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    Saturday, June 22, 2024
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      समझें बिहार में कितना घातक साबित हो रहा है शराबबंदी

      पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार में अप्रैल 2016 में सीएम नीतीश कुमार की सरकार ने शराबबंदी लागू की। इस फैसले का उद्देश्य था राज्य में शराब की खपत को कम करना और समाज में शराब के कारण होने वाली समस्याओं को दूर करना। हालांकि, इस नीति के कई गंभीर दुष्परिणाम भी सामने आए हैं, जिन पर ध्यान देना आवश्यक है।

      अवैध शराब का प्रसारः शराबबंदी के बाद राज्य में अवैध शराब का धंधा तेजी से बढ़ा है। लोग तस्करी के माध्यम से शराब प्राप्त करने लगे हैं, जिससे शराब की गुणवत्ता पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया है। इस अवैध शराब के सेवन से कई लोग गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं और कई मामलों में तो मौतें भी हुई हैं।

      आर्थिक नुकसानः शराब की बिक्री से होने वाली राजस्व की हानि ने राज्य की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाला है।शराबबंदी के कारण राज्य सरकार को करोड़ों रुपये का राजस्व नुकसान हुआ है, जो अन्य विकास कार्यों में निवेश हो सकता था। इसके अतिरिक्त, शराब की दुकानों में काम करने एवं उससे जुड़े अन्य व्यवसाय वाले काफी संख्या में लोग बेरोजगार हो गए हैं।

      भ्रष्टाचार और पुलिस पर प्रभावः शराबबंदी के चलते राज्य में पुलिस और अन्य कानून व्यवस्था अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप बढ़े हैं। अवैध शराब तस्करों से पुलिस-प्रशासन की मिलीभगत के मामले सामने आए हैं, जिससे कानून व्यवस्था की स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। वहीं, पुलिस के समय और संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा अवैध शराब के खिलाफ अभियान में खर्च हो रहा है, जिससे अन्य अपराधों पर निगरानी कम हो गई है।

      सामाजिक और पारिवारिक प्रभावः शराबबंदी का उद्देश्य परिवारों को शराब से होने वाली समस्याओं से बचाना था, लेकिन इसके विपरीत कई मामलों में पारिवारिक तनाव और बढ़ गया है। शराब न मिलने के कारण लोग अन्य नशीले पदार्थों की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जिससे सामाजिक समस्याएं बढ़ रही हैं।

      स्वास्थ्य संबंधी समस्याः अवैध और मिलावटी शराब के सेवन से स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ गई हैं। इसके सेवन से विषाक्तता के मामले बढ़े हैं, जिससे अस्पतालों में मरीजों की संख्या में इजाफा हुआ है। इसके अलावा, नकली शराब की वजह से कई लोगों की जान भी जा चुकी है।

      राजनीतिक और सामाजिक बहसः शराबबंदी ने राज्य में राजनीतिक और सामाजिक बहस को जन्म दिया है। एक ओर जहाँ सरकार इसे एक नैतिक और सामाजिक सुधार के रूप में प्रस्तुत करती है, वहीं दूसरी ओर विपक्ष और समाज के कुछ हिस्से इसे असफल नीति मानते हैं। इस मुद्दे पर जनमत विभाजित है और समय-समय पर इसके विरोध भी होते रहे हैं।

      निष्कर्षः बिहार में शराबबंदी एक महत्वपूर्ण और साहसिक कदम था, लेकिन इसके दुष्परिणाम भी स्पष्ट रूप से सामने आए हैं। नीति को लागू करते समय जो उद्देश्य रखे गए थे, वे पूरी तरह से हासिल नहीं हो पाए हैं और इसके उलटे परिणाम अधिक देखने को मिल रहे हैं।

      ऐसे में, यह आवश्यक है कि नीति की पुनः समीक्षा की जाए और इसे और अधिक प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक संशोधन किए जाएं। सामाजिक जागरूकता और लोगों को शराब के दुष्प्रभावों के प्रति शिक्षित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि कानून लागू करना।

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