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      डॉलर के मुकाबले आखिर क्यों गिरता जा रहा है भारतीय रूपया !

      नई दिल्ली (इंडिया न्यूज रिपोर्टर)। भारतीय रूपया अमेरिका के डॉलर के मुकाबले बहुत ही तेजी से रसातल की ओर अग्रसर दिख रहा है। इस साल भारतीय रूपए को अगर आप देखें तो यह अमेरिकन डॉलर के मुकाबले लगभग साढ़े पांच रूपए तक कमजोर हुआ है।

      01 जनवरी को एक डॉलर का भाव 74.50 रूपए था, इसके बाद 15 जनवरी को यह भाव 74.15 रूपए हुआ। 15 फरवरी को 75.68 तो 28 फरवरी को 75.20 तक जा पहुंचा।

      08 मार्च को यह 77.06 था तो 28 अप्रैल को 76.76 पर जा पहुंचा। जून तक कुछ स्थिर रहने के बाद 13 जून को 78.15 पर जा पहुंचा। 18 जुलाई को 80.01 अर्थात अब तक के सबसे निचले स्तर पर यह जा पहुंचा।

      इस साल 01 जनवरी से 19 जुलाई के बीच भारतीय रूपया 5.509 रूपए तक कमजोर हुआ है। 19 जुलाई को यह अपने न्यूनतम स्तर पर माना जा सकता है। 31 दिसंबर 2014 की अगर बात की जाए तो एक डॉलर उस समय 63.33 रूपए के बराबर हुआ करता था।

      संभवतः यह पहला ही मौका होगा जब अमेरिकी डॉलर मजबूत है और कच्चे तेल की कीमतों में भी इजाफा हो रहा है, पर डालर के मुकाबले रूपया अब तक के अपने सबसे न्यूनतम स्तर पर जा पहुंचा है। वैश्विक स्तर पर क्रूड वायदा 0.35 प्रतिशत गिरकर 105.90 डॉलर प्रति बैरल पर जा पहुंचा।

      इन आंकड़ों को अगर देखा जाए तो आने वाले समय के संकेत भी बहुत अच्छे नहीं मिलते दिख रहे हैं। आखिर क्या वजह है कि साल 2022 में डॉलर के मुकाबले रूपया लगातार ही गिरता जा रहा है।

      इस बारे में आर्थिक विश्लेषक लगातार नजर बनाए हुए हैं, पर कोई भी इसकी ठोस वजह बताने में सक्षम नजर नहीं आ रहा है।

      कोविड काल के पहले से आज तक के बाजार पर अगर नजर डाली जाए तो हमारी अपनी नितांत निजि राय में विदेशी निवेशकों का मोह अब देश के बाजार से भंग होता नजर आ रहा है।

      डॉलर के मुकाबले भारतीय रूपए का कमजोर होने का असली कारण विदेशी निवेशकों का भारत के बाजार से अपना पैसा निकालना ही माना जा सकता है।

      जैसी खबरें प्रकाश में आ रही हैं उसके अनुसार विदेशी निवेशक तेजी से भारत के बाजार से अपना पैसा निकाल रहे हैं। संस्थागत विदेशी निवेशक अब तक लगभग 30 अरब डालर से ज्यादा की रकम भारत के बाजार से निकाल चुके हैं।

      इसके अलावा पेट्रोलियम और कमोडिटीज की कमीतों में उछाल की वजह भी एक मानी जा सकती है। इसकी वजह से आरंभ हुए घाटे से भी चिंता बढ़ती जा रही है। संभवतः यही वजह है कि भारतीय रूपए की कीमत अमेरिकन डालर के मुकाबले कम होती जा रही है।

      भारत सरकार को चाहिए कि वह विदेशी निवेशकों के द्वारा भारतीय बाजार से पिछले 02 सालों में कितना पैसा निकाला इसका आंकलन जरूर करे। साथ ही यह भी पता करने की कोशिश करे कि आखिर क्या वजह है कि विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से अपना निवेश किया धन वापस लेते जा रहे हैं।

      विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए नियम कायदों का सरलीकरण, कार्यालयों में व्याप्त आकण्ठ भ्रष्टाचार आदि पर भी विचार करना सरकार के हित में होगा, क्योंकि भारतीय रूपया अगर इसी तरह अमेरिकन डालर के सामने ढलान पर रहा तो आने वाले समय में अनेक परेशानियों से सरकार को दो चार होना पड़ सकता है।

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