“जिस झारखंड की धरती पर शिबू सोरेन ने राजनीतिक पहचान कायम की। उसी राजनीतिक विरासत में हेमंत सोरेन 44 साल की उम्र में दूसरी बार सीएम का पद संभालने जा रहे हैं। वैसे हेमंत इससे पहले गठबंधन और बंधन भंग के बीच 2013 में झारखंड के सबसे कम उम्र के सीएम रह चुके हैं…….”
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क डेस्क। झारखंड में दूसरी बार सीएम पद की शपथ लेने जा रहें झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरोन की शपथ ग्रहण की तैयारियाँ जोरों पर है।
उनकी ताजपोशी 29 दिसंबर को रांची के ऐतिहासिक मोरहाबादी मैदान में होनी तय है। हेमंत सोरोन के नेतृत्व में झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस तथा राजद की सरकार बनने जा रही है।
हेमंत सोरेन के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने को लेकर प्रधानमंत्री सहित कई दिग्गज नेताओं को न्यौता भेजा गया है। पीएम अपने व्यस्त कार्यक्रम की वजह से इस शपथ समारोह में शामिल नहीं हो पाएँगे। वही प्रियंका गांधी और राहुल गांधी के भी शामिल होने के कयास लगाएँ जा रहे हैं।
वही पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी तथा महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे तथा राकांपा के प्रमुख शरद पवार को भी आमंत्रित किया गया है। वही कांग्रेस शासित राज्यों के सीएम भी शपथ ग्रहण में शामिल हो सकते हैं।
10 अगस्त, 1975 को रामगढ जिले के सूदूर नेमरा गाँव में जन्मे हेमंत सोरेन को राजनीति विरासत में मिली है। उन्होंने पटना से 12 वीं तक की पढ़ाई पूरी की है।
उनकी मां की इच्छा थी कि उनका बेटा इंजीनियर बने। शायद उनकी भी यहीं इच्छा थी। उन्होंने बाकायदा बीआईटी मेसरा में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में दाखिला लिया, मगर पढ़ाई पूरी नहीं कर पाएं। शायद भाग्य में राजनीति लिखी थी।
उनकी भाभी सीता सोरेन भी विधायक बनी। बहन भी राजनीति में सक्रिय रही हैं। उनके भाई बसंत सोरेन भी पार्टी के युवा मोर्चा के अध्यक्ष भी रहे।
हेमंत सोरेन ने 2003 में छात्र राजनीति से राजनीति में कदम रखा। 2009 में राज्यसभा के लिए चुने गए। फिर 2009 में विधानसभा चुनाव में दुमका से चुनाव लड़े और जीत भी हासिल किया।
वर्ष 2010 में भाजपा के अर्जुन मुंडा सरकार के समर्थन के बदले उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाया गया। बाद में राजनीतिक खेल के कारण झामुमो ने समर्थन वापस लेकर अर्जुन मुंडा सरकार को गिरा दिया। फिर जुलाई 2010 में उन्हें झारखंड के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बनने का गौरव मिला।
बहरहाल, झारखंड की राजनीति में भले ही हेमंत सोरेन को राजनीति विरासत में मिली हो मगर झामुमो को आधुनिक पार्टी बनाने का श्रेय जाता है। सोशल मीडिया पर पार्टी को सक्रिय किया।
उन्होंने उस धारणा को नकारा कि पार्टी मीडिया से दूरी बनाकर रखती है। इस बार उन्होंने कई चुनावी रैलियां की और सूचना माध्यमों से बेहतर संवाद भी स्थापित करने में सफल रहे। इससे पार्टी को नई मजबूती भी मिली। फिर भाजपा के खिलाफ उपजे जनाक्रोश को भुनाने में भी सफल रहे।
यहां तक कि हेमंत सोरेन ने चुनाव के पहले राजद सुप्रीमों लालू प्रसाद यादव तथा कांग्रेस के राहुल गांधी को भी अपने साथ गठबंधन में लाने में कामयाब रहे। चुनाव में उनके सामने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की चुनौती थी।
बावजूद हेमंत सोरेन ने स्थानीय मुद्दों को लेकर जनता के सामने पहुँचे और जनता का विश्वास हासिल करने में कामयाब रहे तथा वह कर दिखाया, जो उत्पन्न चुनौतियों के विपरित राज्य की राजनीति में ऐतिहासिक लकीर मानी जाएगी।