ये देखने को मिलता था और रोमांचित भी करता था।
लेकिन ये कभी नहीं सोचे थे की हकीकत में आज ऐसा देखने को मिलेगा। अब तो भय समा रहा है। प्रकृति हमलोगों को कई बार चेतावनी दे रही है और अब लगता है की जैसे वो अब सजा देने के मिज़ाज़ में आ चुकी है।
वैसे इस कर्फ्यू और सन्नाटे से पृथ्वी हमलोग के द्वारा दिए गए जख्म को ठीक कर रही होगी। जहरीले गैसों को उत्सर्जन कम हुआ होगा, तापमान में गिरवाट हुआ होगा, ध्वनि प्रदुषण अपने निम्न स्तर पर है और प्रदुषण में काफी कमी आई होगी।
आज सुबह बहुत दिनों के बाद पक्षियों की चहचहाहट सुनाई दी। आज भारत के कई शहरों का एयर क्वालिटी इंडेक्स का मान काफी कम हो गया होगा। रांची का एयर क्वालिटी इंडेक्स ६०-७० के करीब है, जो रांची वासियों के लिए अच्छी खबर है।
हमलोग विज्ञानं और चिकित्सा विज्ञानं पर बहुत विश्वास करते हैं की सोचते हैं की इसमें बहुत आगे हैं लेकिन ये सूक्ष्म वायरस ने ये बता दिया कि अभी भी हम चिकित्सा विज्ञानं में बहुत ही पिछड़े हुए हैं।
इसका सबसे बड़ा कारण है की हम प्रकृति और पृथ्वी का अत्यधिक शोषण कर रहे हैं और इनसे दूर होते जा रहे हैं। समय हाथ से फिसलता जा रहा है। वक़्त आ गया है कि अब संभल जाये नहीं तो पृथ्वी हमे अब यहाँ से अंतिम विदाई करेगी।