जन शिकायत कोषांगः रांची उपायुक्त की ‘दरबार’ व्यवस्था पर उठते सवाल

रांची (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क)। झारखंड की राजधानी रांची में हर सोमवार को लगने वाला उपायुक्त की जनता दरबार आम लोगों के लिए उम्मीद की किरण माना जाता है। यहां फरियादी अपनी समस्याएं लेकर आते हैं, उपायुक्त मंजूनाथ भजंत्री उन्हें सुनते हैं और सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरें वायरल हो जाती हैं।
लेकिन क्या यह दरबार वाकई न्याय का मंच है या सिर्फ एक दिखावा? हाल के एक मामले ने इस पूरी व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, जहां फर्जी जमाबंदी जैसी संगीन शिकायत पर तीन महीने बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। जन शिकायत कोषांग और अबुआ साथी पोर्टल जैसे सिस्टम नाकारा साबित हो रहे हैं और जिम्मेदार अधिकारी सिर्फ फाइलें इधर-उधर घुमाते रहते हैं।
यह कहानी शुरू होती है 10 जून 2025 से, जब एक फरियादी ने रांची उपायुक्त के नाम पर एक शिकायत दर्ज कराई। शिकायत थी कांके अंचल में अधिकारियों की मिलीभगत से फर्जी जमाबंदी तैयार करने की। यह कोई मामूली मुद्दा नहीं है बल्कि झारखंड में जमीन संबंधी धोखाधड़ी के हजारों मामले लंबित हैं और ऐसी फर्जीवाड़े से गरीब किसानों की जिंदगी तबाह हो जाती है।
उपायुक्त कार्यालय ने 11 जून को पत्रांक-1271 के जरिए शिकायत को जिला जन शिकायत कोषांग भेज दिया गया। कोषांग के प्रभारी पदाधिकारी ने 13 जून को पत्रांक-2847 से इसे रांची जिला अपर समाहर्ता (राजस्व) के पास सरका दिया। फिर अपर समाहर्ता ने 19 जून को पत्रांक-3079 से कांके अंचल अधिकारी को निर्देश दिए कि तथ्यों की जांच कर रिपोर्ट दें और फरियादी को सूचित करें।
लेकिन क्या हुआ? तीन महीने बीत गए। आज 9 सितंबर 2025 है और कांके अंचल अधिकारी अमित भगत ने अब तक कोई रिपोर्ट नहीं दी। फरियादी के बात करने पर जवाब मिलता है कि ‘पर्सनली आकर मिलिए’।
अपर समाहर्ता कार्यालय कहता है कि जन शिकायत कोषांग से संपर्क कीजिए, हमारी कोई जवाबदेही नहीं।’ और कोषांग के कर्मी बोलते हैं कि ‘कांके अंचल अधिकारी से जाकर मिलिए और बोलिए कि रिपोर्ट दें।’ यह एक अंतहीन चक्र है, जहां हर कोई जिम्मेदारी दूसरे पर डाल रहा है। क्या यह व्यवस्था फरियादियों को थकाने के लिए बनी है?
रांची उपायुक्त का जनता दरबार वाकई सोशल मीडिया पर हिट है। हर सोमवार को दर्जनों लोग अपनी समस्याएं लेकर आते हैं। किसी की जमीन की रसीद सालों से नहीं कटी तो किसी की जन वितरण प्रणाली में गड़बड़ी। उपायुक्त सुनते हैं, निर्देश देते हैं और कई मामलों में तत्काल समाधान हो जाता है।
लेकिन गहराई में झांकें तो सवाल उठता है कि क्या जिम्मेदार अधिकारियों पर कोई कार्रवाई होती है? क्यों फर्जी जमाबंदी जैसे मामलों में दोषियों को सजा नहीं मिलती? कई फरियादियों ने बताया कि जनता दरबार एक ‘डाकघर’ जैसा है, जहां उपायुक्त सिर्फ ‘डाकिया’ की भूमिका निभाते हैं। शिकायतें आगे भेज देते हैं, लेकिन फॉलो-अप नहीं होता।
झारखंड सरकार की अबुआ साथी पोर्टल और जन शिकायत कोषांग को तो और भी नकारा बताया जा रहा है। पोर्टल पर शिकायत दर्ज करो तो अपडेट नहीं आता। कोई जवाब नहीं मिलता।
एक फरियादी ने बताया कि मैंने पोर्टल पर तीन बार शिकायत की, लेकिन कोई रिस्पॉन्स नहीं। लगता है यह सिर्फ दिखावा है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे सिस्टम में पारदर्शिता की कमी है। अगर शिकायत पर समयबद्ध कार्रवाई का प्रावधान होता तो अधिकारी इतने लापरवाह न होते।
यह मामला सिर्फ एक उदाहरण नहीं है। रांची जिले में हजारों ऐसी शिकायतें लंबित हैं। जहां जमीन, राशन, पेंशन जैसे बुनियादी मुद्दों पर न्याय नहीं मिलता। क्या उपायुक्त महोदय इस पर ध्यान देंगे? या उनके लिए सोशल मीडिया की सुर्खियां ही काफी हैं?
