” विगत एक दशक से इस गांव के दर्जनों लोग जल समाधि ले चुके हैं । यहां नाव भी नहीं है। बावजूद अब तक सरकार या अधिकारियों के द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। प्रत्येक वर्ष गोसाई बिगहा के किसी न किसी की मौत नदी में डूबने से हो ही जाता है। गोसाई बिगहा गाँव को जोड़ने के लिए पौने दो करोड़ की लागत से पुल का निर्माण होना था लेकिन नहीं हो सका। “
हरनौत (रवि कुमार)। बिहार के सीएम नीतिश कुमार के गृह जिला नालंदा में आजादी के सात दशक बाद भी गाँव में विकास के नाम पर फरेब देखने को मिल ही जाता है। आज भी आदिम दमनीयता का गाँव नजर आ ही जाता है। एक ऐसा गांव जहाँ जुगाड से जिंदगी चल रही है। आवागमन की सुविधा नहीं होने से लोग जुगाड नाव का सहारा लेने को विवश हैं। नदी में ड्राम के सहारे आवागमन को विवश है ग्रामीण, जो कभी भी उनकी जिंदगी को लील सकता है।
यह गाँव है राज्य के मुख्यमंत्री के गृह प्रखंड हरनौत का गोसाइ बिगहा। यहाँ आज तक सड़क नहीं पहुँची। गाँव पूरी तरह मूलभूत सुविधाओं से कोसो दूर है। पिछले एक दशक में जुगाड टेक्नालॉजी के सहारे आवागमन करने के दौरान कई लोगों की मौत पानी में डूबने से हो चुकी है। गोसाई बिगहा गाँव को जोड़ने के लिए पौने दो करोड़ की लागत से पुल का निर्माण होना था
आजादी के कई दशक बीत जाने के बावजूद आज भी प्रखण्ड के कई गांव सड़क से वंचित है। प्रखण्ड के चेरो पंचायत के गोसाई बिगहा ऐसे ही एक अभागे गांव की श्रेणी में आता है। इस गांव की आबादी लगभग तीन हजार है। यहां दलित, महादलित की भी अच्छी खासी संख्या है, बावजूद सड़क के नाम पर सिर्फ कच्ची अलंग है। जिसे गांव वाले रास्ता कहते हैं।
बस पकड़ने के लिए गोसाई बिगहा गांव से हरनौत बाजार जाने के लिये करीब तीन किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। तब जाकर चेरो के पास एन एच 31 से सवारी गाड़ी ग्रामीण पकडते है। जबकि इस गांव से खरुआरा तक सीधे रोड बन जाये तो आधा किलोमीटर दूरी ही रह जायेगा। बीच में मुहाने नदी पड़ता है, जिसमें पुल बनाने की आवश्यकता है।
विगत एक दशक से इस गांव के दर्जनों लोग जल समाधि ले चुके हैं । यहां नाव भी नहीं है। बावजूद अब तक सरकार या अधिकारियों के द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। प्रत्येक वर्ष गोसाई बिगहा के किसी न किसी की मौत नदी में डूबने से हो ही जाता है।
ग्रामीण रविन्द्र सिंह ने बताया कि नदी पर पुल बनाने में जमीन की समस्या उत्पन्न हो रही है। जमीन खरुआरा का है, वे लोग जमीन देना नहीं चाहते हैं। हालांकि जमीन खरीदने के लिए गांव के लोग पांच लाख रु आपस में ही चंदा कर जमा कर चुके हैं। पुल नहीं तो वोट नहीं को लेकर एक बार मतदान का बहिष्कार भी किया गया है।
मुनकी देवी ने बताया कि गांव के लोग पानी में डूबने की घटना को अपना भाग्य मानकर चलते है। व्यवस्था नहीं रहने के कारण ऐसी घटना तो होना ही है। पुल को लेकर चुनाव के दौरान जन प्रतिनिधियों को कई बार कहा जाता , बावजूद अभी तक पुल नहीं बना है।
स्थानीय विधायक हरिनारायण सिंह ने कहा कि गोसाई बिगहा गांव के लिए पौने दो करोड़ की लागत से सड़क व पुल निर्माण का टेंडर डेढ़ वर्ष पूर्व ही हो गया है। लेकिन स्थानीय जमीन की कमी के कारण कार्य लंबित है।
आखिर कब तक ग्रामीणों के साथ विकास के नाम पर फरेब होता रहेगा और ग्रामीण कब तक जनप्रतिनिधियों और सरकारी अधिकारियों के उपेक्षा के अंधकूप में गुम रहेंगे, आखिर कब गोसाईविगहा में विकास की रोशनी बिखरेगी एक यक्ष सवाल लोगों के जेहन में है?