रांची में दाखिल खारिज घोटाला: भ्रष्टाचार की परतें उजागर, RTI ने खोली पोल

रांची (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क)। झारखंड की राजधानी रांची के कांके अंचल में भूमि दाखिल खारिज को लेकर एक बड़ा भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है, जो प्रशासनिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
पीड़ित पक्ष को बीते जून,2025 में पता चला कि वर्ष 2022 में राज शेखर नामक व्यक्ति ने खाता संख्या-17, आरएस प्लॉट नंबर-1335 की 25 डिसमिल भूमि के 12 डिसमिल हिस्से पर दाखिल-खारिज करवाया और अपने नाम पर रसीद कटवानी शुरू कर दी। लेकिन इस प्रक्रिया में कई संदिग्ध तथ्य उभरकर सामने आए हैं, जो जाली दस्तावेजों, प्रशासनिक लापरवाही या फिर रिश्वतखोरी की ओर इशारा करते हैं। यह मामला न केवल भूमि मालिकों के अधिकारों पर हमला है, बल्कि पूरे सिस्टम की साख को चुनौती दे रहा है।
कहानी की शुरुआत वर्ष 2010 से होती है, जब इस प्लॉट का कुल रकबा 25 डिसमिल तीन व्यक्तियों आशा कुमारी (5 डिसमिल), सियाशरण प्रसाद (8 डिसमिल) और बालेश्वर प्रसाद (12 डिसमिल) के नाम पर विधिवत रजिस्टर्ड हो गया था। इन तीनों के नाम से उसी वर्ष जमाबंदी कायम हुई और तब से लेकर आज तक लगातार रसीदें कट रही हैं। इन मालिकों ने भूमि पर निर्विवाद कब्जा बनाए रखा है, जो उनके रजिस्ट्री दस्तावेजों, दाखिल-खारिज रिकॉर्ड और रसीदों से स्पष्ट रूप से प्रमाणित होता है।
फिर सवाल यह उठता है कि राज शेखर के पक्ष में दाखिल-खारिज कैसे संभव हो सका? झारखंड भू-राजस्व नियमावली स्पष्ट रूप से कहती है कि बिना वैध रजिस्ट्री, बिक्री पत्र या सक्षम प्राधिकारी (जैसे अंचल अधिकारी) की अनुमति के दाखिल-खारिज नहीं किया जा सकता।
इसके बावजूद कांके अंचल कार्यालय ने इस प्रक्रिया को मंजूरी दी। राज शेखर का इस भूमि पर कभी भौतिक कब्जा नहीं रहा और न ही उन्होंने कभी सार्वजनिक रूप से दावा किया। डीसीएलआर कोर्ट से नोटिस जारी होने के बाद तीन सुनवाई तारीखों पर भी वे अपना पक्ष नहीं रख सका है, जिससे मामला और रहस्यमय हो गया है।
इस घोटाले की गहराई तक पहुंचने के लिए सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम-2005 के तहत कांके अंचल कार्यालय से महत्वपूर्ण जानकारी मांगी थी। इसमें राज शेखर के दाखिल-खारिज के आधार दस्तावेज (जैसे रजिस्ट्री, बिक्री पत्र या अन्य सबूत), स्वीकृति आदेश और प्रक्रिया को मंजूरी देने वाले अधिकारी का नाम शामिल था। लेकिन आरटीआई की धारा 7(1) के अनुसार निर्धारित 30 दिनों की समयसीमा बीत जाने के बावजूद कोई जवाब नहीं मिला। यह आरटीआई अधिनियम का सीधा उल्लंघन है और प्रशासन की पारदर्शिता पर सवाल उठाता है।
इस देरी के खिलाफ प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील दाखिल की गई है। साथ ही मामले की गहन जांच के लिए जिला जन सूचना अधिकारी रांची को एक नया आरटीआई आवेदन भेजा गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि कांके अंचल का यह कारनामा केवल संयोग नहीं हो सकता है। इसके पीछे बड़े स्तर पर अनियमितता छिपी हो सकती है। क्या जाली दस्तावेज प्रस्तुत किए गए? क्या अधिकारियों ने रिकॉर्ड में छेड़छाड़ की? या फिर रिश्वत का खेल चला? ये सवाल अब जनता के मन में घूम रहे हैं।
भू-राजस्व विशेषज्ञों के अनुसार बिना वैध दस्तावेजों के किया गया दाखिल-खारिज पूरी तरह अवैध है। इसे तत्काल रद्द किया जाना चाहिए और जिम्मेदार अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) 2023 की धारा 316(2) (धोखाधड़ी), धारा 336 (दस्तावेजों की जालसाजी) और धारा 337 (जालसाजी द्वारा धोखाधड़ी) के तहत राज शेखर समेत कांके अंचल कार्यालय के संलिप्त अधिकारी-कर्मियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जा सकता है।
एक वरिष्ठ भू-राजस्व विशेषज्ञ (वरीय प्रशासनिक अधिकारी) ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ऐसे मामलों में अक्सर छोटे स्तर के कर्मचारी से लेकर उच्चाधिकारी तक की मिलीभगत होती है। भूमि घोटाले झारखंड में एक पुरानी समस्या है, लेकिन आरटीआई जैसे उपकरणों से अब ये उजागर हो रहे हैं। प्रशासन को इस पर तुरंत एक्शन लेना चाहिए, वरना जनता का विश्वास टूट जाएगा।
क्योंकि यह मामला केवल एक प्लॉट तक सीमित नहीं लगता। यह पूरे कांके अंचल में दाखिल-खारिज प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है। इसे लेकर स्थानीय निवासियों में आक्रोश है और वे उच्च स्तरीय जांच की मांग कर रहे हैं। एक्सपर्ट मीडिया न्यूज इस मामले पर नजर रखे हुए है और आगे की अपडेट्स जल्द लाएगा।
यदि आपके पास इस मामले से जुड़ी कोई जानकारी है तो हमें संपर्क करें। पारदर्शिता और न्याय की लड़ाई में आपका योगदान महत्वपूर्ण है।