“पुलिस अथॉरिटी ने कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन किया है और ड्राइवर को अवैध तरीके से डिटेन कर 35 दिन तक पुलिस कस्टडी में रखा गया। बिना एफआईआर और कानूनी प्रक्रिया के ऐसा किया गया। इस तरह देखा जाए तो अथॉरिटी ने संविधान के अनुच्छेद-22 यानी जीवन और लिबर्टी के अधिकार का उल्लंघन किया है…
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। बिहार में लगता है कि पूरी तरह से पुलिस राज है। यह तल्ख टिप्पणी देश के सर्वोच्च न्यायालय ने की है।
आज एक ट्रक ड्राइवर को अवैध तरीके से 35 दिनों तक पुलिस कस्टडी में रखने के मामले में सरकार को मुआवजा राशि का भुगतान करने का आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि जहां किसी गरीब की लिबर्टी के उल्लंघन के मामले में मुआवजे का सवाल है तो वह अमीर व रसूखदार शख्स के बराबर होगा।
बिहार सरकार की ओर से पटना हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। पटना हाई कोर्ट ने अवैध तरीके से पुलिस द्वारा ड्राइवर को डिटेन कर 35 दिनों तक कस्टडी में रखने के मामले में बिहार सरकार को निर्देश दिया था कि वह ड्राइवर को पांच लाख रुपये मुआवजे राशि का भुगतान करे।
बिहार सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपील में कहा गया कि राज्य सरकार ने जिम्मेदारी के साथ इस मामले को डील किया और जिम्मेदार एसएचओ को सस्पेंड किया गया है और अनुशासनात्मक कार्रवाई चल रही है। लेकिन साथ ही दलील दी कि ड्राइवर के मामले में मुआवजा राशि पांच लाख रुपये ज्यादा है।
जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुआई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि राज्य सरकार को इस मामले में अपील में नहीं आना चाहिए था। आपके आधार सिर्फ ये हैं कि ड्राइवर की कस्टडी के मामले में 5 लाख रुपये का मुआवजा ज्यादा है?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी शख्स की लिबर्टी को छीने जाने के मामले में आप इस तरह से डील करेंगे कि अगर वह शख्स अमीर और रसूखदार होता तो ज्यादा मुआवजा बनता?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जहां तक किसी के लिबर्टी छीने जाने पर मुआवजे का सवाल है तो अगर कोई शख्स दीन किस्म (आर्थिक तौर पर कमजोर) का है तो भी वह अमीर और रसूखदार शख्स के बराबर है और ऐसे में हाई कोर्ट द्वारा पांच लाख रुपये मुआजवा राशि भुगतान का आदेश सही है।
बेंच ने कहा कि आपकी (राज्य सरकार) की दलील है कि पुलिस ने उसे छोड़ दिया था, लेकिन वह अपनी मर्जी से थाने में था और अपनी मर्जी से अपनी लिबर्टी थाने में एंजॉय कर रहा था? आप सोच रहे हैं कि आपकी इस दलील पर कोर्ट विश्वास करे। आप देखिए आपके डीआईजी ने क्या कहा है।
डीआईजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एफआईआर दर्ज नहीं हुई थी। समय पर बयान नहीं हुआ और बिना कारण के वाहन और उसके ड्राइवर को अवैध तरीके से डिटेन किया गया।
इसके बाद जस्टिस चंद्रचूड़ ने तल्ख टिप्पणी की कि लगता है कि बिहार में पुलिस राज है। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार की ओर से दाखिल अर्जी खारिज कर दी।
दरअसल, बिहार के परसा थाने की पुलिस ने मिल्क टैंकर और उसके ड्राइवर को डिटेन किया था। पुलिस का कहना था कि एक पैदल यात्री के एक्सिडेंट का मामला था। वह घायल हो गया था। इसी सिलसिले में टैंकर और ड्राइवर को डिटेन किया गया था। लेकिन बाद में छोड़ दिया गया था और वह मर्जी से वहां था। वहीं वाहन मालिक ने हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा था कि उसके वाहन और ड्राइवर जितेंद्र कुमार को पुलिस ने अवैध तरीके से डिटेन किया और 35 दिन कस्टडी में रखा था।
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