
पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज/नवीन)। बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर सबसे ज्यादा दस बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले नीतीश कुमार ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनके मुख से बिहार का मुख्यमंत्री बनने की निकली बात कभी सच हो जाएगी। गुस्से में उनके मुंह से निकली बात एक बार नहीं, बल्कि दस बार सच साबित हुई कि वे बिहार की सियासत में एक रिकॉर्ड कायम कर जाएंगे। जिसके रिकॉर्ड को तोड़ना किसी भी भावी राजनेता के लिए असंभव होने जा रहा है।

सबसे ज्यादा बीस साल और आगे के पांच साल लगभग पच्चीस साल, दस बार मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड, यह भारतीय राजनीति का वह शिखर पुरुष हैं, जो देश में सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले मुख्यमंत्रियों की श्रेणी में आठवें नंबर पर है। अगर वह 2030 तक मुख्यमंत्री रह जाते हैं तो सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड पवन कुमार चामलिंग और नवीन पटनायक को पीछे छोड़ देंगें। फिलहाल नीतीश कुमार दसवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। लेकिन उनके मुख्यमंत्री बनने की प्रबल महत्वाकांक्षी 2000 में शुरू नहीं हुई थी।
1977 में जब वे हरनौत से चुनाव हार गए थे तो बहुत नाराज़ रहते थे। बात-बात पर वे उग्र हो जाते थे। इसी उग्रता के बीच पटना के एक कॉफी हाउस में उनके मुंह से बिहार का मुख्यमंत्री बनने की इच्छा निकली। उन्होंने कहा कि वे एक दिन मुख्यमंत्री बनेंगे और बिहार में सब ठीक कर दूंगा। अब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं, लेकिन अब वह कॉफी हाउस नहीं है, जहां कभी मुख्यमंत्री बनने का स्वप्न देखा था।
पटना के डाकबंगला रोड से गुजरते हुए अब यह स्वप्न की तरह प्रतीत होता है कि कभी एक कॉफी हाउस हुआ करता था। जो करीब डेढ़ दशक से ज्यादा समय तक यह राजनीतिक और साहित्यिक गतिविधियों का केंद्र रहा। 1971 में तत्कालीन राज्यपाल देवकांत बरुआ और तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र के प्रयास से यह कॉफी हाउस खुला था।
हालांकि पटना का सर्वप्रथम कॉफी हाउस लतीफ कॉफी हाउस था। पटना के अशोक राजपथ पर कैथेड्रल चर्च के सामने वाली गली में लतीफ कॉफी हाउस 1940 से लेकर 1960 तक पटना के साहित्यकारों, पत्रकारों, शिक्षाविदों और राजनेताओं के खास अड्डा हुआ करता था। इस हाउस में रेणू से लेकर रामवृक्ष बेनीपुरी तक शोभा बढ़ा चुके हैं।
पटना का वह कॉफी हाउस कम समय में ही काफी लोकप्रिय हो गया। यहां आनेवालों में नेपाल के भूतपूर्व प्रधानमंत्री बीपी कोईराला, दिनकर, अज्ञेय, नागार्जुन,रेणू, जुगनू शारदेय, जितेन्द्र सिंह, जैसे तमाम लोग आया करते थे। राज्यपाल देवकांत बरुआ भी आया बराबर आया करते थे। जिनकी रेणूजी से खूब पटती थी।
1977 में जब नीतीश कुमार चुनाव हार गए थे। पटना के इसी कॉफी हाउस को अपना अड्डा बना लिया था उनके बगल में जाने माने पत्रकार सुरेंद्र किशोर बिहार की राजनीति पर चर्चा कर रहे थे। मुख्यमंत्री पद पर कर्पूरी ठाकुर का चयन सही निर्णय था।उनकी सरकार मुश्किल में चल रही थी।
नीतीश स्वयं कर्पूरी सरकार से बहुत जल्द निराश हो गए लगते थे। नीतीश कुमार उनकी बक-बक बहुत देर से सुन रहे थे। सुरेन्द्र किशोर ने चर्चा के दौरान सवाल किया कि क्या बिहार को एक अच्छा मुख्यमंत्री नहीं मिलने वाला है?
बहस के बीच नीतीश अचानक उत्तेजित हो गए। गुस्सा उनके चेहरे तक आ गया था। उन्होंने मेज पर मुक्का मारा और किसी व्यक्ति विशेष को संबोधित न करते हुए ऐलान किया कि सता प्राप्त करूंगा, किसी भी तरह से, लेकिन सता लेके अच्छा काम करूंगा। उसके बाद वे खड़े हो गए और अपने दुस्साहसपूर्ण वचन को पूरा करने की दिशा में करीब तीस वर्ष तक भटकने के लिए निकल गये।
दरअसल कॉफी बोर्ड में कई दिग्गज राजनेता आते थे। जिनमें कर्पूरी ठाकुर , लालू यादव , सुशील मोदी, शिवानंद तिवारी, सुबोधकांत सहाय और सरयू राय जैसे कई बड़े नेता शामिल थे। तब माना जाता था कि कॉफी बोर्ड युवा राजनेताओं को तैयार करने का एक बड़ा सेंटर है। जहां तब के युवा नेताओं ने, जिन्होंने बाद में चलकर बिहार और देश के बड़े नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाई, आया करते थे।
आज की तारीख में बिहार के जितने जाने-माने राजनीतिक चेहरे हैं, वे सभी कॉफी बोर्ड में बैठा करते थे। उस समय समाजवादी राजनीति की चर्चाएं ज्यादा होती थीं। 1974 के जेपी आंदोलन के समय कॉफी बोर्ड की भूमिका काफी बढ़ गई थी। कॉफी बोर्ड में घंटों जेपी मूवमेंट की चर्चा होती थी।
लालू यादव भी उन्हीं दिनों नेता के तौर पर तेजी से उभर रहे थे, लेकिन उनकी पहचान तब छात्र नेता के तौर पर ही थी। लालू यादव भी कॉफी हाउस में आया करते, थोड़ा समय गुजार किसी के साथ कॉफी पी लेते और निकल जाते थे।लेकिन, तब भी उनका स्वभाव मसखरापन वाला ही था।
पटना के डाकबंगला चौराहे पर स्थित कॉफी हाउस / कॉफी बोर्ड में सिर्फ राजनीतिक जगत के लोगों का ही जमावड़ा नहीं लगता था, बल्कि साहित्य जगत के दिग्गज भी कॉफी बोर्ड में बैठते थे। फणीश्वर नाथ रेणु, नागार्जुन, शंकर दयाल सिंह, योग जगत के जाने-माने चेहरे फूलगेंदा सिंह, जो अमेरिका में योग सिखाते थे, जब बिहार आते तो कॉफी बोर्ड में आना नहीं भूलते।
इस कॉफी बोर्ड में एक खास कॉर्नर साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु के लिए बुक रहता था, जिसका नाम था रेणु कॉर्नर। जब रेणु जी आते तो कॉफी हाउस में बैठे लोग उनके पास आ जाते और उनकी बातों को घंटों सुना करते थे।
आज 1987 में बंद हुए कॉफी हाउस का कोई भी स्मृति चिन्ह शेष नहीं है। अगर आज होता तो जरूर गर्व करता कि उनकी कॉफी पीने वाला यह महत्वाकांक्षी युवक एक दिन बिहार की गद्दी पर बैठेगा। किंतु जो बरसों तक के घटनाक्रम का मूकद्रष्टा बना रहा है, उसकी स्मृति कैसे मिटायी जा सकती हैऔर जब स्मृतियां इतिहास का हिस्सा बन जायें तो यह और भी कठिन है। वैसे भी वह नीतीश कुमार के संघर्ष का गवाह रहा है।









