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खुद कुप्रबंधन और मनमानी का शिकार है डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी का प्रबंधन विभाग

राँची (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क)। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी का प्रबंधन विभाग खुद घोर कुप्रबंधन का शिकार है और यहाँ खूब मनमानी और अनियमियता बरती जा रही है। आश्चर्य है कि इसकी जानकारी होने के बाबजूद कहीं से कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।

प्रबंधन विभाग तथाकथित स्कूल ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज में यूनिवर्सिटी के अवकाश के अतिरिक्त, कभी भी निदेशक और शिक्षकों  की सुविधा के अनुसार कक्षाएं आये दिन निरस्त कर दी जाती है, जिससे दूर से हॉस्टल मे रह रहे विधार्थियो को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

पिछले 11 माह की प्रति दिन वाट्सएप ग्रुप में पोस्ट होने वाली समय सारणी पर ध्यान देने से पता चलता है कि महीना भर विधार्थियो की कक्षाये बिना कारण निरस्त होने पर रांची के बाहर से आने वाले विधार्थियो ने  सिर्फ यहाँ हॉस्टल में बिना मतलब का रेंट भरा है। इससे सबसे अधिक प्रभावित बीबीए  सेमेस्टर 1 एवम 3 के छात्र छात्रा रहे है।  इसकी पुष्टि विद्यार्थियों के वाट्सएप ग्रुप में पोस्ट रूटीन सूचनाओं से होती है।

इस प्रबंधन विभाग में क्लास रूटीन हर दिन आता है, कितनी बार तो क्लास रूटीन रात के 11 बजे विधार्थियो को उपलब्ध कराया गया है। अचानक कभी भी कक्षाएं प्रारंभ होती है और कभी भी निरस्त कर दी जाती है। शिक्षको से पूछने पर उन्हें भी जानकारी नहीं होती। प्रबंधन विभाग एक मात्र विभाग है, जहां बिना मास्टर रूटीन के ही कक्षाएं चलाई जा रही है।

हास्यास्पद है कि इस विभाग के कर्मचारी एवं शिक्षक भी रूटीन से अवगत नहीं होते हैं। इसी मास्टर रूटीन के अभाव में निदेशक के शरणार्थी शिक्षकों द्वारा फर्जी कक्षाओं का मानदेय बनाया जाता है,जिसमे निदेशक खुद लिप्त है। रूटीन में जो क्लासेज होती है, पर वो क्लासेज ली ही नही जाती।

इस प्रबंधन विभाग में 1000 से अधिक विद्यार्थी हैं। पर उनकी समस्या के समाधान करने के लिए परमानेंट तो क्या एक भी अनुबंधित शिक्षक नहीं है। कक्षाएं खाली रहती है और शिक्षक लापता। पर हर महीने खाली क्लास के मानदेय आवश्य बनते है। निदेशक के चाटुकार शिक्षकों ने एक एक दिन में 6 से 7 कक्षा के मानदान अपने बिल मे बनाते है और उस लाभ के एवज मे 2 कक्षा का मानदेय निदेशक को देते है।

इसी परंपरा के निर्वाह हेतु हर वक़्त नए अतिथि शिक्षकों को विभाग से जोड़ा जाता है और सहजीवी की तरह शिक्षक और निदेशक एक दूसरे को लाभ पहुँचा रहे है। उदाहरण स्वरूप बीते जुलाई के 23 और 24 तारीख को निदेशक ने कक्षाएं निरस्त की। जबकि कॉलेज में कोई अवकाश नही था और कुछ विशेष शिक्षकों को छुट्टियों के दिनों में भी कक्षा का लाभ दिया गया और शिक्षकों ने 1200 रुपये का भुगतान निदेशक को किया था। ये विभाग की परंपरा बनी हुई है। जिसमे उनके 7-8 शिक्षकों को लाभ मिलता है और पुराने वरिष्ठ शिक्षक अभाव मे रहने को मजबूर है।

विधार्थियो से पता चला कि शिक्षा का स्तर भी दयनीय है ।चलते सत्र मे शिक्षाविद् कभी भी बदल दिये जाते है। अहम सवाल है कि अगर शिक्षकों की इतनी कमी है तो फिर क्षमता से अधिक विधार्थियो का एडमिशन क्यों लिया गया है और यहाँ अहर्ता के अनुसार शिक्षकों की नियुक्ति क्यों नहीं की जा रही। दूसरे कॉलेज में कार्यरत शिक्षकों के भरोसे क्यों विभाग को चलाया जा रहा है। जो शिक्षक निदेशक के गलत कार्यों का विरोध करते है, उनके क्लासेस में कमी कर उन्हे आर्थिक रुप से नुकसान पहुंचाया जाता है।

इस प्रबंधन विभाग में प्रबंधक एवं शिक्षकों के द्वारा दबाव डाल कर एक ही जगह से ड्रेस की खरीदारी हेतु बाध्य किया जाता है, जिसमे कमीशनखोरी होना स्वभाविक है। शिक्षकों द्वारा ग्रुप में पोस्ट कर प्रत्यक्ष एवम अप्रत्यक्ष रूप से किसी विशेष दुकान से ड्रेस लेने के लिए बाध्य किया जाता है। इसके अलावा कभी टी. शर्ट की खरीदारी, तो कभी  पेनलिटी के माध्यम, तो कभी शिमला या दर्जलिंग के ट्रिप के बहाने विधार्थियो पे दबाव बना के धन अर्जन किया जाता है।

इस प्रबंधन विभाग में एक आश्चर्यजनक तथ्य  प्रमाण सहित प्राप्त हुआ कि यहां एडमिशन की प्रक्रिया वर्ष भर चलती है। यहाँ तक की एडमिशन सेमस्टर परीक्षा के कुछ दिनों पहले तक लिया गया है, कभी भी चांसलर पोर्टल खोल कर फॉर्म भर कर एडमिशन ले लिया जाता है और इन सब प्रक्रिया में पैसे का लेन देन होता है। बिना क्लास किये सीधे परीक्षा में विधार्थियो के पहुँचने से शिक्षा का स्तर में गिरावट और नियमों की अवमानना हो रही है।

इस प्रबंधन विभाग में एडमिशन में हर कॉलेज में CAT, MAT, GMAT इत्यादि के मार्क को आधार माना गया है पर एडमिशन में इसका कोई भी महत्व नही है। जब राज्य में सभी युनिवर्सिटी CUET के माध्यम से एडमिशन ले रहे है तो निरर्थक रुप से बीबीए के एंट्रेंस टेस्ट करवाने का क्या औचित्य है। और अगर एंट्रेंस करवाया भी जा रहा है तो इसकी प्रक्रिया और वित्त से जुड़ी मॉनिटरिंग एजेंसी कौन है?

इस प्रबंधन विभाग द्वारा कराया जाने वाला एंट्रेंस एक्जाम अपने आप में भ्रष्ट व्यवस्था है, जो निम्न प्रकार किया जाता है:

लिस्ट में स्टूडेंट्स के मार्क्स नही प्रकाशित किया जाता है। फर्स्ट लिस्ट के स्टूडेंट्स अगर एडमिशन नही  ले रहे  या फिर किसी कारण वश एडमिशन लेने में विफल रहे  हो तो पैसे लेकर उनका नाम और रोल नंबर फिर से दूसरे लिस्ट में निकाला जाता है।

यहां तक कि जिन स्टूडेंट्स ने चांसलर पोर्टल पे फॉर्म भरा और किसी कारणवश स्टूडेंट्स एंट्रेंस परीक्षा नही दे पाए , उनका भी एडमिशन पैसे लेकर बिना किसी एंट्रेंस एग्जाम के लिया जाता है। और इसके बाद उन स्टूडेंट्स का भी एडमिशन हो जाता है, जिन्होंने चांसलर पोर्टल पे फॉर्म नहीं भरा है। इसके लिए फिर से दुबारा डिपार्टमेंट द्वारा चांसलर पोर्टल खोला जाता है और फॉर्म भरा जाता है। अगर यही सब करना है तो फिर एंट्रेंस एग्जाम का नाटक क्यों किया जा रहा है। अन्य विभाग के सूत्रों से ये भी पता चला है कि निदेशक को वाइस चांसलर का सरंक्षण प्राप्त है और वो निदेशक के प्रतिकूल निर्णय लेने से डरते है।

मास्टर इन हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन की स्थिति और भी दयनीय है। उन शिक्षको को विषय पढ़ाने हेतु दिया गया है, जिनको विषय और विषय तत्व की जानकारी नही है। विभाग में MHA को पढ़ाने योग्य अहर्ता एक भी शिक्षक में नही है। ऐसे में ऐसी शिक्षा देकर विधार्थियो के जीवन के साथ खिलवाड़ हो रहा है।

MHA विभाग में सभी शिक्षकों की अहर्ता प्रबंधन जैसे विषय को पढ़ाने की नही है, निदेशक ने न, पुराने 7.8 शिक्षकों का एक समूह बना रखा है और उन्हें अतरिक्त लाभ देते हुए उनसे अपने हित में काम लेते है।

इस प्रबंधन विभाग पिछले कुछ दिनों में पुराने ईमानदार अतिथि शिक्षकों के विषयों को कम करके इनके चाटुकार अतिथि शिक्षकों को विशेष लाभ दिया गया है। इसकी पुष्टि हेतु पिछले 11 महीने के दौरान शिक्षको को विभाग द्वारा दिए जा रहे मौद्रिक भुगतान के विवरण से प्राप्त होता है।

पिछले कुछ महीनो में बहुत से शिक्षको को कॉलेज से हटाया गया है या फिर हटने को मजबूर किया गया है। पुराने शिक्षकों को कॉलेज ग्रुप से या तो बाहर किया गया है या फिर उनके पेपर उनसे ले के अपने चाटुकार शिक्षक समूह को देकर उनके विषय को कम किया गया है।

इस प्रबंधन विभाग में पूर्व मे भी CA& IT में भी निदेशक के रूप मे इनके कार्य शैली पर प्रश्न था, और इन्हे वहाँ से हटना भी पड़ा था। पर इनके राजनैतिक परिवेश और पिता के पूर्व कुलपति होने का इन्हे लाभ मिलता रहा है।

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