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मुजफ्फरपुर की मेयर को लेकर तेजस्वी यादव के सनसनीखेज खुलासे से हड़कंप

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव ने एक बार फिर चुनाव आयोग और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर गंभीर आरोप लगाए हैं।

उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (X) पर सनसनीखेज खुलासा करते हुए दावा किया कि मुजफ्फरपुर की मेयर और बीजेपी की वरिष्ठ नेत्री निर्मला देवी के पास एक ही विधानसभा क्षेत्र में दो अलग-अलग EPIC कार्ड हैं, जिनमें उनकी उम्र भी अलग-अलग दर्ज है।

इतना ही नहीं उनके दो देवरों मनोज कुमार और दिलीप कुमार के पास भी दो-दो EPIC कार्ड होने का दावा किया गया है। तेजस्वी ने इसे चुनाव आयोग की मिलीभगत और मतदाता सूची में धांधली का सबूत बताते हुए बीजेपी पर वोट चोरी का आरोप लगाया है।

तेजस्वी यादव ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में दावा किया कि मुजफ्फरपुर की मेयर निर्मला देवी के पास दो EPIC कार्ड हैं- REM1251917 और GSB1835164। ये दोनों कार्ड एक ही विधानसभा क्षेत्र के दो अलग-अलग बूथों पर दर्ज हैं। हैरानी की बात यह है कि इन दोनों कार्डों में उनकी उम्र भी अलग-अलग बताई गई है।

तेजस्वी ने आरोप लगाया कि विशेष मतदाता गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया के तहत निर्मला देवी ने दो अलग-अलग गणना फॉर्म भरे और दो अलग-अलग हस्ताक्षर किए, जिन्हें चुनाव आयोग ने प्रमाणित किया।

तेजस्वी ने सवाल उठाया कि एक ही विधानसभा में दो अलग-अलग EPIC कार्ड और दो अलग-अलग उम्र के साथ निर्मला देवी के दो वोट कैसे बन गए? उन्होंने इसे चुनाव आयोग की मिलीभगत का परिणाम बताया और कहा कि यह प्रक्रिया पारदर्शिता पर सवाल उठाती है।

तेजस्वी ने अपने खुलासे में आगे बताया कि निर्मला देवी के दो देवर मनोज कुमार और दिलीप कुमार दोनों के पास भी दो-दो EPIC कार्ड हैं। इनके भी एक ही विधानसभा क्षेत्र में दो अलग-अलग बूथों पर दो वोट दर्ज हैं। तेजस्वी ने दावा किया कि इन दोनों ने भी SIR प्रक्रिया के तहत दो-दो अलग-अलग फॉर्म भरे और हस्ताक्षर किए, जिन्हें चुनाव आयोग ने स्वीकार किया।

उन्होंने सवाल उठाया कि जब चुनाव आयोग खुद एक ही विधानसभा में इस तरह की धांधली को बढ़ावा दे रहा है तो SIR प्रक्रिया का क्या मतलब रह जाता है? इसका स्पष्ट अर्थ है कि चुनाव आयोग बीजेपी समर्थकों के लिए एक ही घर में कई फर्जी वोट बनवा रहा है।

तेजस्वी यादव ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि निर्मला देवी मुजफ्फरपुर से बीजेपी की संभावित प्रत्याशी हैं और शायद इसीलिए चुनाव आयोग उनकी मदद के लिए फर्जी वोट बना रहा है।

उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग विपक्ष के वोटों को काटने में युद्ध स्तर पर काम कर रहा है, जबकि बीजेपी समर्थकों के वोट जोड़े जा रहे हैं।

उन्होंने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव का जिक्र करते हुए कहा कि बिहार की जनता 2020 से जानती है कि ये लोग वोट चोर हैं। मात्र 12,756 वोटों के अंतर से धांधली कर इन्होंने हमें 15 सीटों पर जबरन हरवा दिया।

तेजस्वी ने दावा किया कि बीजेपी और उनके सहयोगी सवैधानिक संस्थानों, जैसे चुनाव आयोग का दुरुपयोग करके सत्ता हासिल कर रहे हैं।

तेजस्वी ने अपने बयान में बिहार की जनता को चेतावनी देते हुए कहा कि इस बार जनता बीजेपी और उनके सहयोगियों का ऐसा “इलाज” करेगी कि उनकी आने वाली पीढ़ियां भी याद रखेंगी।

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी तंज कसते हुए कहा कि उनका कोई करिश्मा नहीं है, बल्कि सवैधानिक संस्थानों के दुरुपयोग और वोटों की चोरी के बल पर वे सरकार बना रहे हैं।

हालांकि, तेजस्वी यादव खुद भी हाल ही में दो EPIC नंबरों के विवाद में फंस गए थे। उन्होंने दावा किया था कि उनका नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया है, लेकिन चुनाव आयोग ने इसे खारिज करते हुए कहा कि उनका नाम सूची में मौजूद है और उनका आधिकारिक EPIC नंबर RAB0456228 है।

तेजस्वी द्वारा साझा किया गया दूसरा EPIC नंबर RAB2916120 आयोग के डेटाबेस में नहीं मिला, जिसके बाद बीजेपी और जेडीयू ने उन पर फर्जी दावों का आरोप लगाया। इस मामले में चुनाव आयोग ने जांच शुरू की है, जिससे तेजस्वी की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठ रहे हैं।

तेजस्वी यादव के इस ताजा खुलासे ने बिहार की सियासत में एक नया तूफान खड़ा कर दिया है। बीजेपी और उनके सहयोगी इस मामले को राजद की सियासी चाल बता रहे हैं, जबकि राजद समर्थक इसे चुनाव आयोग की नाकामी और बीजेपी की साजिश का सबूत मान रहे हैं। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले यह विवाद और गर्म होने की संभावना है।

चुनाव आयोग ने अभी तक इस मामले पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है, लेकिन तेजस्वी के आरोपों की जांच शुरू होने की संभावना है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह मामला निर्मला देवी और उनके परिवार के खिलाफ कार्रवाई की ओर बढ़ता है या फिर यह एक और सियासी ड्रामा साबित होता है।

बहरहाल बिहार की जनता के बीच इस मुद्दे ने चर्चा को और तेज कर दिया है। सवाल यह है कि क्या यह विवाद बिहार के मतदाताओं के मन में चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करेगा या फिर यह सियासी शोर में दबकर रह जाएगा?

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